भारतीयों के लिए फायदेमंद ब्लू कार्ड
२२ नवम्बर २०१२नया नियम अगस्त से लागू हुआ. चूंकि यह नीले रंग का कार्ड है इसलिए इसे ब्लू कार्ड कहा जाता है. ब्लू कार्ड के आधार पर नौकरी पाने में अड़चनें अगस्त से कम हो गई हैं लेकिन फिर भी लोगों में इसे लेकर उत्साह कम है, कम से कम अभी तक. तो क्या यह आइडिया फ्लॉप हो गया है ?
जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स के स्टेफान हार्डेगे के लिए किसी फैसले पर पहुंचना अभी बहुत जल्दी है. अभी के लिए जरूरी है कि विदेशों में एक्सपर्टों के लिए विज्ञापन दिए जाएं, उन्हें इसके बारे में जानकारी दी जाए. "इस बारे में और सूचना दी जानी चाहिए और वहां इसका विज्ञापन करना चाहिए."
ब्लू कार्ड हासिल करने के साथ यूरोप से बाहर किसी भी देश में कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुका व्यक्ति नौकरी की अनुमति ले सकता है बशर्ते वह सालाना 44.800 यूरो कमाता हो. इससे पहले सालाना आय की सीमा 66 हजार यूरो थी. ब्लू कार्ड नौकरी की अनुमति का आसान तरीका है जो पहली बार में तीन साल के लिए दिया जाता है. जर्मनी में यह अगस्त 2012 से लागू किया गया है.
जर्मनी में समेकन और आप्रवासन फाउंडेशन की प्रमुख गुनिला फिन्के भी कहती हैं ब्लू कार्ड फ्लॉप है या नहीं इस बारे में फैसला करना अभी जल्दबाजी होगी. कई साल तक जर्मनी की छवि एक ऐसे देश के तौर पर रही है जो विदेशियों के लिए दोस्ताना नहीं है. इस तरह की छवि नियम कानूनों में बदलाव से एकदम नहीं बदलती. ब्लू कार्ड के बारे में विदेशों में विस्तार से जानकारी देनी चाहिए. और जर्मनी में विदेशियों के साथ काम करने वाली संस्थाओं में भी इस बारे में जानकारी दी जानी चाहिए.
विशेषज्ञों की कमी
जर्मनी में कई क्षेत्रों में विशेषज्ञों की भारी कमी है उदाहरण के लिए मेकैनिकल इंजीनियर की. इसमें विकास और शोध करने वाली काफी कमी है. साथ ही सेवा क्षेत्रों जैसे नर्सिंग में लोग नहीं हैं. हार्डेगे कहते हैं, "ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां कई कंपनियों के पास एक्सपर्ट नहीं हैं. लेकिन सिर्फ इंजीनियर या शिक्षकों की ही समस्या नहीं है बल्कि कई नौकरियों के लिए लायक लोग ही नहीं मिलते."
आंकडों के मुताबिक 2020 तक जर्मनी में करीब दो लाख चालीस हजार इंजीनियरों की कमी होगी. जर्मनी के कोलोन शहर में जर्मन उद्योग संस्थान के क्रिस्टोफ मेट्जलर मानते हैं कि ब्लू कार्ड सकारात्मक और अच्छा संकेत है ताकि विदेशों से एक्सपर्ट बुलवाए जा सकें. लेकिन इसके लिए जानकारी उपलब्ध करवानी होगी. जर्मनी की करीब 125 कंपनियों ने वादा किया है कि वह अपनी कंपनियों में अलग अलग देशों से आए लोगों को रखेंगे.
मेट्जलर जर्मन सरकार और राज्यों की पहल की ओर भी इशारा करते हैं. एक पोर्टल है जिसका नाम है, मेक इट इन जर्मनी( इसे जर्मनी में बनाइए). इसके जरिए भारत से आने वाले इंजीनियरों को जानकारी मिल सकती है कि लोग जर्मनी में कैसे रहते हैं और उन्हें यहां कैसा माहौल मिलेगा. मेट्जलर कहते हैं, "जिसे रुचि है वह देख सकता है कि भारत में किस तरह की प्रक्रिया हैं जिसके जरिए वह जर्मनी में नौकरी पा सकते हैं. जैसे कि गोएथे इंस्टीट्यूट जहां जर्मनी के बारे में सारी सूचनाएं उपलब्ध होती हैं.
ट्रेनिंग को मान्यता
पहले जर्मनी में विदेशी डिग्रीधारकों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था क्योंकि उन्हें अपनी डिग्री के अनुसार नौकरी नहीं मिलती थी अक्सर उनकी डिग्री को यहां मान्यता ही नहीं मिलती थी, तो वह अपना काम यहां कर ही नहीं पाते. अब जर्मन सरकार ने इसे भी आसान कर दिया है. इस बीच एक सेंट्रल इन्फेर्मेशन पोर्टल भी है जो विदेशों में ट्रेनिंग और पढा़ई के बारे में जानकारी देता है. इसे 'bq-portal' कहा जाता है. यहां कंपनियां देख सकती हैं कि दूसरे देशों में पढ़ाई का सिस्टम क्या है.
इससे न सिर्फ उन लोगों को फायदा होता है जो जर्मनी आ रहे हैं बल्कि जर्मन कंपनियों को भी आसानी होती है कि वह विदेशों की प्रणाली समझ सकें और जान सकें अगर विदेशों की ट्रेनिंग पर्याप्त नहीं है तो जर्मनी में आगे कैसी और ट्रेनिंग दी जा सकती है.
रिपोर्टः मोनिका लोहम्यूलर/एएम
संपादनः एन रंजन