आरामदायक मौत पर ध्यान देने की सिफारिश
२ फ़रवरी २०२२मेडिकल जर्नल लांसेट द्वारा आयोजित विशेषज्ञों के एक पैनल में कहा गया कि मौत को बहुत ज्यादा दवाओं से ढक दिया गया है अपने आखिरी दिनों में करोड़ों लोग गैरजरूरी दर्द झेल रहे हैं क्योंकि अमीर देशों में स्वास्थ्यकर्मी उनकी जिंदगी को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. होना यह चाहिए कि उन्हें दर्दमुक्त मौत पाने में मदद की जाए.
इस पैनल ने कहा कि जब अमीर देशों में लोगों को बचाने की गैरजरूरी कोशिश हो रही है, ठीक उसी वक्त आधे से ज्यादा लोग बेहद दर्दनाक हालत में दम तोड़ रहे हैं और इनमें गरीब देशों के लोग खासतौर पर शामिल हैं.
लांसेट कमीशन में मरीज, सामुदायिक विशेषज्ञ और धर्मज्ञाताओं के साथ-साथ स्वास्थ्य और सामाजिक विशेषज्ञ भी शामिल थे, जिन्होंने हालात बदलने का आह्वान किया. इस कमीशन का काम घातक बीमारियों और चोटों के कारण होने वाली मौतों पर केंद्रित था ना कि बच्चों की मृत्यु, सजा आदि के कारण या फिर हिंसा में होने वाली मृत्यु पर.
कमीशन की उपाध्यक्ष डॉ. लिबी सैलनाओ पैलिएटिव मेडिसन में एक्सपर्ट हैं और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में सीनियर क्लीनिकल लेक्चरर हैं. एक इंटरव्यू में डॉ. सैलनाओ ने कहा, "इस वक्त तो हम इसे उस तरह नहीं संभाल रहे हैं जैसी संभाल हम दे सकते हैं.”
महामारी ने दी नई रोशनी
लांसेट कमीशन ने 2018 में काम करना शुरू किया था लेकिन डॉ. सैलनाओ कहती हैं कि महामारी के दौरान इसके काम को अलग रोशनी में देखा गया. उन्होंने महामारी के दौरान इलाज के हालात का जिक्र किया जबकि लोगों को घरों में या अस्पतालों में इलाज मुहैया कराया जा रहा था.
जो लोग अस्पताल में थे उन्हें दर्दनिवारक दवाएं उपलब्ध थीं किंतु वे लोग अपनों के पास नहीं थे और स्क्रीन के जरिए ही बातचीत कर पा रहे थे. इसके उलट जो लोग घर पर थे वे दर्द निवारक या अन्य जरूरी दवाओं के लिए संघर्ष कर रहे थे लेकिन वे अपने परिजनों के साथ थे.
सैलनाओ ने माना कि महामारी की शुरुआत में लोगों को संतुलित देखभाल उपलब्ध कराना मुश्किल था. उन्होंने कहा, "कोविड की पहली लहर में लोग एक ऐसी चीज से निपट रहे थे जिसके बारे में उन्हें कुछ नहीं पता था. लेकिन दुनिया को जल्दी इस बात का अहसास हो गया कि जब आप मर रहे हैं तो परिजनों का पास होना जरूरी नहीं है.”
पांच सिफारिशें
कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में पांच सिफारिशें की हैं, जिन्हें ‘मृत्यु के प्रति नया नजरिया' कहा गया है. सबसे पहली सिफारिश में मृत्यु से जुड़ी सामाजिक अवधारणाओं की बात की गई है जो दुख के इर्द-गिर्द सिमटी हैं. कमीशन कहता है कि इन अवधारणाओं पर काम किया जाना चाहिए ताकि जिंदगी स्वस्थ हो सके और मृत्यु में भी समानता हो.
कमीशन ने इस बात की भी सिफारिश की है कि मृत्यु को एक भौतिक घटना से अधिक माना जाना चाहिए और देखभाल उपलब्ध कराने वालों में विशेषज्ञों के अलावा परिवारों और समुदायों की भी हिस्सेदारी होनी चाहिए. मौत पर बातचीत को बढ़ावा देना चाहिए और मृत्यु की कीमत को समझा जाना चाहिए.
वीके/सीके (रॉयटर्स)