जमीन दिए जाने का विरोध कर रहे ग्रामीणों पर लाठीचार्ज
१९ जनवरी २०२२पारादीप बंदरगाह के पास स्थित जगतसिंघपुर जिले के इरासामा तहसील के ढिंकिया गांव में जिंदल स्टील वर्क्स को एक नया संयंत्र लगाने के लिए 1,173.58 हेक्टेयर जमीन 65,000 करोड़ रुपयों में दी गई थी. कंपनी की योजना वहां एक इस्पात संयंत्र, 900 मेगावाट का एक कैप्टिव बिजली संयंत्र और सीमेंट ग्राइंडिंग और मिक्सिंग संयंत्र लगाने की है.
लेकिन ढिंकिया और आस पास के कम से कम दो और गांवों के निवासी जमीन दिए जाने के खिलाफ हैं और पिछले दो महीने से इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि जमीन के चले जाने से इलाके के कम से कम 40,000 लोगों की आजीविका छिन जाएगी.
ग्रामीणों पर लाठीचार्ज
जमीन को बचाने के लिए स्थानीय लोगों ने इलाके में बैरिकेड बना दिए थे ताकि अधिकारी और पुलिस वहां पहुंच न सकें. लेकिन मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि वहां अब पुलिस और प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है.
बताया जा रहा है कि कुछ ही दिन पहले 500 से ज्यादा पुलिसकर्मी ढिंकिया पहुंचे और ग्रामीणों पर लाठीचार्ज कर दिया. स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि लाठीचार्ज में 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं और करीब 30 लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है. घायल लोगों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं.
कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया है कि पुलिस से बचने के लिए गांव के कई लोग अब वहां से भाग गए हैं और छिपे हुए हैं. प्रशासन का कहना है कि जमीन कानूनी प्रक्रिया के तहत दी जा रही है और कई लोगों ने खुद ही मुआवजा लेकर अपनी जमीन प्रशासन को दे दी है.
हालांकि जमीन देने वाले कई लोगों ने पत्रकारों को बताया कि उन्होंने ऐसा भारी मन से किया क्योंकि प्रशासन ने उनके लिए और कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा था. इन गांवों में कई बार जन सुनवाई की गई है और इनमें स्थानीय लोगों ने जोर देकर संयंत्र का विरोध किया है.
पुरानी जगह, नया आंदोलन
इलाके में मुख्य रूप से पान, काजू और धान की खेती और मछली पालन होता है. संयंत्र के लिए जमीन चले जाने पर इन सभी गतिविधियों पर बड़ा असर पड़ेगा और स्थानीय लोगों की आजीविका के साधन चले जाएंगे.
यह इस इलाके के लोगों के लिए पहला आंदोलन नहीं है. 2005 में ओडिशा सरकार ने दक्षिण कोरिया की इस्पात कंपनी पॉस्को के साथ इसी इलाके में एक 1.2 करोड़ टन क्षमता का इस्पात संयंत्र बनाने के लिए समझौता किया था.
ओडिशा सरकार ने इसके लिए 2,700 एकड़ जमीन का अधिग्रहण भी कर लिया था लेकिन एक तरफ जहां कुछ लोगों ने मुआवजा लेकर अपनी जमीन सरकार को दे दी, कई दूसरे लोगों ने संगठित हो कर भूमि अधिग्रहण का विरोध किया. यह संघर्ष करीब 12 सालों तक चला और अंत में पॉस्को को यह परियोजना रद्द करनी पड़ी.
इसके दो ही साल बाद ओडिशा सरकार ने इसी इलाके में संयंत्र बनाने के लिए जिंदल स्टील के साथ समझौता कर लिया. अब देखना यह है कि जंगलों, जमीन और परंपरागत आजीविकाओं बनाम उद्योग और आधुनिकता की इस जंग में इस बार कौन जीतेगा.