तनाव भरे समय में जर्मनी का दौरा करते नेतन्याहू
१६ मार्च २०२३इस्राएल की सरकार का अतिदक्षिणपंथ की ओर झुकाव बर्लिन को परेशान कर रहा है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से नैतिक जिम्मेदारी के चलते हमेशा इस्राएल के साथ खड़ा रहने वाला जर्मनी अब नेतन्याहू के प्लान को लेकर नाराजगी दिखाने लगा है. मार्च के दूसरे हफ्ते में जर्मन राष्ट्रपति फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर इस्राएल में थे. श्टाइनमायर इस्राएल की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ मनाने वहां पहुंचे थे. उसी दौरान हाइफा यूनिवर्सिटी में उन्होंने राजनीतिक और आलोचनात्मक रुख सामने रख दिया.
जर्मन राष्ट्रपति ने इस्राएल में हाल के महीनों में "घृणा और हिंसा के बढ़ते मामलों" का जिक्र किया. इस्राएल में कई दिनों से सुप्रीम कोर्ट की शक्ति और मूलभूत कानूनों के दायरे को सुरक्षित रखने के लिए प्रदर्शन हो रहे है. नेतन्याहू की सरकार, देश में संसद की शक्ति को इस कदर बढ़ाना चाहती है कि वो सर्वोच्च अदालत के फैसले भी पलट सके.
नेतन्याहू पर लगे गंभीर आरोप, अपना केस निपटाने के लिए कर रहे कानून में बदलाव
बीते 20 साल में दो बार जर्मनी के विदेश मंत्री रह चुके श्टाइनमायर ने कहा कि जर्मन "हमेशा इस्राएल में चमकते कानून के राज और उसकी शक्ति पर गर्व करते रहे हैं, सटीक रूप से कहूं तो ऐसा इसलिए है क्योंकि हम ये जानते हैं कि इस क्षेत्र की ये ताकत और दमक के लिए कितनी जरूरी है." जिस वक्त श्टाइनमायर यह कह रहे थे, उस वक्त इस्राएली राष्ट्रपति इसाक हेर्जोग उनके बगल में खड़े थे. जर्मन राष्ट्रपति ने अपने समकक्ष इस्राएली नेता को "दोस्त और सहकर्मी" बताते हुए उन्हें "इस्राएल में जारी बहस में एक स्मार्ट और संतुलित आवाज" बताया. हेर्जोग, बेन्यामिन नेतन्याहू की अतिदक्षिणपंथी सरकार के निशाने पर हैं. वह राजनीतिक दबाव झेल रहे हैं.
इस्राएल में न्यायिक सुधारों पर विवाद
इस्राएली सरकार न्यायिक सुधार करने की योजना बना रही है. कहा जा रहा है कि ये सुधार देश के लोकतांत्रिक चरित्र को दुर्बल कर देंगे. अगर ये सुधार लागू हुए तो इस्राएली संसद, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को उलट सकेगी. फिलहाल यह बिल विधायी प्रक्रिया से गुजर रहा है.
यह पहला मौका है जब किसी जर्मन उच्चाधिकारी ने इतने खुले रूप से इस्राएल की आलोचना की है. जर्मनी अब तक इस्राएल की घरेलू राजनीति और फलस्तीन के विवादित इलाके में कब्जे जैसे मुद्दों पर भी कटु टिप्पणी करने से बचता रहा है. हिटलर की तानाशाही में जर्मनी में यहूदियों के साथ जिस तरह का बर्बर सलूक किया गया, उसके चलते भी इस्राएल के साथ संबंधों में बर्लिन हमेशा एक अपराधबोध से लड़ता दिखा है. होलोकॉस्ट की कड़वाहट की वजह से ही दोनों देशों के औपचारिक संबंध दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के 20 साल बाद शुरू हो पाये.
टूट रही है जर्मन चुप्पी
2022 के अंत में नेतन्याहू जब फिर से इस्राएल के प्रधानमंत्री बने तो जर्मन चांसलर ओलाफ शॉत्ल्स ने उन्हें बधाई दी. बधाई संदेश में दोनों देशों की "गहरी दोस्ती" का जिक्र किया. लेकिन अब इस्राएली सरकार एक के बाद एक ऐसे कदम उठा रही हैं, जिससे जर्मनी असहज महसूस कर रहा है. इन कदमों में न्यायिक सुधार, मृत्युदंड को फिर से बहाल करने में दिलचस्पी और फलस्तीन इलाके में बस्तियों के विस्तार जैसी योजनाएं हैं.
इस्राएल का दक्षिणपंथ की ओर बढ़ना कितना विभाजनकारी हो सकता है
जर्मन सरकार के प्रवक्ता श्टेफान हेबेश्ट्राइट ने दो देश फॉर्मूले को सपोर्ट करने के लिए न्यूज कॉन्फ्रेंस का सहारा लिया. जर्मनी के कैबिनेट मंत्रियों ने भी हाल के दिनों में इस्राएल में बढ़ते अतिदक्षिणपंथी रुझान की आलोचना की है. जर्मनी के न्याय मंत्री मार्को बुशमन ने इस्राएल दौरे के दौरान "उदारवादी लोकतंत्र की रक्षा" का मुद्दा उठाया. बुशमन ने "कानून के राज को खतरे" की चेतावनी भी दी.
इस्राएल की ऐसी आलोचना जर्मनी के लिए दुर्लभ मानी जाती रही है, लेकिन अब यह चुप्पी टूट रही है. हाल ही में जब इस्राएली विदेश मंत्री बर्लिन आए तो जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने कहा, "मैं इस तथ्य को नहीं छुपाऊंगी कि हम बाहर से चिंतित हो रहे हैं."
इस्राएल में बीते कुछ हफ्तों से न्यायिक सुधारों के खिलाफ बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं. इन प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में बेयरबॉक ने कहा कि मजबूत लोकतंत्र को "बहुमत के फैसलों की समीक्षा कर सकने वाली स्वतंत्र न्यायपालिका" की जरूरत होती है.