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राजनीतिफ्रांस

फ्रांस: ले पेन की जीत से देश के बजट पर बढ़ जाएगा बोझ?

२३ अप्रैल २०२२

माक्रों का आर्थिक घोषणापत्र देश के सभी मतदाताओं को उत्साहित नहीं करता है. उनकी प्रतिद्वंदी मरीन ले पेन की योजनाओं को तो अर्थशास्त्री और भी ज्यादा घातक मान रहे हैं.

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यूरो और फ्रांस की पुरानी मुद्रा
अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि ले पेन की जीत फ्रांस को आर्थिक रूप से अस्थिर कर देगीतस्वीर: picture-alliance/K. Ohlenschläger

फ्रांस में राष्ट्रपति पद के लिए फाइनल वोटिंग होनी है. मुख्य मुकाबला मौजूदा राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और धुर-दक्षिणपंथी उम्मीदवार मरीन ले पेन के बीच है. पांच साल पहले वर्ष 2017 में हुए चुनाव में भी माक्रों और ले पेन आमने-सामने थे. उस चुनाव अभियान के दौरान ले पेन ने अपने घोषणापत्र में जिन आर्थिक कार्यक्रमों की बात की थी वही उनके लिए कमजोर कड़ी साबित हुई.

वर्ष 2017 में दूसरे चरण के चुनाव से पहले एक टीवी डिबेट के दौरान, माक्रों ने ले पेन की योजनाओं को देश के लिए घातक बताया था. ले पेन की योजना फ्रांस को यूरोजोन से बाहर निकालने की थी. साथ ही, वह फ्रांस को यूरोपीय संघ से निकालने की वकालत कर रही थीं. इन मुद्दों को लेकर ले पेन की तीखी आलोचना हुई जिसकी सफाई देने में उन्हें काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा था.

धुर-दक्षिणपंथी उम्मीदवार ले पेन ने अब यूरोजोन से बाहर निकलने की अपनी योजना को आधिकारिक तौर पर स्थगित कर दिया है. हालांकि, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ले पेन के घोषणापत्र में किए गए वादे पूरे किए जाते हैं, तो आखिरकार वही नतीजे मिलेंगे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय संकट पैदा होगा.

वर्ष 2017 के चुनाव की तरह इस बार भी ले पेन खुद को "खर्च करने की शक्ति बढ़ाने वाली उम्मीदवार” के तौर पर पेश कर रही हैं. उन्होंने वादा किया है कि वह ईंधन जैसे ऊर्जा उत्पादों पर लगने वाले वैट को घटाकर 20 फीसदी से 5.5 फीसदी कर देंगी. साथ ही, बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाली कुछ वस्तुओं के लिए यह टैक्स खत्म कर दिया जाएगा.

पेरिस में एक सुपरमार्केट
ले पेन को जिता भी सकती है महंगाई से परेशान फ्रांसीसी जनतातस्वीर: Lafargue Raphael/abacca/picture alliance

मंदी बढ़ाने वाले उपाय

पेरिस स्थित नीति केंद्र सर्कल डे लीपरेंगे के प्रमुख और अर्थशास्त्री फिलिप क्रेवेल का कहना है कि इस तरह के उपाय लागू करने पर उल्टा असर पड़ता है. साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि ले पेन के ऐसे कदम उठाने से अस्थिरता का माहौल कायम हो जाएगा. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "इन उपायों को लागू करने से शुरुआत में कीमतें कम होंगी, लेकिन उपभोक्ताओं के बीच मांग बढ़ेगी. अंतत: कीमतें फिर बढ़ जाएंगी, क्योंकि बढ़ी हुई मांग के मुताबिक अचानक से बाजार में उत्पाद उपलब्ध नहीं होंगे.”

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उन्होंने विस्तार से बताया कि उत्पादन को बढ़ाने से ही खर्च करने की शक्ति बढ़ाई जा सकती है, क्योंकि अतिरिक्त पैसे को बाजार में ज्यादा मात्रा में उपलब्ध वस्तुओं पर खर्च किया जा सकता है.

ले पेन ने नौकरी देने वाली कंपनियों को भी टैक्स में छूट देने का वादा किया है, ताकि कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि की जा सके. क्रेवेल कहते हैं, "ऐसा करने से फिर से मुद्रास्फीति होगी. वेतन में वृद्धि करने के लिए कंपनियां उत्पाद की कीमतें बढ़ाएंगी. फिलहाल, रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से कंपनियां पहले से ही संसाधनों के लिए ज्यादा रकम खर्च कर रही हैं.”

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फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के लिए दूसरे चरण का मतदान 24 अप्रैल को
फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के लिए दूसरे चरण का मतदान 24 अप्रैल कोतस्वीर: Francois Mori/AP/dpa/picture alliance

क्रेवेल का मानना है कि इन प्रस्तावित उपायों से, मुद्रास्फीति की वजह से होने वाली मंदी बढ़ेगी. उन्होंने कहा, "यह वैसा ही होगा जैसा 1970 के दशक में तेल के उत्पादन में गिरावट की वजह से हुआ था. इससे बड़े पैमाने पर बेरोजगारी बढ़ेगी और सबसे पहले कामगार इससे प्रभावित होंगे.”

बेतुका और अनैतिक कार्यक्रम

पेरिस स्थित वामपंथी झुकाव वाले अनुसंधान केंद्र ऑब्जर्वेटोएयर फ्रांसिस डेस कॉन्जोन्क्चर्स इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्री हेनरी स्टरडीनियाक इस बात से सहमत हैं कि पेन के कार्यक्रम से सामान्य लोगों को मदद मिलने की संभावना नहीं है. वह इन कार्यक्रमों को ‘बेतुका' कहते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "वह फ्रांस में चल रहे विंड टरबाइन को बंद करने की बात कर रही हैं और इसके बदले फ्रांस के लोगों को सब्सिडी के तौर पर पैसा देना चाहती हैं. वह 30 साल से कम उम्र के लोगों को इनकम टैक्स जमा करने से छूट देना चाहती हैं, लेकिन सवाल यह है कि आखिर अच्छी कमाई कर रहे युवाओं को टैक्स क्यों नहीं देना चाहिए? इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है.”

वह आगे कहते हैं, "इसके अलावा, उनके उपाय काफी ज्यादा अनैतिक हैं. जब नौकरी, घर या सामाजिक लाभ की बात आती है, तो विदेशियों को पैसा देने के लिए कहा जाएगा और फ्रांस के लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी.” स्टरडीनियाक नौकरी देने वाली कंपनियों को भी टैक्स में छूट देने की घोषणा से सहमत नहीं हैं. वह कहते हैं, "हमारे देश के ऊपर काफी ज्यादा कर्ज है. यह जीडीपी का 113 फीसदी है. हमें अपने देश की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसा चाहिए होता है.”

टीवी डिबेट में माक्रों और ले पेन
टीवी डिबेट में माक्रों और ले पेनतस्वीर: Ludovic Marin/AFP

वह इसी वजह से माक्रों के कार्यक्रम की भी आलोचना करते हैं. मौजूदा राष्ट्रपति माक्रों ने तथाकथित "माक्रों प्रीमियम" को तिगुना करने का वादा किया है. यह साल के अंत में दिया जाने वाला 1,000 यूरो का बोनस है. इस बोनस पर कर्मचारियों को किसी तरह का टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है. साथ ही, नौकरी देने वाली कंपनियों को भी इस रकम पर टैक्स में छूट मिलती है. यह नियम 2018 से लागू है. स्टरडीनियाक चेतावनी भरे लहजे में कहते हैं, "यह एक खतरनाक खेल है. माक्रों ने न्यूनतम पेंशन राशि को 100 यूरो से बढ़ाकर 1000 यूरो करने का जो वादा किया है वह भी सही नहीं है.

क्या माक्रों सुधार कार्यक्रमों को आगे बढ़ा पाएंगे?

कुल मिलाकर, माक्रों के घोषणापत्र में कुछ ही ठोस उपाय शामिल हैं. साथ ही, ले पेन की तुलना में काफी कम जानकारी दी गई है. माक्रों ने मुख्य रूप से उन कार्यक्रमों को जारी रखने का वादा किया है जिन्हें वे 2017 से चला रहे हैं. वह है बाजार से जुड़े सुधार कार्यक्रम. उन्होंने श्रम बाजार को और अधिक उदार बनाने, कारोबार पर लगने वाले टैक्स को कम करने और सेवानिवृत्ति की मौजूदा आयु को 62 से बढ़ाकर 65 करने की भी योजना बनाई है.

अर्थशास्त्री क्रेवेल कहते हैं कि देश पर कर्ज के बढ़ते बोझ को देखते हुए कहा जा सकता है कि पेंशन में सुधार का कार्यक्रम सही है. वह कहते हैं, "हालांकि, उनके लिए अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा क्योंकि कई फ्रांसीसी इनका विरोध कर रहे हैं.”

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माक्रों के पहले शासनकाल के दौरान कई तरह के विरोध-प्रदर्शन हुए. जैसे कि तथा-कथित यलो वेस्ट आंदोलन. इस आंदोलन के दौरान देश में कई महीनों तक बंदी जैसे हालात बने रहे. आंदोलन में शामिल लोगों ने पहले की तुलना में सामाजिक न्याय से जुड़े ज्यादा कार्यक्रमों को लागू करने की मांग की. इनमें टैक्स में छूट, वेतन में वृद्धि वगैरह मुद्दे शामिल थे.

इस बीच, माक्रों ने 22 फीसदी मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने के लिए अपनी योजनाओं में बदलाव करना शुरू कर दिया है. ये वे मतदाता हैं जिन्होंने 10 अप्रैल को हुए पहले चरण के मतदान में वामपंथी उम्मीदवार जॉं लित मेलेंशों के पक्ष में वोट किया था. हालांकि, पहले चरण में तीसरे नंबर पर आने की वजह से मेलेंशों राष्ट्रपति पद की रेस से बाहर हो गए.

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माक्रों ने कहा कि वह पेंशन देने की उम्र को घटाकर 64 साल कर सकते हैं और अपनी योजनाओं को लागू करने के लिए जनमत संग्रह भी करा सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने कार्यक्रमों में ज्यादा से ज्यादा पारिस्थितिक उपायों को शामिल करेंगे.

आर्थिक न्याय और समानता के लिए अभियान चलाने वाली संस्था ऑक्सफैम फ्रांस के स्टैनिस्लास हनौन ने इन बदलावों का स्वागत किया है. उनके समूह ने उम्मीदवारों के घोषणापत्र में सामाजिक, पारिस्थितिक, और लैंगिग न्याय से जुड़ी बातों की जांच की. हनौन ने डीडब्ल्यू को बताया, "भले ही, ले पेन का घोषणापत्र काफी ज्यादा खराब दिखता हो, लेकिन माक्रों ने भी खराब प्रदर्शन किया है. माक्रों खुद को प्रगतिशील कहते हैं, तो यह उनके काम में भी दिखना चाहिए. जैसे, उन्हें गुजारा भत्ता पर लगने वाले टैक्स में छूट देनी चाहिए.”

माक्रों के पहले कार्यकाल के दौरान फ्रांस में कई बड़े प्रदर्शन हुए
माक्रों के पहले कार्यकाल के दौरान फ्रांस में कई बड़े प्रदर्शन हुएतस्वीर: Getty Images/AFP/A. Jocard

ले पेन की योजना से निवेशकों का कम होगा भरोसा

पेरिस स्थित थिंक टैंक इंस्टीट्यूट मॉन्टेन, नौकरी देने वाली कंपनियों पर करीब से नजर बनाए रखता है. इस संस्था ने भी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के घोषणापत्र की जांच की है, ताकि जाना जा सके कि इन योजनाओं के लागू होने से आर्थिक स्थिति पर क्या असर होगा. इंस्टीट्यूट मॉन्टेन की लिसा थॉमस डार्बोइस ने डीडब्ल्यू को बताया, "दोनों की योजनाओं से सरकारी बजट पर बोझ बढ़ेगा. हालांकि, माक्रों की योजनाओं में कुल खर्च 44 अरब यूरो होगा. वहीं, ले पेन की योजनाओं के लागू होने पर 101 अरब यूरो का अतिरिक्त खर्च होगा.”

उन्होंने कहा, "ले पेन की कई प्रस्तावित योजनाएं फ्रांस के कानून और देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के विपरीत हैं. इससे निवेशकों का भरोसा कम होगा. यह भरोसा फ्रांस को कम ब्याज दरों पर मिलने वाले कर्ज के लिए महत्वपूर्ण है. इसी भरोसे की वजह से देश को फिर से कर्ज मिलने में आसानी होती है.”

इंस्टीट्यूट मॉन्टेन की लिसा थॉमस डार्बोइस
इंस्टीट्यूट मॉन्टेन की लिसा थॉमस डार्बोइसतस्वीर: Marcella Barbieri

ले पेन ने राजमार्गों जैसे कुछ अहम रणनीतिक क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण करने के लिए एक नया राष्ट्रीय कोष स्थापित करने की योजना बनाई है. इसके लिए लगाई जाने वाली बोलियों में फ्रांस की कंपनियों को प्राथमिकता दी जाएगी. ‘देश को प्राथमिकता' देने की अवधारणा से फ्रांस के उत्पादों को फायदा मिलेगा.

अर्थशास्त्री क्रेवेल इस मामले पर विस्तार से जानकारी देते हैं. वह कहते हैं, "इन संरक्षणवादी उपायों से यूरोपीय संघ के कानूनों का उल्लंघन होगा. उदाहरण के लिए, देश को प्राथमिकता देने के नियम का यह मतलब होगा कि सरकार आयात शुल्क लगाएगी. इससे फ्रांस यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की दिशा में आगे बढ़ेगा.”

वह आगे कहते हैं, "ले पेन को लगता है कि यूरोपीय संघ अंततः फ्रांस को बाहर निकाल देगा, क्योंकि देश यूरोपीय संघ के बहुत सारे नियमों के खिलाफ जा रहा होगा और बहुत अधिक अस्थिरता पैदा करेगा.” आखिरकार फ्रेक्जिट के अंतरराष्ट्रीय नतीजे सामने आएंगे.

क्रेवेल ने चेतावनी देते हुए कहा, "कई फ्रांसीसी बैंक यूरोजोन के हिसाब से काम कर रहे हैं. अगर वे यूरोजोन से बाहर निकल जाएंगे, तो पूरी दुनिया में हलचल मच जाएगी. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है.”

रिपोर्ट: लीजा लुइस (पेरिस)