लोकतंत्र पर भरोसा कायम लेकिन इस्लाम पर है संदेह
१२ जुलाई २०१९बैर्टल्समन फाउंडेशन की अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट, "रिलीजन मॉनीटर" में छपे सर्वे के मुताबिक जर्मनी में धार्मिक सहिष्णुता अब भी कायम हैं. वहीं इस्लाम को लेकर लोग मुश्किलें महसूस करते हैं और लोगों में इसे लेकर नकारात्मकता है. आप्रवासन और वैश्वीकरण के चलते जर्मनी में धार्मिक विविधता बढ़ी है. इस स्टडी में ये भी निकल कर आया है कि लोगों का अब भी लोकतंत्र पर विश्वास बरकरार है.
इस स्टडी के लेखक और धार्मिक समाजशास्त्री ग्रेट पिकेल मानते हैं, "किसी भी धर्म के सदस्य अच्छे डेमोक्रेट बन सकते हैं." सर्वे में शामिल तीन समूहों में विभाजित किए गए लोगों में से तीनों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भरोसा जताया है. पहले समूह में शामिल ईसाईयों में से 93 फीसदी ने लोकतंत्र को बेहतरीन व्यवस्था माना. वहीं 91 फीसदी मुसलमानों और 83 फीसदी अन्य धर्म के लोगों ने भी लोकतंत्र पर भरोसा जताया.
स्टडी में यह भी कहा गया है कि कठोर धार्मिक मान्यताएं, अन्य धर्मों के प्रति असहिष्णुता लंबे समय में लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा हो सकती हैं. स्टडी के लेखकों ने इस बात पर चिंता जरूर जताई कि सर्वे के लिए इंटरव्यू किए गए कुल लोगों में तकरीबन आधों ने इस्लाम को एक खतरा बताया.
जर्मनी के पू्र्वी हिस्से में कम मुस्लिम आबादी है. पूर्वी इलाकों में रहने वाले लोगों के मन में इस्लाम को लेकर संकीर्ण भावनाएं भी हैं. सर्वे में कहा गया है कि पूर्व में रहने वाले 30 फीसदी लोगों ने कहा कि वे मुस्लिम समुदाय को अपने आस-पड़ोस में नहीं देखना चाहते हैं. वहीं पश्चिमी इलाकों में रहने वाले 16 फीसदी लोगों ने भी यही बात कही.
जर्मनी में सेंट्रल काउंसिल ऑफ मुस्लिम के अइमान मत्सियेक ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि उन्हें तो ऐसी स्टडी में इस्लाम के खिलाफ और भी खराब नतीजों की उम्मीद थी. उन्होंने बताया कि समस्या का एक हिस्सा ये है कि पूर्व में धुर दक्षिणपंथी और पॉपुलिस्ट नेता ज्यादा लोकप्रिय हैं जो इस्लाम को लेकर झूठा प्रचार करते हुए उसे कोई धर्म नहीं बल्कि एक विचारधारा बताते हैं. मत्सियेक का ये भी मानना है कि ऐसे नेता लोगों के सामने इस्लाम को एक ऐसी विचारधारा के रूप में पेश करते हैं जो कि पश्चिमी संस्थानों के आदर्शों से उलट है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जर्मनी में करीब 50 लाख मुसलमान रहते हैं. जर्मनी के पश्चिमी राज्य नार्थ राइन-वेस्टफेलिया में सबसे अधिक 15 लाख मुसलमान रहते हैं. हालांकि स्टडी से जुड़ी बैर्टल्समन फाउंडेशन की यास्मीन एल-मेनोर कहती हैं कि इस्लाम को लेकर व्यक्त किए गए संदेह को इस्लामोफोबिया नहीं समझा जाना चाहिए क्योंकि अगर ऐसा होता तो केवल 13 फीसदी लोग ही आप्रवासियों को रोकने के पक्ष में नहीं होते.
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