सोशल मीडिया पर मुकदमा, फैला रहा मानसिक स्वास्थ्य संकट
१६ फ़रवरी २०२४न्यूयॉर्क की नगरपालिका, उसके सभी स्कूलों और अस्पतालों ने इस मुकदमे के बारे में बुधवार को जानकारी दी. मुकदमे में इन कंपनियों पर आरोप लगाया गया है कि इनके "लत लगाने वाले और खतरनाक" सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बच्चों और युवाओं में मानसिक स्वास्थ का एक ऐसा संकट पैदा कर रहे हैं जो पढ़ाई-लिखाई को अस्त-व्यस्त कर रहा है और संसाधन भी खत्म कर रहा है.
मुकदमे के मुताबिक विशेष रूप से बच्चों और किशोरों का नुकसान होता है क्यों उनका मस्तिष्क अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है. मुकदमा कैलिफोर्निया के सुपीरियर कोर्ट में दायर किया गया है, जहां इन कंपनियों के मुख्यालय हैं.
311 पन्नों के मुकदमे में कहा गया है, "युवाओं को भारी संख्या में इन प्लेटफार्मों की लत लग चुकी है." न्यूयॉर्क अमेरिका का सबसे बड़ा स्कूल जिला है जहां करीब दस लाख बच्चे पढ़ते हैं.
नगरपालिका का कहना है कि उसे बार बार क्लासों में और उनके बाहर व्यवधानों का प्रबंधन करना पड़ा है, चिंता और अवसाद के लिए काउंसलिंग उपलब्ध करवानी पड़ी है और सोशल मीडिया के असर और ऑनलाइन सुरक्षित रहने के तरीकों पर पाठ्यक्रम भी तैयार करवाना पड़ा है.
नगरपालिका की मुश्किलें
मेयर एरिक एडम्स के कार्यालय ने एक बयान में बताया कि नगरपालिका हर साल युवाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों और सेवाओं पर दस करोड़ डॉलर खर्च करती है.
एडम्स ने कहा, "बीते एक दशक में हमने देखा है कि ऑनलाइन की दुनिया कितनी लत लगाने वाली और काबू पा लेने वाली हो सकती है. यह हमारे बच्चों को नुकसानदेह कंटेंट का एक अविराम प्रवाह दिखाता है और हमारे युवाओं के बीच एक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संकट को ईंधन देता है."
इस मुकदमे में यह भी कहा गया है कि किशोर जानते हैं कि वह सोशल मीडिया पर बहुत समय बिताते हैं लेकिन वो इसके आगे शक्तिहीन हैं. मुकदमे में मांग की गई है कि इन कंपनियों के आचरण को 'पब्लिक न्यूसेंस' या जान-साधारण के लिए उत्पाती घोषित किया जाए जिसे समाप्त करने की जरूरत है.
कंपनियों से आर्थिक मुआवजा भी मांगा गया है. मुआवजे की राशि स्पष्ट नहीं की गई है. टेक कंपनियों ने कहा है कि वो इस्तेमाल करने वाले की सुरक्षा पर जोर देने वाली नीतियां और नियंत्रण पूर्व में भी विकसित और लागू करती रही हैं और अभी भी कर रही हैं.
यूट्यूब की मालिकाना कंपनी गूगल के प्रवक्ता होसे कास्तानेदा ने ईमेल में कहा, "इस शिकायत में लगाए गए आरोप सच नहीं हैं". उन्होंने बताया कि कंपनी ने युवाओं, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और पेरेंटिंग विशेषज्ञों के साथ मिल कर काम किया है.
कंपनियों का जवाब
टिकटॉक के भी एक प्रवक्ता ने इसी तरह के काम का जिक्र किया जिसमें उनके मुताबिक कंपनी की कोशिश रही कि इन चुनौतियों का सामना करने के लिए किस तरह के कदम उठाए जाएं. ईमेल पर भेजे बयान में उन्होंने कहा, "टिकटॉक के पास किशोरों के कल्याण में मदद करने के लिए सुरक्षा के ऐसे इंतजाम हैं जो पूरे उद्योग में अग्रणी हैं."
उन्होंने यह भी कहा, "इनमें माता-पिता द्वारा नियंत्रण की सुविधा, 18 साल से कम यूजरों के लिए 60 मिनट ऑटोमैटिक समय सीमा और कई अन्य फीचर शामिल हैं."
मेटा के प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी चाहती है कि "किशोरों के ऑनलाइन अनुभव सुरक्षित और उनकी उम्र के मुताबिक हों और हमारे पास उनकी और उनके माता-पिता की मदद करने के लिए 30 से भी ज्यादा साधन हैं."
मेटा ने यह भी कहा, "हम इन मुद्दों पर एक दशक से काम कर रहे हैं और हमने ऐसे लोगों को भर्ती किया है जिन्होंने युवाओं को ऑनलाइन सुरक्षित रखने के लिए अपना पूरा करियर समर्पित कर दिया है."
स्नैपचैट इंक ने एक बयान में कहा कि उसका ऐप इरादातन रूप से दूसरों से अलग है. बयान में कहा गया कि ऐप "सीधे एक कैमरा खोलता है ना कि कंटेंट की एक फीड जो 'पैसिव स्क्रॉलिंग' को बढ़ावा देती है. इसके अलावा हमारे ऐप पर सबको दिखाई देने वाले लाइक और कमेंट भी नहीं है."
बयान में कंपनी ने यह भी कहा, "हालांकि हमारे पास हमेशा करने को और काम रहेगा, हमें इस बात की खुशी है कि स्नैपचैट करीबी दोस्तों को एक दूसरे से जुड़े और खुश रहने में और किशोरावस्था की कई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहने में एक भूमिका निभा रहा है."
इससे पहले कई स्कूल, स्कूल जिले और अन्य संस्थाएं इस तरह के कई मुकदमे दायर कर चुके हैं जिनमें उन्होंने दावा किया है कि सोशल मीडिया कंपनियां जानबूझ कर इस तरह के फीचर बनाती हैं जिनसे बच्चे और किशोर लगातार स्क्रॉल करते रहते हैं और अपने सोशल मीडिया खाते चेक करते रहते हैं. मुकदमों में आरोप लगाया है कि कंपनियां ऐसा करके बच्चों और किशोरों का शोषण कर रही हैं.
सीके/एए (एपी)