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हाहाकार की ओर बढ़ते भारत, पाकिस्तान और चीन

ओंकार सिंह जनौटी
१ अक्टूबर २०१९

क्या भारत, पाकिस्तान, चीन और नेपाल की बड़ी आबादी भी मोहनजोदाड़ो की तरह उजड़ जाएगी? हिमालय को बारीकी से देखें तो लगता है कि 80 साल बाद ऐसा मंजर आ सकता है.

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Nepal Ghorepani, Poon- Hügel, Dhaulagiri in Himalaya
तस्वीर: picture-alliance/C. Wojtkowski

उत्तराखंड के मशहूर तीर्थ स्थल केदारनाथ के ऊपर चौराबाड़ी ग्लेशियर. सात किलोमीटर लंबा यह ग्लेशियर बर्फ से पटा रहता था. श्रद्धालु और सैलानी इसकी खूब तस्वीरें खिंचते हैं. ग्लेशियर 3,860 मीटर की ऊंचाई से शुरू होता है और 6,350 मीटर की ऊंचाई तक जाता है. 2019 में इस ग्लेशियर ने रिकॉर्ड बर्फबारी देखी. जनवरी से लेकर अप्रैल के बीच वहां 42 फीट बर्फ गिरी. यह 20 फीट की औसतन बर्फबारी से कहीं ज्यादा हिमपात था.

बावजूद इसके अप्रैल से अक्टूबर तक ग्लेशियरों का अध्ययन करने वाले डॉक्टर डीपी डोभाल चिंतित दिखते हैं. वाडिया हिमालय भूविज्ञान के वैज्ञानिक डोभाल के मुताबिक इतनी ज्यादा बर्फबारी से कोई फायदा नहीं हुआ. हिमनद को हो रहा नुकसान जारी है. डोभाल इसकी वजह भी बताते हैं, "पहले हिमपात अक्टूबर में शुरू होता था और मार्च तक चलता था. सर्दियों में होने वाले इस हिमपात के दौरान बर्फ अच्छे से सेट हो जाया करती थी. बीते कुछ सालों में मौसम का यह पैटर्न बदल गया है. अब बर्फबारी जनवरी से अप्रैल तक हो रही है. अप्रैल आते आते मौसम गर्म हो जाता है और बर्फ को सेट होने के लिए पर्याप्त समय ही नहीं मिलता. वह जल्द ही पिघल जाती है."

Nepal Schmelzende Gletscher am Himalaya
ग्लेशियरों की हालत खस्ता होती जा रही हैतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/J. Maurer

ग्लेशियरों की हिम स्थिति को आम तौर पर वैज्ञानिक दो मौसमों के आधार पर जांचते हैं. सर्दियां और गर्मियां. सर्दियों में ग्लेशियर बर्फ को जमा करते हैं. गर्मियों में यही बर्फ पिघलकर नदियों को पानी देती है लेकिन जांच का यही पैमाना गड़बड़ा रहा है. डोभाल कहते हैं, "सर्दियां छोटी होती जा रही हैं और गर्मियों का मौसम लंबा होता जाता रहा है."

चौराबाड़ी ग्लेशियर धीरे धीरे सिकुड़ता जा रहा है. कुछ ऐसा ही हाल गंगोत्री और पिंडारी समेत हिंदुकुश और हिमालय के सारे ग्लेशियरों का है. गर्म होती जलवायु और मौसमी चक्र में परिवर्तन एशिया के वॉटर टावर को खाली करता जा रहा है. उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बाद पृथ्वी पर सबसे ज्यादा बर्फ हिमालय में ही मौजूद है.

एशिया की चार सबसे बड़ी नदी घाटी सभ्यताएं हिंदुकुश हिमालय रेंज के ग्लेशियरों पर ही निर्भर हैं. सिंधु घाटी, गंगा का मैदान, यांगत्से (चीन) और ब्रह्मपुत्र का मैदान इन्हीं ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियों से पनपा है. अगर ग्लेशियरों के चलते इन नदियों की हालत खराब हुई तो इसका सीधा असर कम से कम तीन अरब लोगों को पड़ेगा. वे बूंद बूंद को तरस जाएंगे. क्या हालत इतने भयावह होने जा रहे हैं? ये पूछने पर डॉक्टर डोभाल कहते हैं, "हम नकारात्मक स्थिति में हैं. काफी कुछ हो चुके हैं और काफी कुछ खोने जा रहे हैं."

Nepal Schmelzende Gletscher am Himalaya
हिमालय और हिंदुकुश की ही देन हैं चार बड़ी नदी घाटी सभ्यताएंतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/National Reconnaissance Office

अमेरिका की खुफिया सैटेलाइटों से मिली तस्वीरों और वैज्ञानिक डाटा को मिलाकर किए गए अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों का दावा है कि अगर मौजूदा तापमान भी बरकरार रहा तो इस सदी के अंत तक (सन 2100 तक) हिमालय के दो तिहाई ग्लेशियर साफ हो जाएंगे.

3200 किलोमीटर लंबी हिंदुकुश हिमालयन रेंज के ग्लेशियरों के गायब होने का सीधा असर अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, चीन, भूटान, म्यांमार, थाइलैंड और वियतनाम तक महसूस होगा. वैज्ञानिकों के मुताबिक इंसान समय के साथ रेस में हैं, जहां उसके पास खोने के बहुत कुछ है, और पाने के नाम पर संरक्षण से ज्यादा विकल्प नहीं हैं.

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(सबसे ज्यादा जल भंडार वाली नदियां)