बंगाल में जर्मनी की दिलचस्पी
१७ दिसम्बर २०१२इस साल के दौरान जर्मनी के कई मंत्रियों, भारत में जर्मन राजदूत मिषाएल श्टाइनर और विभिन्न व्यापारिक प्रतिनिधिमंडलों के दौरों से साफ है कि जर्मनी अब राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में निवेश के लिए उत्सुक है. कोई चार साल पहले भी कुछ जर्मन कंपनियों ने बंगाल में निवेश के प्रति दिलचस्पी दिखाई थी, लेकिन तब टाटा मोटर्स के सिंगुर से कामकाज समेटने के बाद उन्होंने अपने हाथ खींच लिए थे.
राज्य में फिलहाल फोनिक्स यूले, सीमेंस, बॉश और मेट्रो कैश एंड कैरी समेत लगभग एक दर्जन जर्मन कंपनियां काम कर रही हैं. कोई पांच साल पहले जर्मन फर्म मेट्रो कैश एंड कैरी ने राजधानी कोलकाता में बड़े पैमाने पर निवेश किया था. आज की तारीख में भी राज्य में यही सबसे बड़ा जर्मन निवेश है. कंपनी ने अगले कुछ वर्षों के दौरान राज्य में कई अन्य स्टोर खोलने की भी योजना बनाई है. इसने राज्य में अब तक लगभग दो सौ करोड़ रुपए का निवेश किया है और चार सौ से ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया कराया है. लेकिन अब खाद्य प्रसंस्करण, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, ठोस कचरा प्रबंधन, खनन, इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स और निर्माण के क्षेत्र में जर्मन निवेश की राह खुल रही है. राजधानी कोलकाता में इस महीने हुए अंतरराष्ट्रीय खनन प्रदर्शनी में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी जर्मन कंपनियों की ही थी.
पुराना आर्थिक संबंध
भारत और जर्मनी के बीच आर्थिक संबंध 16वीं सदी में ही कायम हो गए थे. उन्नीसवीं सदी में एक जर्मन कंपनी ने ही कलकत्ता और लंदन के बीच टेलीग्राफ कनेक्शन स्थापित किया था. वैश्विक मंदी और यूरोपीय यूनियन में छाए कर्ज संकट के बावजूद पिछले दो वर्षों के दौरान भारत और जर्मनी का आपसी व्यापार दोगुने से भी ज्यादा बढ़ा है. पूर्व विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा कहते हैं, "इस कैलेंडर वर्ष के आखिर तक दोनों देशों का आपसी व्यापार बढ़ कर 20 अरब यूरो तक पहुंच जाएगा. पिछले साल यह 18 अरब यूरो था." जर्मनी भारत में आठवां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक और यूरोपीय संघ में देश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है.
बंगाल का दौरा
कोलकाता में जर्मनी के कौंसुल जनरल राइनर श्मिडचेन ने पिछले हफ्ते यहां इंडो-जर्मन चैंबर्स के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी और दूसरे बड़े अधिकारियों के साथ मुलाकात की. श्मिडचेन कहते हैं, "पिछले साल सरकार बदलने के बाद राज्य का माहौल तेजी से बदल रहा है. नई सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए समुचित माहौल बनाने का प्रयास कर रही है. जर्मनी भी इस काम में सरकार का सहयोग करना चाहता है." श्मिडचेन के मुताबिक, अब कई जर्मन कंपनियां पश्चिम बंगाल के भौगोलिक महत्व के ध्यान में रखते हुए यहां निवेश की इच्छुक हैं.
भारत में जर्मनी के राजदूत मिषाएल श्टाइनर ने भी राज्य में जर्मन निवेश की संभावनाओं पर एक प्रतिनिधिमंडल के साथ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की. वह कहते हैं, "सरकार अगर निवेश आकर्षित करना चाहती है तो उसे वैश्विक कंपनियों के लिए अपने दरवाजे खोलने होंगे और यहां उद्योगों के फलने-फूलने लायक अनुकूल माहौल तैयार करना होगा. इससे स्थानीय प्रशासन में निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा." श्टाइनर कहते हैं कि खाद्य प्रसंस्करण, वोकेशनल ट्रेनिंग, उच्च शिक्षा, खनन और कई अन्य क्षेत्रों में बंगाल और जर्मनी एक मजबूत साझीदार बन सकते हैं. वह कहते हैं, "संचार के आधुनिकतम साधनों की वजह से कोलकाता से बर्लिन के बीच की सात हजार किलोमीटर की दूरी कोई समस्या नहीं है. सबसे अहम बात दोनों शहरों के माहौल में समानता लाना है."
इंडो जर्मन चैंबर आफ कामर्स के महानिदेशक बैर्नहार्ड स्टाइनरूके कहते हैं, "बंगाल में विभिन्न क्षेत्रों में पसरे संसाधनों के दोहन की अपार संभावनाएं हैं. जर्मन कंपनियां इन क्षेत्रों में निवेश की इच्छुक हैं." वह कहते हैं कि जर्मनी अपनी वीजा नीति में भी बदलाव करने पर विचार कर रहा है ताकि राज्य के व्यापारी बिना किसी दिक्कत के लंबे समय तक जर्मनी में रह सकें.
राज्य सरकार भी इच्छुक
ममता बनर्जी सरकार भी जर्मनी के साथ व्यापारिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों में मजबूती लाने की पक्षधर है. वित्त मंत्री अमित मित्र कहते हैं, "हाल में कई जर्मन प्रतिनिधिमंडलों ने यहां हमसे मुलाकात कर राज्य में निवेश की इच्छा जताई है. सरकार निवेशकों को हरसंभव सहयोग देने के लिए तैयार है." उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं, "बंगाल और जर्मनी विभिन्न क्षेत्रों में एक-दूसरे के मजबूत साझीदार साबित हो सकते हैं. हम इन निवेशकों को यहां आधारभूत ढांचा मुहैया कराएंगे. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी विदेशी निवेश आकर्षित करने का भरसक प्रयास कर रही हैं."
भारतीय व्यापार संगठन फिक्की के एक प्रवक्ता कहते हैं कि बंगाल से मुंह मोड़ने वाले जर्मन निवेशक अब एक बार फिर राज्य का रुख कर रहे हैं. यह एक अच्छा संकेत है. लेकिन सरकार को भी इसके लिए लालफीताशाही की फांस खत्म कर निवेश का समुचित माहौल तैयार करना होगा और अपनी सदिच्छा का परिचय देना होगा. सरकार को साबित करना होगा कि उसकी कथनी व करनी में कोई अंतर नहीं है.
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: महेश झा