कितने अहम हैं अमेरिकी मिडटर्म चुनाव?
५ नवम्बर २०१८एक तरफ डॉनल्ड ट्रंप देश के एक कोने से दूसरे कोने का चक्कर लगा रहे हैं, लाल टोपियां लगाए गोरे चेहरों का हुजूम उनकी रैलियों में दो साल पहले की तरह ही अमेरिका को फिर से महान बनाने के नारे बुलंद कर रहा है, तो दूसरी तरफ बराक ओबामा अपने चिर-परिचित अंदाज में उस अमेरिका को जगाने की कोशिश कर रहे हैं जिसने आठ साल पहले एक अश्वेत राष्ट्रपति को चुनकर इतिहास रचा था.
चुनाव में दांव पर हैं कांग्रेस के निचले सदन या प्रतिनिधि सभा की सभी 435 सीटें, सीनेट की लगभग एक तिहाई यानी 35 सीटें और 50 राज्यों में से 36 के गवर्नरों की सीटें. फिलहाल कांग्रेस के दोनों सदनों में रिपब्लिकन पार्टी बहुमत में है लेकिन चुनावी सर्वेक्षणों की मानें तो प्रतिनिधि सभा डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ जाती नजर आ रही है. वहीं सीनेट में राष्ट्रपति ट्रंप की पार्टी अपनी बढ़त बनाए रखेगी इसके पूरे आसार हैं.
भारत, यूरोप या दुनिया के किसी और कोने में बैठे लोगों को ये सब अमेरिकी घरेलू राजनीति के एक चटपटे मसालेदार एपिसोड की तरह लग सकता है लेकिन सही मायने में देखें तो यह चुनाव अमेरिका के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए बेहद अहमियत रखते हैं. और उसकी सबसे बड़ी वजह है एक शख्स - डॉनल्ड ट्रंप.
चुनावी टिकट पर भले ही ट्रंप ना हों लेकिन इस बार का हर वोट एक तरह का रेफरेंडम है उनकी नीतियों और उनकी पिछले दो सालों की राजनीति पर. और राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इसके नतीजे न सिर्फ आने वाले दिनों में, बल्कि दशकों तक अमेरिका और पूरी दुनिया की दिशा तय करेंगे. जिन पहलुओं पर इसका सीधा असर नजर आ सकता है, उनमें सबसे अव्वल है राजनीतिक तेवर.
ट्रंप ने अपने होटलों, कसीनों, टोपियों और टाईयों की तरह अपनी राजनीति को भी अलग ब्रांड की तरह पेश किया है जिसका मूलमंत्र है, हर हाल में जीत. इसकी खासियत है पूरे देश को साथ लाने की कोशिश के बजाए सिर्फ अपने कट्टर समर्थकों को जोश में भरना और एकजुट रखना यानी घोर ध्रुवीकरण. इसके लिए विपक्ष के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करना पड़े, दसियों झूठ बोलने पड़ें, मीडिया की विश्वसनीयता खत्म करनी पड़े या फिर एक अंजान दुश्मन का डर पैदा करना पड़े, ट्रंप राजनीति में सबकुछ जायज है.
अगर इस चुनाव में रिपब्लिकंस की जीत होती है, तो यह सीधे तौर पर ट्रंप राजनीति की जीत होगी. इसके पूरे आसार हैं कि पूरी दुनिया में ये दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी राजनीति का एक कामयाब मॉडल बनकर उभरेगा और उसके मैस्कट होंगे डॉनल्ड ट्रंप.
इसका दूसरा सीधा असर दुनिया भर में आप्रवासन और शरणार्थी नीतियों पर दिख सकता है. ट्रंप ने अपने दो सालों में आप्रवासन नीतियों को लगातार सुर्खियों में रखा है, कभी बंद हो चुकी स्टील मिलों की वजह बताकर, कभी कुछ देशों से आने वाले मुसलमानों पर रोक लगाकर, तो कभी अमेरिका की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के लिए खतरा बता कर.
देखिए कुछ तस्वीरें जिनमें आपको ट्रंप ही ट्रंप दिखेंगे
जैसे-जैसे चुनाव करीब आए हैं, इस मामले पर उन्होंने अपने तेवर और कड़े किए हैं. सेंट्रल अमेरिका से अमेरिका में शरण मांगने आ रहे लोगों की भीड़ को उन्होंने अमेरिका पर आक्रमण का नाम दिया है. दक्षिणी सीमा पर 15,000 सैनिक तैनात करने का एलान किया है. आप्रवासियों को बलात्कारी और हत्यारा करार दिया है. और उनके समर्थकों के लिए यह आप्रवासन अब सबसे अहम मुद्दा बन चुका है. भारत, जर्मनी, ब्रिटेन, ब्राजील समेत दुनिया के कई हिस्सों में आप्रवासन एक गर्म राजनीतिक बहस का हिस्सा है और ट्रंप की आप्रवासन नीति यदि एक कामयाब चुनाव की चाबी बनती है, तो फिर उस चाबी के डुप्लीकेट पूरी दुनिया में बनेंगे.
विश्व व्यापार नीति, विदेश नीति, जलवायु परिवर्तन, धार्मिक सहिष्णुता, इन सब मुद्दों पर ट्रंप का एक अलग ही रुख रहा है और इस चुनाव की जीत-हार इन सब की भी दिशा तय करेगी. ओबामा ने कहा है कि इस चुनाव में किसी और चीज से ज्यादा अमेरिका का चरित्र दांव पर है.
जब 2016 में ट्रंप की जीत हुई तो बहुतों ने कहा कि लोग बदलाव चाहते थे, इसलिए उन्हें वोट दिया. कुछ ने कहा ट्रंप की नफरत फैलाने वाली, नस्लवाद को बढ़ावा देने वाली, लोगों को बांटने वाली, डर फैलाने वाली बातें बस चुनावी बातें हैं और वे ऐसा कुछ नहीं करने वाले जो वे कह रहे हैं.
दो साल बाद, छह नवंबर को होने वाले चुनावों में दुनिया की नजर इस बात पर भी होगी कि अब जब अमेरिका ट्रंप की चुनावी बातों को हकीकत में तब्दील होते देख रहा है, तब भी वह उन्हें अपनाएगा या फिर उन्हें नकार देगा.
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