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मीडियाजर्मनी

ग्लोबल मीडिया फोरम: पत्रकारिता के लिए बड़ी चुनौती है एआई

रितिका
१८ जून २०२४

ग्लोबल मीडिया फोरम 2024 में फेक न्यूज और एआई प्रमुख मुद्दों में शामिल रहे. प्रेस की स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरे और महिलाओं के खिलाफ ऑनलाइन हिंसा पर भी पैनलिस्टों ने चर्चा की.

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जीएमएफ 2024 को संबोधित करती अनालेना बेयरबॉक
जीएमएफ 2024 में जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने प्रेस की स्वतंत्रता को लोकतंत्र का अहम हिस्सा बतायातस्वीर: Björn Kietzmann/DW

पत्रकारिता के क्षेत्र में इस वक्त एआई, फेक न्यूज और प्रेस स्वतंत्रता पर लगातार होते हमले सबसे गंभीर मुद्दों में शामिल है. बॉन में हो रहे डीडब्ल्यू के ग्लोबल मीडिया फोरम में 100 अलग अलग देशों से आए 1500 से अधिक पत्रकारों, राजनेताओं, छात्रों, शिक्षकों और कार्यकर्ताओं ने इन मुद्दों के अलग अलग पहलुओं पर चर्चा की.

फोरम की शुरुआत करते हुए डीडब्ल्यू के डायरेक्टर जेनरल पेटर लिम्बुर्ग ने फेक न्यूज को पत्रकारिता के लिए मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चुनौती बताया. उन्होंने कहा कि प्रोपगेंडा और गलत सूचनाओं जैसी समस्याओं के लिए तथ्यों पर आधारित पत्रकारिता ही हल है.

अपने वीडियो संदेश में जर्मनी के नॉर्थ राइन-वेस्टफालिया प्रांत के मिनिस्टर प्रेसिडेंट (मुख्यमंत्री) हेंडरिक वुस्ट ने भी गलत सूचनाओं के इस दौर में मीडिया और डिजिटल साक्षरता की भूमिका को बेहद जरूरी बताया. उन्होंने यूलिया नवाल्न्या को 2024 का डीडब्ल्यू फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड दिए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि आज प्रेस की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है. यूलिया नवाल्न्या रूस के दिवंगत विपक्षी नेता एलेक्सी नावाल्नी की पत्नी हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता को हल्के में नहीं लिया जा सकता.

पत्रकारिता के लिए एआई कितनी बड़ी चुनौती

लिम्बुर्ग ने पत्रकारिता पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रभाव की बात करते हुए कहा कि इस डिजिटल दौर में पत्रकारिता बदल रही है. एआई के पास पत्रकारिता को हिला कर रख देने की ताकत है. इसलिए आज जरूरी है कि हम तकनीक का इस्तेमाल एक ऐसे टूल की तरह करें जो हमारा काम आसान करें ना कि हमें ही बदल दे. लिम्बुर्ग ने कहा कि एआई एक सहायक के रूप में काम कर सकता है लेकिन पत्रकारिता के अहम फैसले हमेशा इंसानों को ही लेने चाहिए.

अलग अलग पैनलों में शामिल वक्ताओं ने भी पत्रकारिता में एआई की बढ़ती दखल पर बात की. सेशन के दौरान वहां मौजूद लोगों से यह भी पूछा गया कि हाल के दिनों में उन्होंने सबसे ज्यादा किस टूल का इस्तेमाल संपादकीय कामों के लिए किया. जवाब में चैट जीपीटी जैसे मशहूर एआई टूल सबसे ऊपर रहे.

पैनलिस्ट और पेशे से तकनीकी कंसलटेंट माधव चिनप्पा ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि कैसे तकनीक का इस्तेमाल कुछ सरकारें अपने फायदे के लिए कर रही हैं. चिनप्पा ने कहा कि तकनीक एक ऐसा जरिया है, जो ना ही बुरा है ना ही अच्छा. यह पूरी तरह इस पर निर्भर करता है कि आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हैं.

पैनल के दौरान अपनी बात रखते माधव चिनप्पा
एआई इस वक्त दुनिया के अलग अलग देशों में हो रहे चुनावों के लिए भी एक खतरातस्वीर: Björn Kietzmann/DW

चुनावों में एआई का खतरा

कई पैनलिस्ट ने फेक न्यूज फैलाने के लिए एआई के इस्तेमाल पर भी बात की. खासकर चुनावों में डीप फेक का इस्तेमाल इन दिनों चरम पर है. दुनिया भर के 66 देशों में इस साल चुनाव हो रहे हैं. एआई गलत सूचनाओं को ठोस और भावनात्मक रूप से अधिक प्रभावशाली बनाता है. ब्रिटेन के गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर काउंटरिंग डिजिटल हेट ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि इस साल दुनियाभर में हो रहे चुनावों में एआई का इस्तेमाल विभाजन का फायदा उठाने और अराजकता फैलाने के लिए किया जा सकता है. जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने भी अपने संबोधन में कहा कि एआई के जरिये समाज में गैरबराबरी और विभाजन की भावना को बढ़ावा दिया जा सकता है.

कोलोन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कार्ल निकोलाउस पाइफर ने एआई से संबंधित नियमों को जरूरी बताया. उन्होंने कहा कि एआई के विकास के लिए हमें सिद्धातों की जरूरत है. जिन लोगों का डाटा इस्तेमाल किया जा रहा है उनकी सहमति. जरूरी है. उन्होंने पत्रकारिता और अन्य रचनात्मक उद्योगों के लिए एआई के दौर में मुआवजे की भी बात रखी.

महिला पत्रकारों को निशाना बनाती ऑनलाइन हिंसा

अनालेना बेयरबॉक ने लोकतंत्र और जेंडर पर बात करते हुए कहा, "आज की युवा पीढ़ी के लिए लैंगिक रूप से समान समाज एक सामान्य बात है. लेकिन ये हम जानते हैं कि इस समानता के लिए हमसे पहले की पीढ़ियों ने कितनी लड़ाइयां लड़ी हैं. दुनिया भर में महिला अधिकारों पर हो रहे हमले को लेकर उन्होंने कहा कि लैंगिक और अबॉर्शन के अधिकार जो हमारे पास थे उन्हें बेहद हल्के में लिया गया लेकिन आज इन्हीं अधिकारों को राजनीतिक ताकतें छीनने की कोशिश कर रही हैं."

बेयरबॉक ने यह भी कहा कि जब प्रेस की स्वतंत्रता दबाव में होती है, तो आम जनता की स्वतंत्रता भी खतरे में होती है.  इस पैनल में मौजूद सभी वक्ताओं ने अपने साथ हुई ऑनलाइन हिंसा के अनुभवों पर भी बात की. बेयरबॉक ने बताया कि किस तरह विदेश मंत्री बनने से पहले उनकी फेक तस्वीरें सोशल मीडिया पर फैलाई गई थीं, उनके ऊपर अश्लील कमेंट किए गए थे.

जेंडर के मुद्दे पर काम करने वाली संस्था ‘हर स्टोरी युगांडा' की संस्थापक कल्टन स्कोविया ने कहा कि महिला पत्रकारों के खिलाफ उनके शरीर और जीवन पर निजी टिप्पणियां जानबूझ कर की जाती हैं ताकि उनके मनोबल को कम किया जा सके.

पैनल में शामिल नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और पत्रकार मारिया रेसा भी एक लोकतंत्र में ऑनलाइन हिंसा को महिलाओं खासकर महिला पत्रकारों के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में देखती हैं. उन्होंने कहा कि जब महिलाओं पर हमले होते हैं तो यह लोकतंत्र के पतन की ओर पहले कदम की तरह है. 

एक पैनल के दौरान जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक, नोबेल पुरस्कार विजेता मारिया रेसा और हर स्टोरी की संस्थापक कल्टन स्कोविया
महिला पत्रकार ऑनलाइन हिंसा का अधिक सामना करती हैं. सोशल मीडिया कंपनियों के पास इससे निपटने के लिए फिलहाल मजबूत नियामकों की कमी है.तस्वीर: Ayse Tasci/DW

ऑनलाइन हिंसा के लिए सोशल मीडिया कंपनियां भी जिम्मेदार

2020 में हुए इंटरनेशनल सेंटर ऑफ जर्नलिस्ट के एक सर्वे में शामिल 73 फीसदी महिला पत्रकारों ने यह कहा था कि उन्होंने किसी ना किसी रूप में ऑनलाइन हिंसा का सामना किया है. इसमें सबसे अधिक शारीरिक और यौन हिंसा की धमकियां शामिल थीं. 20 फीसदी महिलाओं ने यह भी बताया कि उन पर ऑफलाइन हमले किए गए जिसकी शुरुआत ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स से हुई थी.

रेसा ने इस ऑनलाइन हिंसा के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को भी जिम्मेदार ठहराया. वह मानती हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म महिलाओं और वंचितों के खिलाफ हो रही इस ऑनलाइन हिंसा को रोकने की कोशिश भी नहीं करती नजर आ रही हैं. उन्होंने इस बात पर भी जोर डाला कि ऑनलाइन हिंसा को रोकने के लिए नियमों का ना होना भी इस समस्या की एक बड़ी वजह है.

पैनल में अपनी बात रखतीं जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक
जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने भी पैनल में चर्चा के दौरान अपने साथ हुई ऑनलाइन हिंसा का भी जिक्र कियातस्वीर: Philipp Böll/DW

बढ़ती ऑनलाइन हिंसा के बीच महिलाओं के लिए अलग से वेबसाइट बनाने की जरूरत क्यों पड़ी, इस पर कल्टन स्कोविया ने डीडब्ल्यू से बात करते हुए कहा, "महिलाओं के मुद्दे पर हमें अपनी कवरेज को बढ़ावा देना होगा. इसके लिए सबसे जरूरी है कि मीडिया संस्थान और पत्रकार महिलाओं को महिलाओं की तरह नहीं बल्कि एक इंसान के तौर पर देखें.” उन्होंने यह भी कहा कि आम लोगों से ज्यादा हमें मीडिया संस्थानों और पत्रकारों को सिखाने की जरूरत है कि महिला मुद्दों को कवर कैसे किया जाए.

बेयरबॉक ने भी ऑनलाइन दुनिया में महिलाओं की सुरक्षा पर जोर डालते हुए कहा कि अगर महिलाएं ही समाज में सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर कोई भी सुरक्षित नहीं है.