जल, जंगल, जमीन और 5500 किलोमीटर की गंगा यात्रा
२९ जून २०२१ये कहानी सेना से रिटायर्ड 60-70 साल के युवाओं की है, जिन्होंने गंगा की परिक्रमा की वैदिक परंपरा को जीवित करने का मन बनाया और इसी के तहत 15 दिसंबर को 6 पदयात्रियों के साथ एक यात्रा शुरू की. लगातार 6 महीने तक वे पैदल चलते रहे और प्रयागराज से गंगासागर पहुंचे, वहां से यू टर्न लेकर गंगा के दूसरी छोर पर आए और आगे बढ़ते हुए फिर गंगोत्री तक पैदल गए, फिर वहां से वापस प्रयागराज पहुंच कर करीब 5530 किलोमीटर की पैदल यात्रा संपन्न की.
इस यात्रा को लेकर दावा किया जा रहा है कि यह अब तक किसी भी नदी या पहाड़ की सबसे बड़ी परिक्रमा है जिसे इससे पहले कोई नहीं कर पाया है. इस यात्रा को पूरा करने वाले दो लोग हैं, शगुन त्यागी और रोहित जाट.
क्या सोचकर निकले थे, और क्या पाया
आर्मी से सेवानिवृत्त सैनिकों ने जब गंगा की परिक्रमा की पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करने का मन बनाया तो उस वक्त उनके दिमाग में सिर्फ एक बात थी कि हमें गंगा देखना है. इन पूर्व सैनिकों ने जिसमें गोपाल शर्मा (79 वर्ष), हेम लोहुमी (72 वर्ष) और मनोज केश्वर (52 वर्ष) शामिल थे, इसके लिए अतुल्य गंगा ट्र्स्ट नाम से एक संस्था बनाई. इसके बैनर तले सबसे पहले परिक्रमा को सुनियोजित तरीके से पूरा करने की योजना पर काम किया गया. इस योजना में कितने दिन लग सकते हैं से लेकर कहां रुकना होगा, किसके साथ संपर्क साधना होगा जैसे तमाम प्रश्नों पर काम करके एक खाका खड़ा किया गया. इसके बाद बारी थी टीम तैयार करने की. इसके लिए कुल छह लोगों को तैयार किया गया.
लेकिन यात्रा के पूरा होते होते सिर्फ दो ही स्थायी पदयात्री रह गए जिन्होंने इस यात्रा को सम्पन्न किया, रोहित जाट और शगुन त्यागी. बाकी के चार पदयात्री हीरेन पटेल, इंदु, रोहित उमराव और कर्नल आरपी पांडे अलग अलग कारणों से यात्रा पूरी नहीं कर पाए. ये दोनों पदयात्री 190 दिनों तक बिना रुके रोज करीब 30-35 किलोमीटर चलते रहे. इनका सहयोग देने के लिए इनके साथ हमेशा गोपाल शर्मा, हेम लोहुमी और मनोज केश्वर रहे. जिससे पदयात्रियों के खाने पीने और रुकने ठहरने की व्यवस्था उनके गंतव्य तक पहुंचने से पहले ही हो सके. इस तरह ये सुनियोजित ढंग से चलते हुए यात्रा सम्पन्न हुई.
अतुल्य गंगा के गोपाल शर्मा जो सबसे वरिष्ठ सदस्य हैं, कहते हैं कि "हम तो बस गंगा को समझना चाहते थे, गंगा में क्या दिक्कतें हैं, गंगा से जुड़े मुद्दे क्या हैं इनको लेकर हमारी जानकारी उतनी ही थी जितनी किसी भी आम भारतीय की गंगा को लेकर होती है. गंगा में प्रदूषण है, और सरकार की पहल के बाद गंगा साफ हो गई है, सफाई का मतलब घाटों का निर्माण, जैसी सतही बातें ही संस्थान के लोग भी जानते थे. लेकिन इस 5530 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद गंगा को देखकर हमारा नजरिया बदल गया. इसे हम लोग गंगा ज्ञान कहते हैं."
गंगा के पथ पर मिला गंगा ज्ञान
गंगा के पथ पर मिले ज्ञान को लेकर मनोज केश्वर का कहना है, "पूरी यात्रा के दौरान हमें यह बात समझ आई कि गंगा भारत को इतने बड़े स्तर को पोसती है, लेकिन गंगा की खुद की कोई जमीन नहीं है. नदी की अपनी जमीन का नोटिफिकेशन होना ही चाहिए. अब तक ऐसा नहीं हो पाने की वजह से जिसकी जैसी मर्जी वो गंगा को कब्जाता रहता है और अपने हिसाब से उसको हड़पने का प्रयास करता है. ये बात हमें उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक गंगा की सूखती जमीन पर बनते खेत देखकर समझ आता है."
किसी भी नदी की निर्मलता के लिए उसका अविरल प्रवाह भी जरूरी है. गंगा पर भी यही बात लागू होती है और इसका महत्व बिहार पहुंचकर पता चलता है जहां सिल्ट की वजह से गंगा घिसट घिसट कर आगे बढ़ने को मजबूर हो गई है. मनोज केश्वर कहते हैं, "इसका नतीजा बिहार की खेती से लेकर वहां के सामाजिक जीवन पर भी देखने को मिलता है."
संगठन के वरिष्ठ सदस्य और सेना पदक से सम्मानित पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल हेम लोहुमी कहते हैं कि "उत्तराखंड और फरक्का में बने बांध गंगा की समस्याओं की जड़ है. इसी के साथ गंगा के किनारे बसे कई बड़े शहर जैसे हरिद्वार, कन्नौज, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, गाजीपुर, पटना, कोलकाता में बगैर ट्रीट किये सीवेज और औद्योगिक गंदगी का सीधे गंगा में जाना एक गंभीर विषय है जिस पर तेजी से काम किए जाने की जरूरत है."
लोगों की भागीदारी की कोशिश
यात्रा के स्थायी पदयात्री रोहित जाट कहते हैं, "वैसे तो ये सपना गोपाल शर्मा ने देखा था, और जब आज से 15 साल पहले उन्होंने बताया था, मैं तभी से इस यात्रा का हिस्सा होना चाहता था लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि मुझे क्या हासिल होगा, मैं बस निकल पड़ा था." 190 दिन की यात्रा ने उन्हें इस बात का अहसास कराया है कि गंगा के किनारे बसे आम लोगों की भागीदारी के बिना गंगा को साफ रखना संभव नहीं है.
रोहित जाट बताते हैं, "जिस तरह लोगों ने कोविड जैसे दौर में भी हमारी मदद कर के अपना समर्थन प्रदर्शित किया, उसी तरह से बगैर सक्रिय जनभागीदारी के गंगा की अविरलता और निर्मलता को कायम रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है." उनका मानना है कि हमारा उद्देश्य गंगा को नहीं खुद को बचाना है, क्योंकि अगर नदी नहीं रही तो हमारा रहना मुश्किल है."
वहीं पूर्व कर्नल मनोज केश्वर कहते हैं कि बीते दिनों गंगा में शवों के बहने की बात उठी थी, हमने गंगा के पथ पर प्रयाग से जाते और लौटते वक्त भी इन शवों को देखा. "हमें ये समझ आया कि गंगा में कोई तो ताकत है जिसकी वजह से गंगा के पानी का इतना दोहन और शोषण होने के बाद भी उसकी गुणवत्ता को वो खुद ही सुधार लेती है." वे कहते हैं कि वैज्ञानिक गंगा की इस खासियत के पीछे बेक्टिरियोफेज को वजह मानते है, लेकिन गंगाजल पर गहन शोध होना बेहद जरूरी है ताकि हम गंगाजल को लेकर एक कदम आगे सोच सकें."
यात्रा के दौरान जुटाए गए आंकड़े
पदयात्रा के दौरान ही एक टीम गंगा में हर स्रोत से होने वाले प्रदूषण की माप, उसकी जियोटैगिंग और पानी की शुद्धता मापने का काम करती रही. इस प्रदूषण का मापन प्रत्येक 15-30 किलोमीटर की दूरी पर किया गया. टीम ने मेजर जनरल विनोद भट्ट के नेतृत्व में गंगा हेल्थ डेशबोर्ड तैयार किया है, जिसके जरिए प्रदूषण और तमाम दूसरे कारकों का डाटा एकत्रित किया है जो आने वाले वक्त में गंगा से जुड़ी समस्याओं से निपटने में एक अहम भूमिका निभा सकती है.
इसी तरह पदयात्रा के दौरान वृक्षमाल कार्यक्रम भी साथ साथ चलता रहा. दरअसल गंगा की मिट्टी को संरक्षित रखने और मैदान में आने वाली बाढ़ के बचाव के लिए जितना जरूरी भूमिगत जल का बचाव है उतना ही जरूरी है इसके फ्लोरा फॉना को सुरक्षित करना है. इसी के चलते ग्रीन इंडिया फाउंडेशन की एक टीम ने गंगा के पास बरगद, नीम और पीपल जैसे करीब 30,000 पेड़ लगाए. लेकिन ये वृक्षारोपण अन्य वृक्षारोपण से अलग इस तरह से रहा कि इन वृक्षों का वहीं के एक निवासी या संगठन को अभिभावक बनाया गया.
अतुल्य गंगा अभियान के पहले चरण के तहत की गई पदयात्रा के संपन्न होने के बाद नदियों पर विगत 15 सालों से काम कर रहे चर्चित नाम अभय मिश्र कहते हैं, "हमने गंगा के दोनों किनारों को देखा है, लेकिन अभी यात्रा पूरी नहीं हुई है, बल्कि इसके बाद हमारी यात्रा शुरू हुई है और हमारी जिम्मेदारी और बढ़ गई है." इस पदयात्रा का लब्बोलुआब ये रहा कि यात्रा से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति वापस लौटते हुए ये संदेश लेकर आया है कि गंगा की जमीन का सीमांकन जरूरी है. नदियों को यदि बचाना है तो उसे भी उसकी संपत्ति में हक देना होगा.