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नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा से पारित

१० दिसम्बर २०१९

मुसलमानों के हक छीनने के आरोपों के बीच भारत सरकार ने संसद के निचले सदन से नागरिकता संशोधन बिल पास करा लिया है. उधर अमेरिकी सरकार के एक संघीय आयोग ने अमित शाह पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है.

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Amit Shah
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Kumar

विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक सोमवार की आधी रात को लगभग सात घंटों की बहस के बाद लोकसभा से पारित हो गया. विधेयक का उद्देश्य है पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना.

विपक्ष का आरोप है कि विधेयक असंवैधानिक है लेकिन इसके बावजूद सरकार इसे एक संवैधानिक संशोधन विधेयक के रूप में नहीं बल्कि नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के रूप में लाई है. 

विपक्षी दलों ने विधेयक का घोर विरोध किया, लेकिन संख्या बल के आधार पर सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन ने विधेयक को पारित करा लिया. 543 सदस्यों वाली लोकसभा में 311 वोट विधेयक के पक्ष में पड़े और 80 वोट विपक्ष में. 

बिल के प्रावधानों का समर्थन करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, "तीनों देशों में हिंदू, सिख, पारसी, जैन, ईसाई, बुद्ध इन धर्मों का पालन करने वालों के साथ धार्मिक प्रताड़ना हुई. जो बिल मैं लेकर आया हूं, वह धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का है. इस बिल में मुसलमानों के हक नहीं छीने गए हैं." 

Indien Vereidigung neues Kabinett von Premierminister Narendra Modi
तस्वीर: PIB Govt. of India

बिल पर बहस के दौरान विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह विधेयक मूलतः पड़ोसी देशों से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए लाया जा रहा है और इसके कारण भारत में पहली बार धर्म नागरिकता का एक आधार बन जाएगा.

जवाब में शाह ने कहा की आजादी के वक्त अगर कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का विभाजन नहीं किया होता, तो ये बिल लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. 

उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी सरकार ने नागरिकता पर निर्णय लिया है. शाह ने बताया, "1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने निर्णय किया कि बांग्लादेश से आए हुए सभी लोगों को नागरिकता दी जाएगी. अब मुझे बताइए कि तो फिर पाकिस्तान से आए हुए नागरिक क्यों नहीं लिए?"

बिल के पारित हो जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी सराहना करते हुए ट्वीट किया, " यह बिल भारत के शताब्दियों पुराने समावेशी चरित्र और मानवतावादी मूल्यों के अनुकूल है". 

विपक्ष का मानना है कि भारत संवैधानिक रूप से एक पंथ-निरपेक्ष राष्ट्र है जो धर्म के आधार पर नागरिकों के बीच में भेदभाव नहीं कर सकता. इस वजह से धर्म को नागरिकता का आधार बनाना संविधान की मूल भावना के ही खिलाफ है.

बहस में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने कहा कि बिल भारत के संविधान के मूल ढांचे के ही खिलाफ है. 

बिल अब राज्यसभा में जाएगा और अगर वहां से भी पारित हो गया तो राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए जाएगा. 

ऊपरी सदन में सरकारी पक्ष का वजन लोक सभा जितना नहीं है, पर सरकार को कुछ दोस्ताना दलों के समर्थन की उम्मीद है. वहां अभी 240 सांसद हैं, लिहाजा बिल पारित कराने के लिए सरकार को जरूरत है 121 वोटों की. उसके पास खुद की 106 सीटें हैं और विपक्ष के पास  95. करीब 35 सीटें ऐसी पार्टियों के पास हैं जो सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा भी नहीं हैं लेकिन सरकार की खुल कर आलोचना भी नहीं करतीं. अगर ये पार्टियां बिल को समर्थन दे दें तो सरकार उसे आसानी से पारित करा लेगी. 

9 दिसंबर को ही भारत के कई संस्थानों से जुड़े 100 वैज्ञानिकों और विद्वानों ने एक खुला पत्र लिखा जिसमे उन्होंने विधेयक का विरोध किया और कहा कि इस विधेयक की वजह से मुसलमानों का बहिष्कार होगा और ये भारत के बहुलतावाद को भारी क्षति पहुंचाएगा. 

पूर्वोत्तर राज्यों में विधेयक का भारी विरोध देखा गया. असम की राजधानी गुवाहाटी में प्रदर्शनकारियों ने टायर जलाये और त्रिपुरा में आदिवासी समूहों ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किये.

Cab Protest Assam
तस्वीर: DW/P.M. Tiwari

कई समूहों ने 10 दिसंबर को पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में बंध का आहवान किया है.  

इसी बीच, इस विवादास्पद विधेयक को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया भी सामने आई है. अमेरिकी संसद की अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने विधेयक के पारित होने पर चिंता व्यक्त की है. आयोग ने विधेयक की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए अमेरिकी सरकार को सलाह दी है कि अगर यह बिल दोनों सदनों से पारित हो जाता है तो सरकार को भारत के गृह मंत्री और सरकार के अन्य नेताओं के खिलाफ प्रतिबंध लगाना चाहिए.    

यूएससीआईआरएफ ने कहा है कि यह विधेयक गलत दिशा की तरफ एक खतरनाक मोड़ है और यह भारत के संविधान और पंथ निरपेक्ष बहुलतावाद के समृद्ध इतिहास के खिलाफ है. आयोग ने यह भी कहा है कि उसे डर है कि इस विधेयक और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की प्रक्रिया के जरिये, भारत सरकार नागरिकता के लिए एक ऐसी कसौटी बना रही है जिससे लाखों मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी.  

सीके/एनआर(एएफपी)

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