क्या है नासा का 3.6 अरब किलोमीटर लंबा साइक अभियान
१८ अक्टूबर २०२३साइक दरअसल आत्माओं की ग्रीक देवी का नाम है. ग्रीक कथाओं के मुताबिक साइक का जन्म एक इंसान के रूप में हुआ था. बाद में उसने प्यार के देवता इरोज से विवाह कर लिया. लेकिन इटली के खगोलविद एनीबेल डे गासपारीस ने 1852 में जब एक उल्कापिंड को देखा, तो उसे साइक नाम क्यों दिया, यह एक रहस्य ही है.
जब साइक को खोजा गया तो यह सिर्फ 16वां ज्ञात उल्कापिंड था. आज वैज्ञानिक सैकड़ों उल्कापिंडों के बारे में जानते हैं जिनमें मंगल और बृहस्पति के बीच लाखों चट्टानों और पिंडों की एक पूरी पट्टी शामिल है. इस पट्टी में पृथ्वी से बड़े उल्कापिंड तक शामिल हैं.
लेकिन साइक की जगह आज भी खास है. उसका व्यास करीब 226 किलोमीटर है. आलू के आकार का यह उल्कापिंड सबसे बड़ा एम-टाइप उल्कापिंड है, जो मुख्यता लोहे और निकल से बना है. पृथ्वी का अंदरूनी भाग भी इन्हीं धातुओं से बना है.
क्या है साइक अभियान?
नासा ने साइक पर जो यान भेजा है, उसे 3.6 अरब किलोमीटर की यात्रा करनी होगी. इस अभियान में छह साल लगेंगे और इससे मिली सूचनाओं के आधार पर वैज्ञानिक पृथ्वी के उस हिस्से के बारे में और समझ पैदा कर पाएंगे जिस तक पहुंच नहीं है.
एम-टाइप उल्कापिंड दरअसल उन उल्कापिंडों को कहते हैं जो सौरमंडल के शुरुआती दिनों में नष्ट हो गये ग्रहों के टुकड़े हैं. भारी तत्व जैसे कि धातुएं इन उल्कापिंडों के केंद्रीय हिस्सों में धंस गये थे जबकि हल्के तत्व बाहरी परतों में तैरते रहे.
बाद में अन्य पिंडों से टक्कर होने पर ये बाहरी परतें अलग हो गयी और तत्व अलग होकर छितर गये. इस तरह धातुओं से भरपूर केंद्रीय हिस्से बचे रह गये.
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में जियोफिजिक्स विभाग के प्रमुख प्रोफेसर हर्वोये कालचिच कहते हैं कि ये धातु-भरपूर पिंड ग्रहीय भूभागों के अध्ययन के लिए कुदरती प्रयोगशालाएं हैं.
द कन्वर्सेशन पत्रिका में एक लेख में प्रोफेसर कालचिच लिखते हैं, "हमारे धरती के केंद्रीय हिस्सों के अध्ययन के मौजूदा तरीके अप्रत्यक्ष ही हैं. कभी-कभार धरती पर गिरे उल्कापिंडों से हमें सौर मंडल के शुरुआती इतिहास की कुछ झलक मिल जाती हैं, जो हमारे अपने ग्रह का भी इतिहास है. लेकिन यह बहुत कम होता है."
साइक अभियान से उम्मीदें
नासा का साइक अभियान धरती के केंद्र की यात्रा जैसा है, जिसके लिए अत्यधिक तापमान वाले द्रव से भरे पृथ्वी के भूगर्भ तक नहीं जाना होगा.
साइक अभियान का मकसद यह पता लगाना है कि साइक का गर्भ कभी उबलता हुआ रहा होगा या नहीं, जो बाद में ठंडा हो गया. यह भी संभव है कि साइक ऐसे पदार्थ से बना हो जो कभी द्रव अवस्था में नहीं रहा.
नासा यह भी जानना चाहती है कि साइक का धरातल कितना पुराना है. इससे पता चलेगा कि इसकी बाहरी परतें कब टूटी होंगी.
अभियान साइक की रासायनिक संरचना का भी अध्ययन करेगा ताकि पता लगाया जा सके कि लोहे और निकल के अलावा ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, कार्बन, सिलिकन और सल्फर जैसे तत्व भी इस पर मौजूद हैं या नहीं. इन तत्वों की मौजूदगी या गैरमौजूदगी बता सकती है कि हमारे ग्रह का विकास कैसे हुआ.
विवेक कुमार (रॉयटर्स)