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भारी विरोध के बीच लोक सभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश

९ दिसम्बर २०१९

सड़क से लेकर संसद तक भारी विरोध के बीच लोक सभा में पेश हुआ नागरिकता संशोधन विधेयक 2019. नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार साठ साल पुराना नागरिकता कानून बदलने की तैयारी में है.

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Indien Innenminister Amit Shah bei Ankunft im Parlament in Neu-Delhi
तस्वीर: Reuters

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को लोक सभा में विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक प्रस्तुत कर दिया. विधेयक का उद्देश्य है पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना. विपक्ष का आरोप है कि ये विधेयक मूलतः पड़ोसी देशों से आने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए लाया जा रहा है और इसके कारण भारत में पहली बार धर्म नागरिकता का एक आधार बन जाएगा.

विपक्ष का मानना है कि भारत संवैधानिक रूप से एक पंथ-निरपेक्ष राष्ट्र है जो धर्म के आधार पर नागरिकों के बीच में भेदभाव नहीं कर सकता. इस वजह से धर्म को नागरिकता का आधार बनाना संविधान की मूल भावना के ही खिलाफ है. जैसा की अनुमान लगाया जा रहा था, सोमवार को लोक सभा में विधेयक को भारी विरोध का सामना पड़ा. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, एआईएमआईएम, एआईयूडीएफ, आईयूएमएल समेत लगभग सभी विपक्षी दलों ने विधेयक का विरोध किया और सरकार से उसे ना लाने को कहा.

कांग्रेस सांसद शशि थरूर और आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन जैसे कुछ सांसदों ने सदन में यह भी कहा कि ये विधेयक असंवैधानिक है और इस तरह के विधेयक लाना विधायिका के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं है. लोक सभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ये बिल देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ नियोजित विधेयक है. तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगाता रॉय ने कहा कि बिल विभाजनकारी है और इसका उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो हर भारतीय नागरिक को धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है.

Das indische PArlament in Neu Dheli
तस्वीर: DW/A. Chatterjee

विधेयक के समर्थन में गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष से पूछा कि क्या पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1971 में बांग्लादेश से आये शरणार्थियों को नागरिकता देना भी असंवैधानिक था? उन्होंने बिल के मुस्लिम-विरोधी होने के आरोप को ठुकराते हुए कहा कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, पारसी और जैन समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव  हुआ है, इसलिए सिर्फ उन्हें ही नागरिकता मिलेगी. उन्होंने यह भी कहा कि इस बिल की आज जरूरत इसलिए पड़ी है क्योंकि 1947 में कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा कर दिया था. 

विधेयक का इतना विरोध हुआ कि उसे पेश करने का प्रस्ताव पारित करने के लिए लोक सभा अध्यक्ष को इलेक्ट्रॉनिक मतदान करना पड़ा. मतदान में सत्तापक्ष का पलड़ा भारी पड़ा और विधेयक को लाये जाने के समर्थन में 299 मत पड़े. विरोध में सिर्फ 82 मत पड़े और विधेयक लोक सभा के पटल पर रख दिया गया. 

बिल का विरोध पूर्वोत्तर भारत समेत देश के कई इलाकों में सड़कों पर भी हुआ. असम की राजधानी गुवाहाटी में कई संगठनों ने बिल के खिलाफ बंद का आह्वान किया था जो सफल रहा.

Indien Proteste in Assam
तस्वीर: DW/P. Mani

माना जा रहा है कि सरकार इसी हफ्ते विधेयक को लोक सभा से पारित करा कर राज्य सभा में भी लाना चाह रही है. लोक सभा में सरकार का संख्याबल ज्यादा है इसलिए सरकार को उम्मीद है कि निचले सदन से वो विधेयक को आसानी से पारित करा लेगी. असली चुनौती राज्य सभा में आएगी जहां सरकार बहुमत में नहीं है और ऐसी पार्टियों से समर्थन मिलने की उम्मीद लगाए हुए है जो न सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा हैं और ना मुखर रूप से विपक्ष की भूमिका निभाती हैं.

एनडीए सरकार एक बार पहले भी इस विधेयक को संसद से पारित कराने की कोशिश कर चुकी है. पिछली लोकसभा में भी एनडीए सरकार इस बिल को संसद में लाई थी और इसे लोकसभा से पारित भी करा लिया था. लेकिन राज्यसभा में बिल को भारी विरोध का सामना पड़ा और अंततः यह गिर गया था.

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