कट्टर नेता को मौत की सजा
२१ जनवरी २०१३अदालत के जज उबैद हुसैन ने एलान किया कि पिछले साल से भागते फिर रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद को लटका कर मौत की सजा दी जाए. यह अदालत 1971 की बांग्लादेश की आजादी की जंग के दौरान हुए अपराधों की जांच कर रही है.
बांग्लादेश ने 2010 में अंतरराष्ट्रीय क्राइम ट्रिब्यूनल का गठन किया था. हालांकि नाम में अंतरराष्ट्रीय होने के बाद भी इसका अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कुछ लेना देना नहीं और यह पूरी तरह से घरेलू प्राधिकरण है. विपक्षी नेताओं का आरोप है कि इसे राजनीतिक दुर्भावना की वजह से बनाया गया है.
बांग्लादेश के एटॉर्नी जनरल महबूबे आजम ने कहा, "यह देश के लिए ऐतिहासिक दिन है. यह मानवता की जीत का दिन है. बांग्लादेश के लोग इस दिन का लंबे वक्त से इंतजार कर रहे थे. वे 1971 के बाद पहली बार राहत महसूस कर रहे होंगे." पाकिस्तान से जंग के बाद बांग्लादेश 1971 में नया देश बना.
63 साल के मौलाना आजाद ने लंबे अर्से तक टेलीविजन चैनलों पर इस्लाम से जुड़ा कार्यक्रम पेश किया है. वह विपक्षी पार्टी जमाते इस्लामी के सदस्य हैं. जमाते इस्लामी के नौ और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के दो सदस्यों पर युद्ध अपराध के मुकदमे हैं. ये दोनों विपक्षी पार्टियां हैं. दोनों का आरोप है कि ये मामले राजनीतिक हैं. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं ने भी अदालत की कार्यवाही पर सवाल उठाए हैं.
मौलाना आजाद की पैरवी के लिए प्राधिकरण ने अब्दुस शुकूर खान को वकील मुकर्रर किया था. खान का कहना है कि यह मुकदमा फर्जी है, "वह इन अपराधों में शामिल नहीं रहे हैं और युद्ध कि किसी भी किताब में उन्हें पाकिस्तान का साथ देने वाला नहीं बताया गया है."
दूसरी तरफ सरकारी वकील शाहिदुर रहमान का कहना है कि आजाद को उनके गांव वाले “धोखेबाज बच्चू” के नाम से जानते हैं. आजाद फरीदपुर के रहने वाले हैं. रहमान का कहना है, "छह को तो उन्होंने खुद मार डाला था और जनसंहार में साझीदार भी थे." 1980 के दशक में आजाद ढाका की एक मस्जिद में खुतबा दिया करते थे. कहा जाता है कि उनके टीवी शो के बाद बांग्लादेश की उदारवादी सूफी विचारधारा बदली और थोड़ी कट्टर हुई.
आजाद पिचले साल से छिपते फिर रहे हैं और प्राधिकरण में सुनवाई के बाद समझा जाता है कि देश छोड़ कर भाग चुके हैं.
बांग्लादेश को 1947 से 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था. इसके बाद भारत की सेना की मदद से इसने स्वतंत्रता हासिल की, जिसमें हजारों लोगों का खून बहा. मौजूदा सरकार का कहना है कि इसमें तीन लाख लोग मारे गए. उसका आरोप है कि कइयों की हत्या स्थानीय लोगों ने ही की, जिनमें जमात के सदस्य भी शामिल थे और वे पाकिस्तानी फौज का समर्थन कर रहे थे.
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 2010 में इस प्राधिकरण का गठन किया लेकिन इसके बाद से ही यह विवादों में घिरा है. पिछले महीने एक जज ने इस्तीफा दे दिया क्योंकि इंटरनेट के उसके फोन कॉल लीक हो गए थे और इसमें लग रहा था कि वह सरकार के दबाव में है.
सरकार का दावा है कि निष्पक्षता से सुनवाई हो रही है और इसमें अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन किया जा रहा है. पाकिस्तान ने 1971 में ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया, जिसमें हजारों लोग मारे गए. इसके बाद यहां के लोगों ने विद्रोह कर दिया और इंदिरा गांधी के शासन वाले भारत ने उनका समर्थन किया.
एजेए/ओएसजे (एपी, एएफपी)