घट रही है सिगरेट पीने वालों की संख्या लेकिन पीछे छूटा जर्मनी
१ अगस्त २०२३विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 31 जुलाई को तंबाकू के इस्तेमाल पर काबू करने के उपायों पर एक रिपोर्ट जारी की. इसके मुताबिक, दुनिया में करीब 560 करोड़ लोग ऐसे देशों में रहते हैं, जहां तंबाकू का प्रयोग घटाने के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा बताई गई कम-से-कम एक अनुशंसा लागू की गई है. इससे धूमपान में भी कमी आई है. अगर ये उपाय लागू नहीं किए गए होते तो दुनिया में 30 करोड़ और भी लोग सिगरेट पी रहे होते.
रिपोर्ट के मुताबिक, धूमपान का वैश्विक प्रसार 2007 में जहां 22.8 फीसदी था, वहीं 2021 में यह घटकर 17 फीसद रह गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने कहा, "धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित तौर पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को तंबाकू के नुकसान से बचाया जा रहा है."
धूमपान है बड़ा खतरा
धूमपान से दुनिया में हर साल करीब 80 लाख मौतें होती हैं. इनके अलावा लगभग 12 लाख लोग 'सेकेंड हैंड स्मोकिंग' से मरते हैं. ये ऐसी मौतें हैं, जिन्हें रोका जा सकता है. धूमपान ऐसी मौतों के मुख्य कारणों में से एक है. डब्ल्यूएचओ के बताए उपायों में धूमपान के नुकसान और गंभीर असर के खिलाफ प्रचार करना भी शामिल है. इसके अलावा सिगरेट के पैकेटों पर स्वास्थ्य चेतावनी देना और टैक्स बढ़ाना भी अहम अनुशंसाएं हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, मॉरीशस, नीदरलैंड्स, तुर्की और ब्राजील धूमपान कम करने के लिए डब्ल्यूएचओ की कही सभी बातें लागू करने वाले देशों में शामिल हो गए हैं. इनके अलावा इथियोपिया, ईरान, आयरलैंड, जॉर्डन, मैडागास्कर, मैक्सिको, न्यूजीलैंड और स्पेन ने भी कोशिशें तेज की हैं.
कई देश हैं पीछे
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, अभी भी 44 देश ऐसे हैं, जहां धूमपान रोकने या इसे कम करने की दिशा में कोई कोशिश नहीं की जा रही. इन देशों की कुल आबादी करीब 230 करोड़ है. पारंपरिक धूमपान के अलावा रिपोर्ट में ई-सिगरेट के बढ़ते चलन पर भी चिंता जताई गई है. लगभग 74 देशों में वेपिंग उत्पादों के लिए कोई रेगुलेशन नहीं है. दुनिया के देशों में आधे से ज्यादा में ई-सिगरेट खरीदने की कोई न्यूनतम उम्र नहीं है.
जर्मनी का खराब प्रदर्शन
जर्मनी की स्थिति चिंताजनक है. डब्ल्यूएचओ में स्वास्थ्य से जुड़े प्रचार के निदेशक रूडिगर क्रेच ने कहा, "हम नहीं समझ पा रहे हैं कि तंबाकू नियंत्रण के उपाय लागू करने में जर्मनी के नेता इतने ढीले क्यों हैं." रूडिगर खुद भी जर्मनी से हैं. वह बताते हैं, "इससे बहुत लोगों को तकलीफ होती है और देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर बहुत दबाव पड़ता है."
एसएम/ (डीपीए, एएफपी)