पाकिस्तान में बढ़ते शाकाहारीः पसंद या मजबूरी?
२ अक्टूबर २०१९राजधानी इस्लामाबाद में रेस्तरां चलाने वाले 55 वर्षीय राजा अयूब हर सुबह नजदीकी दुकान से सब्जी खरीदने जाते हैं. वे पिछले 10 साल से रेस्तरां चला रहे हैं. हाल के समय में उन्होंने पाया कि पाकिस्तानियों के बीच शाकाहारी खाना खाने का ट्रेंड बढ़ रहा है. पाकिस्तान के कई सारे लोग शाकाहार को अपना रहे हैं. इसके पीछे कई वजहें हैं लेकिन प्रमुख वजह मीट की कीमतों में तेजी से वृद्धि और बढ़ती गरीबी है. 20 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में आर्थिक मंदी आई हुई है.
पाकिस्तान में खाने का ट्रेंड बदलने की वजह से अयूब हैरान परेशान हैं. वे अपने रेस्तरां में परोसे जाने वाले भोजन में बदलाव पर मजबूर हो गए. वे बताते हैं, "मुझे नहीं पता कि पाकिस्तानियों को क्या हो गया है? उनके खाने की आदत में बदलाव की वजह से मैंने अपने मेन्यू में बदलाव किया है. मीट की खपत लगातार कम हो रही है और यह सबसे निचले स्तर पर आ गया है."
पाकिस्तान के ज्यादातर लोग मीट खाने के लिए जाने जाते है. लेकिन अचानक उनकी आदतों में बदलाव गया है. अयूब को लगता है कि लोग शायद अपने स्वास्थ्य के बारे में चिंतित हैं और इस वजह से मीट नहीं खा रहे हैं. या फिर दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि बढ़ती महंगाई और आर्थिक हालत खराब होने की वजह से उनके पास मीट खरीदने के लिए पैसे न हो. हाल के शोध में पाया गया है पिछले कुछ साल में पूरी दुनिया में शाकाहार अपनाने वालों की संख्या बढ़ी है. अयूब का अनुभव भी उसी शोध के नतीजों से मेल खा रहे हैं.
यूरोमॉनीटर द्वारा बाजार के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पाकिस्तान दुनिया का दूसरा तेजी से उभरता हुआ शाकाहारी राष्ट्र बन गया है. जिस दुकान से अयूब सब्जी खरीदते हैं, वहां हर समय लोगों की भीड़ रहती है. सब्जी बेचने वाले रेहान बताते हैं कि सब्जियों की मांग लगाकर बढ़ती जा रही है. उनकी दुकान पर हमेशा भीड़ लगी रहती है. वहां प्रतिदिन सुबह ताजी सब्जियां आती है और कुछ ही देर में बिक जाती हैं.
बढ़ती महंगाई
पहले पाकिस्तान के मीट खाने वाले लोगों के देश के रूप में जाना जाता था. यहां मीट की कई वैरायटी जैसे करहीस, बीफ, मटन, कोयले की आंच पर पका चिकेन मिलते हैं. लेकिन हाल के समय में बढ़ती महंगाई और खराब आर्थिक हालात की वजह से निम्न आय वर्ग और मध्यम आय वर्ग के लोगों ने मीट खाना या तो कम कर दिया है या फिर बंद. कई लोगों ने इस बात की पुष्टि की कि वे पसंद से नहीं बल्कि मजबूरी में शाकाहारी बने हैं क्योंकि वे मीट नहीं खरीद सकते हैं.
इस्लामाबाद की रहने वाली 40 वर्षीय शहनाज बेगम घरेलू नौकरानी का काम करती हैं. वे मीट की बढ़ती कीमतों से खुश नहीं हैं. पिछले साल के मुकाबले उनकी आय बढ़ी है. इसके बावजूद वे आठ सदस्यों वाले अपने परिवार के भोजन के लिए काफी संघर्ष कर रही हैं. वे कहती हैं, "पिछले साल तक हम एक महीने में पांच बार मीट खाते थे. लेकिन इमरान खान की सरकार बनने के बाद महीने में एक बार भी मीट खाने के लिए सोचना पड़ता है. खान की सरकार बनने के बाद इस्लामाबाद में सब्जियों की कीमत भी दोगुनी बढ़ गई है."
आर्थिक मामलों के जानकार शाहबाज राणा कहते हैं कि यह 'कॉस्ट पुश इंफ्लेशन' है जिसमें आमतौर पर निम्न आय और मध्यम आय वाले समूहों के लोग खर्च करने की अपनी आदतों को बदलने को मजबूर हो जाते हैं. पिछले एक साल में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत एक तिहाई तक कम हो गई है. इसकी वजह से दाल सहित अन्य चीजों के दाम बढ़े हैं. परिवहन, गैस और बिजली के खर्च में बढ़ोत्तरी की वजह से सीमित आय वाले लोग अपने दूसरे खर्च को कम करने के लिए मजबूर हुए हैं.
राणा कहते हैं कि शहरी क्षेत्र के लोग स्वास्थ्य को लेकर भले ही शाकाहार की ओर रूख कर रहे हैं लेकिन इसकी एक वजह यह भी है कि उनके पास मीट खरीदने के लिए पैसे नहीं है. रेड मीट और चिकन के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. इन बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने लिए कोई संस्था नहीं है.
पाकिस्तान के पोल्ट्री एसोसिएशन के अधिकारियों ने भी माना है कि कीमतों में वृद्धि और वर्तमान आर्थिक तंगी की वजह से चिकेन की मांग में कमी आई है. पाकिस्तान पॉल्ट्री एसोसिएशन के उपाध्यक्ष सलीम अख्तर कहते हैं, "पोल्ट्री का व्यवसाय घाटे में है. पिछले नौ महीनों में काफी ज्यादा उत्पादन हुआ और मांग काफी कम रही. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था."
रिपोर्टः हारून जंजुआ/ आरआर
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