बेहतर वेतन की मांग करतीं आशा कार्यकर्ता
२८ अगस्त २०२०महाराष्ट्र के एक गांव में अश्विनी म्हास्के एक घर से दूसरे घर जा रही हैं. उन्हें इस बीच सांस लेने तक की फुर्सत नहीं है. मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता यानी आशा कार्यकर्ता देश के ग्रामीण इलाकों में मातृ और शिशु सेवाएं देती हैं. कोरोना वायरस के समय में भी इनका योगदान कम नहीं हुआ है. कोविड-19 के जोखिमों के बावजूद आशा कार्यकर्ता गांवों में घर-घर जाकर स्वास्थ्य देखभाल और अन्य बीमारियों के नियंत्रण के कार्य में जुटी हुईं हैं.
म्हास्के अपना लक्ष्य पूरा करने के लिए घर-घर भागकर जा रही हैं, इसके बदले में उन्हें औसत चार हजार रुपये मिलेंगे जो कि उनके मुताबिक एक मजाक है. ग्रामीण भारत में अक्सर स्वास्थ्य सुविधाओं तक सीमित या सीधी पहुंच नहीं होती है. वहां सामान्य तौर पर मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) संपर्क का पहला बिंदु है. आशा कार्यकर्ता ही घर-घर जाकर जमीनी हालात की रिपोर्ट सरकार तक पहुंचाती हैं.
नियमित ड्यूटी के अलावा आशा कार्यकर्ताओं ने घर घर जाकर कोरोना वायरस के मरीजों की जानकारी इकट्ठा की. दस लाख के करीब आशा कार्यकर्ताओं ने इस महीने बेहतर वेतन, नौकरी की मान्यता और कोरोना से बचने के लिए सुरक्षा उपकरण की मांग को लेकर हड़ताल की थी. 33 साल की म्हास्के कहती हैं, "अब हम तय घंटों से ज्यादा काम करते हैं, कोई छुट्टी नहीं." कोरोना वायरस के पहले म्हास्के खेत पर भी काम करती थी ताकि अतिरिक्त कमाई हो पाए लेकिन वह भी बंद हो गया है.
छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में संक्रमण के फैलने के साथ ही जानकारों का कहना है कि भारत में वायरस के चरम पर पहुंचने में अभी समय है. ऐसे में पहले से ही भार झेल रहे स्वास्थ्यकर्मी और आशा कार्यकर्ताओं का संघर्ष और बढ़ जाएगा. म्हास्के ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से फोन पर कहा, "हम आशा कार्यकर्ता सरकार से यही कहना चाहेंगे कि हमारे बारे में भी सोचें."
बेहतर वेतन की मांग
देश के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य देखभाल के लिए 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की स्थापना की गई थी. आशा कार्यकर्ता मातृ देखभाल से लेकर टीकाकरण अभियान और परिवार कल्याण जैसे कार्यक्रम में शामिल हैं. आशा कार्यकर्ताओं के साथ वॉलंटियर की तरह व्यवहार किया जाता है और वे राज्य सरकारों के न्यूनतम वेतन कानून के तहत नहीं आती हैं.
कोरोना वायरस की वजह से उनके मूल मासिक वेतन में 33 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इसके अलावा उन्हें 50 रुपये पांच बच्चों के टीकाकरण सुनिश्चित कराने के बदले में मिलते हैं. गर्भवती महिला को प्रसव कराने के लिए अस्पताल ले जाने के बदले 600 रुपये मिलते हैं.
श्रमिक अर्थशास्त्री और अधिकार समूह के सदस्यों का कहना है कि आशा कार्यकर्ता को उनके काम के बदले कम वेतन मिलता है. झारखंड के जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के केआर श्याम सुंदर कहते हैं, "सामुदायिक सेवा के नाम पर वे समान मेहनताना या अधिकार के बिना काम कर रहे हैं. इससे अपमान और मर्यादाहीन श्रम होता है...उन्हें नियमित करने से उनके द्वारा समाज के लिए किए गए कार्य की आर्थिक लागत बहुत कम होगी."
आशा कार्यकर्ताओं की 10,000 रुपये मूल वेतन प्रति माह की मांग पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव विकास शील कहते हैं, "उन्हें कार्य आधारित प्रोत्साहन मिलते हैं और हमारे पास पहले से ही एक मानक सेट है...जो कि हर महीने 5,000 से लेकर 6,000 तक दे देगा." उन्होंने कहा कि कोविड-19 ड्यूटी के लिए एक हजार रुपये बढ़ा दिए गए हैं.
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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