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राजनीतिफ्रांस

पहले राउंड में माक्रों को कांटा लगा

११ अप्रैल २०२२

फ्रांस ने बीते 20 साल में किसी राष्ट्रपति को दूसरी बार कुर्सी पर नहीं बैठने दिया है. इस बार लग रहा था कि माक्रों इस सिलसिले को तोड़ देंगे, लेकिन पहले राउंड के बाद माक्रों और यूरोप बेचैन से दिख रहे हैं.

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Frankreich Präsident Macron Rede
तस्वीर: Ludovic Marin/AFP

फ्रांस में रविवार को राष्ट्रपति चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान हुआ. इस मतदान में मौजूदा मध्यमार्गी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को 27.8 फीसदी वोट मिले. अति दक्षिणपंथी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन व पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की फैन रहीं मारीन ले पेन दूसरे नंबर पर रहीं. ले पेन को 23.1 फीसदी वोट मिले.

फ्रांस की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अगर पहले चरण में किसी दावेदार को 50 फीसदी से ज्यादा वोट न मिलें, तो दूसरे चरण का मतदान होता है. दूसरे चरण में मुकाबला पहले राउंड में नंबर वन और टू पर रहने वाले उम्मीदवारों के बीच होता है. रविवार की वोटिंग के बाद यह मुकाबला इमानुएल माक्रों और मरीन ले पेन के बीच लॉक हो चुका है. यूक्रेन युद्ध के बीच फ्रांस का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, इसका फैसला अब 24 अप्रैल के मतदान में होगा.

मरीन ले पेन (बाएं) और इमानुएल माक्रों (दाएं)
मरीन ले पेन (बाएं) और इमानुएल माक्रों (दाएं)तस्वीर: Paulo Amorim/IMAGO

माक्रों को मिल रही कड़ी टक्कर

कई सर्वेक्षणों के मुताबिक टक्कर कांटे की होने जा रही है. राष्ट्रपति माक्रों को जहां 51 से 54 फीसदी वोट मिलते दिख रहे हैं, वहीं 46 से 49 फीसदी मतदाता ले पेन के पक्ष में झुकते दिख रहे हैं. सर्वेक्षणों में गलती की गुजाइंश के लिए भी जगह छोड़ी जाती है. अगर इस गुंजाइश को देखें, तो ले पेन भी बाजी मार सकती हैं. 2017 के चुनावों में माक्रों और ले पेन के बीच यह फर्क 66 बनाम 34 परसेंट का था.

फ्रांस सरकार के प्रवक्ता ग्राबिएल अता ने सोमवार को फ्रांस इंटर रेडियो से बातचीत में स्वीकार किया कि मामला फंस गया है, "हमें कड़ी मेहनत करनी ही पड़ेगी क्योंकि निर्णायक फैसला अभी नहीं हुआ है."

अति वामपंथी नेता जॉं लुक मेलेनचों
अति वामपंथी नेता जॉं लुक मेलेनचोंतस्वीर: Michel Spingler/AP Photo/picture alliance

सेंटर को लेफ्ट के सपोर्ट की जरूरत

रविवार की वोटिंग से मिले झटके के बाद माक्रों ने भी दक्षिणपंथ का विरोध करने वाली सभी राजनीतिक पार्टियों से एकजुट होकर मुकाबला करने की अपील की है. पहले चरण के मतदान के बाद 22 फीसदी वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहने वाले अति वामपंथी नेता जॉं लुक मेलेनचों के पीछे लाखों समर्थक हैं. मेलेनचों के वोटरों में एक तिहाई 18 से 24 साल की उम्र के हैं. फ्रांस में वामपंथ के भविष्य के लिहाज से इसे बेहद अच्छे संकेत के रूप में देखा जा रहा है. रविवार रात मेलेनचों ने अपने समर्थकों और वोटरों का आभार जताते हुए कहा कि आगे एक भी वोट मरीन ले पेन को नहीं मिलना चाहिए.

यूक्रेन युद्ध में फंसे रहे माक्रों, फ्रांस में बदल गया चुनावी माहौल

यूरोप को इस वक्त माक्रों की सख्त जरूरत

44 साल के माक्रों की इस वक्त यूरोपीय संघ को सख्त जरूरत है. जर्मनी की पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल के राजनीतिक संन्यास लेने के बाद माक्रों ही यूरोपीय संघ के सबसे अहम नेता के तौर पर देखे जा रहे हैं. यूक्रेन युद्ध, रूस के साथ रिश्ते, ताकतवर होते चीन के दौर में विश्व राजनीति में यूरोपीय संघ की जगह और जलवायु परिवर्तन जैसे कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर माक्रों की राय स्पष्ट है. साझेदार देश भी मारीन ले पेन के मुकाबले माक्रों के साथ काम करने में कहीं ज्यादा सहज हैं.

विदेश नीति और यूरोपीय नीति को लेकर बिल्कुल अलग हैं माक्रों और ले पेन
विदेश नीति और यूरोपीय नीति को लेकर बिल्कुल अलग हैं माक्रों और ले पेनतस्वीर: Patrick Batard/abaca/picture alliance

दूसरी तरफ 53 साल की मरीन ले पेन की गिनती उन दक्षिणपंथी नेताओं में होती है, जो लोकलुभावन वादों की झड़ी लगाती हैं. मरीन ले पेन यूरोपीय संघ और यूरोपीय एकता की आलोचना भी कर चुकी हैं. यूरोजोन की साझा मुद्रा यूरो पर भी उनका भरोसा बहुत कम है. डॉनल्ड ट्रंप और पुतिन की तारीफ कर चुकीं ले पेन फ्रांस के जांचे-परखे साझेदार देशों के साथ कैसे डील करेंगी, यह विचार ही कौतूहल पैदा करने के लिए काफी है.

क्या हैं चुनावों के स्थानीय मुद्दे

जाने-माने इनवेस्टमेंट बैंकर रह चुके इमानुएल माक्रों ने अप्रैल 2016 में जब फ्रांस की राजनीति को बदलने का नारा दिया, तो मतदाताओं ने उन पर भरोसा किया. ब्रेक्जिट का झटका खा चुके यूरोप और फ्रांस को लगा कि युवा और फाइनेंस मामलों के जानकार माक्रों बहुत कुछ फिक्स कर देंगे. माक्रों ने बहुत कुछ हासिल भी किया. 2017 में उनके राष्ट्रपति बनने के बाद फ्रांस में स्किल डेवलपमेंट और जॉब क्रिएशन को लेकर बहुत काम हुआ. माक्रों ने साफ कहा कि फ्रांस के लोगों को नए हुनर सीखकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करनी होगी. इसके लिए शिक्षा के ढांचे में भी बदलाव किया गया. टैक्स घटाया गया. श्रम कानूनों को लचीला बनाया गया. समलैंगिक महिलाओं के लिए आईवीएफ को मंजूरी दी गई. कुछ देशों की आपत्ति के बावजूद माक्रों ने धार्मिक पहचान और सहिष्णुता जैसे मुद्दों पर बहुत स्पष्ट और दृढ़ रुख रखा.

लेकिन आखिरी के दो बरसों में श्रम सुधारों के विरोध में येलो वेस्ट प्रदर्शन हुए. कीमतों को लेकर किसान सड़क पर आए. विरोधियों ने माक्रों को "अमीरों का राष्ट्रपति" कहा. उन पर अमीरों से बहुत कम टैक्स वसूलने के आरोप लगे. माक्रों कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों के चलते वे बहुत सारे सुधार नहीं कर सके. उनकी दूसरी पारी पेंशन बढ़ाने, स्वास्थ्यकर्मियों की नई भर्तियां करने, लैंगिक समानता को और बेहतर करने व स्कूलों में बुली व्यवहार को रोकने पर फोकस रहेगी.

वहीं ले पेन, आप्रवासियों के खिलाफ कड़े नियम बनाने, टैक्स में भारी छूट देने और पेट्रोल, डीजल व बिजली को सस्ता करने का वादा कर रही हैं. वह कहती हैं कि उनके राष्ट्रपति बनते ही फ्रांस में किसी की नौकरी नहीं जाएगी, किसी कारोबारी को फैक्ट्री बंद नहीं करने दी जाएगी. यूरोप के लिहाज से ले पेन एक बेहद डरावना वादा भी दोहरा रही हैं. वह कहती हैं कि अगर वे सत्ता में आई तो फ्रांस, यूरोपीय संघ की स्थापना के सिद्धांतों को चुनौती देगा.

ओएसजे/एसएम (एएफपी, डीपीए)