कट्टरपंथ को रोकने के लिए जर्मनी में मौलवियों की ट्रेनिंग
१० नवम्बर २०२०जर्मन इस्लाम कॉन्फ्रेंस की स्थापना 2006 में इस उद्देश्य से की गई थी कि देश के मुस्लिम समुदायों के साथ नियमित संवाद हो सके. जर्मनी में करीब 40 लाख मुसलमान रहते हैं, जो विभिन्न देशों से आते हैं. अलग अलग आबादी का होने के कारण सबकी अपनी मस्जिदें भी नहीं हैं और जो मस्जिदें हैं भी उनमें काम करने वाले इमामों की ट्रेनिंग पहले दूसरे देशों में होती रही है.
मुस्लिम परिवारों के बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने का मसला भी लंबे समय से बहस में था, और कोई केंद्रीय संगठन नहीं होने के कारण सरकार के साथ बात करने वाली कोई प्रतिनिधि संस्था नहीं थी. जर्मनी के प्राथमिक स्कूलों में ईसाई धार्मिक शिक्षा दी जाती है, लेकिन इसका आधार कैथोलिक और इवांजेलिक संगठनों के साथ सरकार का समझौता है.
जर्मन इस्लाम कॉन्फ्रेंस की स्थापना के बाद से राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम प्रतिनिधियों के साथ सरकारी प्रतिनिधियों की बैठक के अलावा जरूरी मुद्दों पर चर्चा भी होती रही है. इनमें स्कूलों में धार्मिक शिक्षा के अलावा इस्लामी धर्मशास्त्र की पढ़ाई और इमामों की ट्रेनिंग भी शामिल है. इस्लाम कॉन्फ्रेंस ने मुस्लिम समुदाय को धार्मिक मामलों में सलाह देने वाले मौलवियों के प्रशिक्षण का बीड़ा उठाया है.
भारत के जफर खान जर्मन इस्लाम कॉन्फ्रेंस के इस कदम को बहुत महत्वपूर्ण कदम मानते हैं. जर्मनी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद एक बिजली कंपनी में काम करने वाले जफर खान का कहना है कि बच्चों के लिए उनके पुरखों के धर्म के बारे जानना जरूरी है. यह उन्हें नैतिक संबल भी देता है. भारतीय मुसलमानों की पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण मुस्लिम परिवारों को अपने बच्चों को अब तक तुर्क मौलवियों के पास भेजना होता था. लेकिन पढ़ाई की भाषा तुर्की होने के कारण बच्चों को काफी दिक्कत होती है. जफर खान कहते हैं, "चूंकि जर्मनी में पैदा होने वाले बच्चों की भाषा जर्मन है, इसलिए जर्मन में प्रशिक्षित इमाम उन्हें बेहतर शिक्षा दे पाएंगे."
जफर खान इसके एक और फायदे की ओर भी इशारा करते हैं. वे कहते हैं कि जर्मनी में प्रशिक्षित इमाम बच्चों को मॉडरेट इस्लाम की शिक्षा देंगे. मुस्लिम देशों से आने वाले मौलवी इस्लाम की अपने अपने देशों में चलने वाली परिभाषा सिखाते हैं, जिसकी वजह से बच्चों में उलझन पैदा होती है. ये समस्या यूरोपीय समाज भी झेल रहा है. अपने यहां पैदा हुए बच्चों में बढ़ते कट्टरपंथ से वह परेशान है. देश के अंदर मौलवियों की शिक्षा से भविष्य में धार्मिक शिक्षा की जिम्मेदारी ऐसे लोगों के कंधों पर होगी जो खुद भी पश्चिमी समाजों में पले बढ़े हैं और यहां के बच्चों और किशोरों की जरूरतों से वाकिफ हैं.
जर्मन गृह मंत्रालय में राज्य सचिव मार्कुस कैर्बर का कहना है कि विदेशों से स्वतंत्र इमाम ट्रेनिंग का कट्टरपंथ पर काबू पाने की कोशिशों में अहम स्थान होगा. उन्होंने कहा है, "जर्मनी में रहने वाले मुस्लिम समुदाय द्वारा जर्मन भाषा में इमाम प्रशिक्षण विदेशों से गलत असर डालने की कोशिशों के खिलाफ हमारी रणनीति है." कैर्बर का कहना है कि कट्टरपंथ का आकर्षण बहुत मुश्किल मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है और अक्सर इंटरनेट पर हो रहा है.
ओसनाब्रुक शहर में इमामों के प्रशिक्षण के लिए इस्लाम कॉलेज की शुरुआत की गई है. वहां मुस्लिम संगठनों से स्वतंत्र इमाम प्रशिक्षण का एक प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. राज्य सचिव कैर्बर का कहना है कि जर्मनी में रहने वाले मुस्लिम नागरिकों में धार्मिक मामले अपने हाथों में लेने की ललक है. ओसनाब्रुक के इस्लाम कॉलेज के जरिए सकारात्मक पहचान वाले एक संस्थान की स्थापना हुई है. अप्रैल 2021 से इस कॉलेज में इमाम, मौलवियों और समुदायिक सलाहकारों को प्रशिक्षण दिया जाएगा. इमाम का प्रशिक्षण पाने के लिए न्यूनतम योग्यता इस्लामिक धर्मशास्र में बैचलर की डिग्री है.
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