कोरोना ने रोका गया में पितृपक्ष महासंगम, नहीं होगा पिंडदान
२८ अगस्त २०२०इसी वजह से इस बार पितृपक्ष के दौरान मोक्षभूमि गया में लोग अपने मृत परिजनों यानि पितरों की शांति व मोक्ष के लिए पिंडदान व तर्पण नहीं कर सकेंगे. आज के पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. सौ साल पहले जब पूरी दुनिया में स्पेनिश फ्लू फैला था तब भी न तो विष्णुपद मंदिर का कपाट बंद हुआ था और न ही पितृपक्ष महासंगम पर रोक लगाई गई थी.कोरोना महामारी के कारण मंदिर का कपाट तो बंद हुआ ही, पितृपक्ष मेले की इजाजत भी नहीं दी जा रही.
बिहार की राजधानी पटना से करीब 105 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गयाधाम. इसे गया के नाम से भी जाना जाता है. यह भूमि जितनी हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण है उतनी ही बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए भी. गया हिन्दुओं के लिए मोक्षभूमि है तो बौद्धों के लिए ज्ञानभूमि. हिन्दू धर्मग्रंथों की मान्यता व सनातन धर्म की आस्था के अनुसार मृतात्माओं को मोक्ष व शांति तभी मिलती है जब उनके वंशज गया आकर अंत:सलिला फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर में अक्षयवट के नीचे उनके नाम पर श्राद्ध करते हैं. श्राद्ध की तीन मुख्य विधियां हैं; पिंडदान, तर्पण व ब्राह्मण भोजन. श्राद्ध के एक दिन, सात दिन या 17 दिन के कर्मकांड का विधान है. फल्गु तट पर बसे गयाधाम में पिंडदान व तर्पण का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि अनादि काल से यहां पितरों का श्राद्ध किया जाता रहा है. महाभारत के वनपर्व में पांडवों की गया यात्रा का उल्लेख है. भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान यहीं किया था.
हजारों लोगों की रोजी-रोटी पर आफत
इस साल कोविड-19 के कारण तीन सितंबर से शुरू होकर 17 सितंबर तक चलने वाले पितृपक्ष मेले को जनहित में स्थगित कर दिया गया है. मेले का आयोजन करने वाले बिहार सरकार के राजस्व व भूमि सुधार विभाग द्वारा कहा गया है कि कोविड-19 के कारण पितृपक्ष मेला में आने वाले पिंडदानियों द्वारा फिजिकल डिस्टेंशिंग के अनुपालन में होने वाली कठिनाइयों एवं संभावित संक्रमण के मद्देनजर जनहित में पितृपक्ष मेला, 2020 स्थगित किया गया है. इसके साथ केंद्र व बिहार सरकार के निर्देशों का भी हवाला दिया गया है. यह भी कहा गया है कि इस आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ द इपिडेमिक डिजीज एक्ट,1987 एवं राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी.
विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के सदस्यों के साथ बैठक में गया के जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने आग्रह किया कि वे प्रदेश के साथ ही देशभर से आनेवाले तीर्थयात्रियों को यह सुझाव दें कि कोरोना संकट के कारण यहां नहीं आएं. मेला में जुटने वाली भीड़ के कारण पंडा समाज व इनसे जुड़े लोगों तथा तीर्थयात्रियों के बीच कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका के कारण ही यह निर्णय लिया गया. एसएसपी राजीव मिश्रा ने भी पंडा समाज से इस निर्णय के अनुपालन में सहयोग करने का आग्रह किया. बिहार में पूर्व में जारी आदेश के अनुसार छह सितंबर तक लॉकडाउन लागू है. बिहार सरकार के इस निर्णय से हजारों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं.
अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में लगने वाले पंद्रह दिनों के पितृपक्ष को लेकर यहां एक महीने तक पितृपक्ष मेला लगता है. आंकड़ों के मुताबिक करीब छह लाख से ज्यादा लोग हर साल अपने पुरखों की आत्मा की शांति के लिए इस अवधि में यहां आकर पिंडदान करते हैं. इनमें बड़ी संख्या में विदेशी भी शामिल रहते हैं. श्राद्ध कर्मकांड कराने वाले गयापाल पंडों व ब्राह्मणों के अलावा होटल, लॉज, धर्मशाला, रेस्तरां व वाहन संचालक एवं छोटे-छोटे दुकानदारों की सालभर की रोजी-रोटी इसी पितृपक्ष मेले पर आश्रित है. इससे होने वाली आय से ही वे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. पंडा राजन सिजुआर कहते हैं, "पितृपक्ष मेले में सबको मिलाकर करीब सौ से डेढ़ सौ करोड़ का टर्नओवर होता है. पंडा समाज, ब्राह्मण और छोटे-मोटे व्यवसायी छह माह से वर्षभर की कमाई इन्हीं दिनों में कर लेते थे." दुकानदार बाबूलाल कहते हैं, "देवघाट पर करीब पचास साल से पिंडदान की सामग्री बेच रहा हूं लेकिन आजतक ऐसा नहीं हुआ. लॉकडाउन की बंदी के पहले डेढ़-दो हजार की बिक्री हो जाती थी पर अब तो पचास-सौ पर भी आफत है. छह महीने से तो विष्णुपद मंदिर भी बंद है. उम्मीद थी कि पितृपक्ष मेले में सब ठीक हो जाएगा लेकिन अब तो चिंता सता रही कि दुकान का किराया कैसे दूंगा. सरकार ने गलत निर्णय लिया है. सब कुछ सोच कर आदेश जारी करना चाहिए था."
सरकारी फैसले का विरोध
कर्मकांड में इस्तेमाल की जाने वाली पीतल-कांसा के बर्तन बेचने वाले विजय कहते हैं, "इस मेला का एक साल से इंतजार रहता है. लॉकडाउन के कारण दुकानदारी पहले से ही चौपट है. मेले में पिछले साल अच्छी बिक्री हुई थी. इसलिए कर्ज लेकर माल मंगवा लिया था. अब तो पूंजी भी फंस गई, सूद के पैसे कहां से दूंगा." होटल मालिक रमेश कुमार कहते हैं, "कोरोना के कारण व्यवसाय तो चौपट हो गया है. सालभर पहले से हमारे यहां कमरे बुक रहते थे. एक तो कोई बुक नहीं करा रहा और मेला स्थगित होने की जानकारी मिलने पर जिन्होंने बुकिंग कराई थी, उन्होंने भी कैंसिल करा लिया. उम्मीद थी कि अब सब ठीक हो जाएगा लेकिन समझ नहीं आ रहा, स्टॉफ को तनख्वाह कहां से दूंगा." ऑटो चलाने वाले बबलू यादव का कहना है, "छह महीने से लोन की किस्त नहीं जमा की. पितृपक्ष मेले में कमाई की उम्मीद थी. अब तो एजेंसी वाले गाड़ी खींच कर ले ही जाएंगे."
गया के पंडों ने सरकार के इस निर्देश का विरोध करना शुरू कर दिया है. विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य महेश लाल गुप्त कहते हैं, "पितृपक्ष मेले को स्थगित किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. धर्म और आस्था पर रोक लगाई जा रही है. समिति इसकी निंदा करती है." वे कहते हैं, "पितृपक्ष मेले पर निर्भर हजारों लोगों के समक्ष भूखों मरने की नौबत आ गई है. उनकी जीविका का सवाल है. जो लोग पिंडदान करना चाहते हैं उन्हें गया आने दिया जाए. हम पंडा समाज के लोग कोरोना गाइडलाइन के अनुसार पिंडदान व तर्पण कराने को तैयार है. इस दौरान फिजिकल डिस्टेंशिंग का पूरा ख्याल रखा जाएगा. सरकार चुनाव करा सकती है, बाजारों को खोल सकती है तो पिंडदान करवाने में क्या समस्या है." समिति के एक और सदस्य शंभूलाल विट्टïल कहते हैं, "पिंडदान के लिए आए यजमानों की दक्षिणा से पंडा समाज के दो सौ से ज्यादा परिवारों के लोगों का सालोंभर भरण-पोषण होता था. छह माह से मंदिर बंद होने के कारण इनलोगों की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है. इसलिए हमलोगों ने पितृपक्ष मेला आयोजित करने के लिए निवेदन किया था किंतु प्रशासन ने मेला स्थगित कर ही दिया." गया के विधायक व बिहार के कृषि मंत्री डॉ प्रेम कुमार ने भी मेला स्थगित किए जाने पर असहमति जताई है. उन्होंने कहा, "वे इस संबंध में प्रधानमंत्री को पत्र लिखेंगे. पितृपक्ष मेले पर यहां के लोगों की रोजी-रोटी निर्भर है. इसे स्थगित करने से लोगों के सामने आर्थिक संकट की स्थिति आ जाएगी."
ऑनलाइन पिंडदान पर एतराज
पितृपक्ष मेले के स्थगित होने के साथ ही ऑनलाइन पिंडदान की चर्चा ने जोर पकड़ा. बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम ने छह साल पहले इसकी व्यवस्था की थी. जो लोग किसी कारण से गया नहीं आ सकते उनके लिए निगम ने ई-पिंडदान के तहत वेबसाइट लांच किया था. जिसमें पैकेज के तहत मांगी गई राशि का भुगतान करने पर उनके पितरों का विष्णुपद मंदिर एवं अक्षयवट में पिंडदान व फल्गु में तर्पण का प्रावधान है. बाद में कर्मकांड की तस्वीर व वीडियो संबंधित व्यक्ति को उपलब्ध करा दी जाती है. गया के पंडा समाज ने इसे शास्त्र के प्रतिकूल बताते हुए प्रारंभ से ही ई-पिंडदान का विरोध किया है. उनका कहना है कि कुल (वंश) के बाहर का कोई व्यक्ति कैसे पिंडदान कर सकता है.
विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति व चौदह सईया इलाके गयापाल तीर्थ पुरोहित के सदस्यों ने इस व्यवस्था का विरोध करते हुए एकबार फिर बीते बुधवार को कहा कि सनातन धर्म में ऑनलाइन पिंडदान का कोई महत्व नहीं है. दोनों संगठनों ने संयुक्त रूप से कहा, "ऑनलाइन पिंडदान शास्त्र के अनुकूल नहीं है. ऑनलाइन दर्शन पर जब हाईकोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया तो ऑनलाइन पिंडदान कैसे हो सकता है. पिंडदान के लिए गया आना ही होगा. तभी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी. अपने हाथों पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है. ऑनलाइन के नाम पर उन्हें ठगा जा रहा है." समिति के सदस्य राजन सिजुआर कहते हैं, "पिंड, पानी व मुखाग्नि पुत्र के हाथ से ही पिता को दिया जाता है. पिता के प्रति पुत्र की यह आस्था है जिसका प्रतिफल गया आकर ही मिलता है. सरकार की यह व्यवस्था धर्मसंगत नहीं है."
श्रावणी मेले पर भी कोरोना की काली छाया
विश्वविख्यात श्रावणी मेला भी इस बार कोविड-19 की भेंट चढ़ गया. हर वर्ष के सावन महीने की तरह इस बार न तो बोलबम का जयकारा सुनने को मिला और न ही देश-विदेश के भगवा कांवरियों का जत्था दिखा. बिहार का ऐसा कोई शहर नहीं होगा जहां सावन के महीने में कंधे पर कांवर लेकर चलने वाले श्रद्धालु न दिखते होंगे. द्वादश ज्योर्तिलिंगों में एक झारखंड के देवघर स्थित कामना ज्योर्तिलिंग की महिमा व श्रद्धालुओं की संख्या का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सावन माह की पहली सोमवारी पर करीब दो लाख की भीड़ यहां पहुंचती थी. देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा नेपाल, श्रीलंका व भूटान के श्रद्धालु भागलपुर जिले के सुल्तानगंज स्थित अजगैबीनाथ मंदिर से गंगाजल लेकर देवघर जिले के वैद्यनाथ धाम मंदिर के बीच की 104 किलोमीटर की यात्रा कांवर लिए पैदल ही पूरी करते थे. उनके द्वारा लाया गया जल वैद्यनाथ धाम मंदिर में शिवलिंग पर अर्पित किया जाता था. कांवरिया पथ पर लाखों लोगों के रात-दिन चलने से 24 घंटे एक माह तक भगवा पट्टी बनी रहती थी. किंतु इस बार यह सब कल्पना भर रह गई.
कोरोना के खौफ से यात्रा की इजाजत नहीं दी गई नतीजतन कांवरिया पथ और इसके साथ के गांवों में सन्नाटा छाया रहा. गांव के लोग महीने भर कांवर व इससे संबंधित सामग्री, चाय-नाश्ता, भोजन, रेडिमेड कपड़े, प्लास्टिक के डिब्बे-बर्तन, फल-फूल व जूस की दुकान खोल सालभर की कमाई कर लेते थे. इतना ही नहीं कई अस्थाई रेस्टहाउस खुल जाते थे जिसके किराये से लाखों की आमदनी होती थी. एक अनुमान के मुताबिक श्रावणी मेले की वजह से करोड़ों का टर्नओवर होता था. अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केवल कांवरिया पथ के किनारे कोई ऐसा दुकानदार नहीं होगा जिसकी कमाई पचास-साठ हजार से कम होती थी. इस पथ के किनारे की जमीन के मालिक केवल किराये के तौर पर एरिया के हिसाब से दस लाख तक की कमाई कर लेते थे. ट्रांसपोर्टरों को भी अच्छी-खासी चपत लग गई. हालांकि, गुरुवार को झारखंड सरकार ने देवघर के ऐतिहासिक देवघर मंदिर एवं दुमका के बासुकीनाथ मंदिर में सीमित संख्या में दर्शन की अनुमति दे दी है. अब बैद्यनाथ मंदिर में एक घंटे में 50 तथा बासुकीनाथ मंदिर में 40 श्रद्धालु प्रवेश पा सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने ऑनलाइन दर्शन को खारिज करते हुए झारखंड सरकार को इन दोनों मंदिरों को खोलने का आदेश दिया था. कोर्ट का कहना था कि देश खुल रहा तो धार्मिक स्थल क्यों बंद रहने चाहिए. कोरोना संकट के कारण हर क्षेत्र में ऐसे बदलाव देखने को मिल रहे जिसकी कल्पना भी बेमानी थी.
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