1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कितने अहम

१८ सितम्बर २०२०

पुलिस स्टेशनों में मानवाधिकार उल्लंघन को रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरा कारगार औजार साबित हो सकता है. कैमरों की मदद से पुलिस स्टेशन में होने वाली गतिविधि और हिरासत में रखे गए लोगों की सही और सटीक हालत भी पता चल सकती है.

https://p.dw.com/p/3ifcY
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

"सच्चाई" की तलाश में जब पुलिस किसी आरोपी को थाने लाती है तो उसके साथ थाने में क्या होता यह वही बता सकता है या वे पुलिसवाले जो उससे पूछताछ कर रहे होते हैं. यहां उस वारदात का जिक्र करना बहुत जरूरी है जो तमिलनाडु के तूतीकोरिन में हुई थी. इसी साल 19 जून को पी जयराज और उनके बेटे बेनिक्स को लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन कर दुकान खोलने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था और आरोप है कि पुलिस ने दोनों की बहुत ही बेरहमी से पिटाई की थी. दोनों की पुलिस हिरासत में इतनी पिटाई हुई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था. दोनों की इलाज के दौरान मौत हो गई. भारत में हिरासत में मौत का मामला नया नहीं है. सालों से पुलिस पर हिरासत में मौत के जिम्मेदार होने के आरोप लगते आए हैं. कई बार पुलिसवालों को इस अपराध के लिए सजा भी हुई है.

"अधिकारविहीन" नागरिक के साथ थाने में किस तरह का व्यवहार होता है यह सबको पता है. मामूली से मामूली आरोपी को "पुलिस बर्बरता", "डंडों से वार" "निजी अंगो को चोट" के साथ अनगिनत घंटे थाने में बिताने पड़ते हैं. यह सब "जांच" और "सच" की तलाश का हिस्सा है. पी जयराज और उनके बेटे बेनिक्स के साथ जो थाने में हुआ वह शायद कभी नहीं होता अगर थाने में सीसीटीवी कैमरे लगे होते. सीसीटीवी कैमरों पर देश में पुलिस सुधार को लेकर सरकारों की उदासीनता साफ तौर पर देखी जा सकती है.

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने थानों में सीसीटीवी के मुद्दे पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को डाटा पेश करने को कहा. देश में करीब 15,000 पुलिस स्टेशन हैं और कई में तो मूलभूत सुविधाएं जैसे कि शौचालय, पीने का स्वच्छ पानी, फोन और वायरलेस सेट तक नहीं है. जस्टिस आरएफ नारीमन, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने राज्यों के मुख्य सचिवों से जानना चाहा कि पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने की क्या स्थिति है.

देश में करीब 10,000 थाने ग्रामीण इलाकों में पड़ते हैं और 5,000 के करीब शहरी इलाकों में हैं. भारतीय पुलिस फोर्स में 23 लाख के करीब कर्मी है. बेंच ने साथ ही कहा, "हम चाहते हैं कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव इसे गंभीरता से और सही मायनों में लें क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़ा है."

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह मानते हैं कि पुलिस स्टेशनों में बहुत सुधार की जरूरत है. वे कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है उसका दूसरा विकल्प नहीं हो सकता है. विक्रम सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया, "जब डिजीटल इंडिया हो सकता है, गांव-गांव नेटवर्क पहुंचाए जा सकते हैं, परीक्षाएं ऑनलाइन हो सकती है तो देश के करीब 15,000 थानों में सीसीटीवी भी लग सकते हैं."

सीसीटीवी ना लगाए जाने को लेकर विक्रम सिंह कहते हैं कि थानों में मारपीट और कानून विरोधी कार्य पर पर्दा डालने को लेकर इसका विरोध हो रहा है. विक्रम सिंह सीसीटीवी को बेहद जरूरी बताते हुए कहते हैं, "सीसीटीवी लग जाने से थानों में थर्ड डिग्री, मारपीट, रिश्वतखोरी, हिरासत में मौत के मामलों पर काबू पाया जा सकता है."

Indien Jalandhar | Polizistinnen bei Yoga Lachtherapie am 1. Januar
पुलिस फोर्स में खाली है पद. तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Mehra

दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने क्राइम सीन की जांच के दौरान वीडियोग्राफी और पुलिसकर्मी के शरीर पर कैमरे लगाने के मुद्दे पर सुनवाई की थी. इस तरह की व्यवस्था पश्चिमी देशों में है जहां पुलिसवालों के शरीर पर बॉडी कैमरे लगे होते हैं और फीड की रिकॉर्डिंग होती है. हालांकि उस समय कोर्ट का ध्यान पुलिस स्टेशनों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने पर केंद्रित था ताकि मानवाधिकार उल्लंघन ना हो पाए. विक्रम सिंह कहते हैं, "अब ऐसे सॉफ्टवेयर आ गए हैं जिनकी मदद से आपको लगातार सीसीटीवी फुटेज देख उल्लंघनों को पकड़ने की भी जरूरत नहीं है. अगर कानून तोड़ा जाता है तो सॉफ्टवेयर इसे पकड़ लेगा और किसी इंसानी दखल की इसके लिए जरूरत नहीं पड़ेगी. थानों में सीसीटीवी से छेड़छाड़ भी नहीं हो पाएगी और कानून का पालन भी पुलिस वाले करेंगे."

पुलिस की कमी

पुलिस बल के ऊपर अत्यधिक भार है. 2017 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति एक लाख की आबादी के लिए 131 पुलिसकर्मी हैं. जो कि स्वीकृत संख्या (181) से काफी कम है. जबकि यूएन द्वारा सिफारिश संख्या (222) से तो काफी कम है. इस वजह से आम पुलिस वालों पर बहुत काम का दबाव रहता है. वे कई बार छुट्टी नहीं मिल पाने के कारण परिवार के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो पाते हैं. ड्यूटी के घंटे भी कई बार ज्यादा होते हैं और इससे उन्हें मानसिक तनाव भी होता है.

विक्रम सिंह कहते हैं कि पुलिस फोर्स में आज की तारीख में 30 फीसदी पद खाली है. सरकार को यह तय कर लेना चाहिए कि इन पदों पर कितनी महिलाएं और कितने पुरुष भर्ती होंगे और इन्हें जल्द भर देना चाहिए. विक्रम सिंह के मुताबिक, "फोर्स में 30 फीसदी महिलाओं की भर्ती होनी चाहिए."

उनका सुझाव है कि पुलिस वालों के लिए रोस्टर सिस्टम लागू होना चाहिए और उन्हें भी परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिलना चाहिए तभी जाकर उनके व्यवहार में बदलाव नजर आएगा.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें