बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिया फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ संदेश
२० मार्च २०२४न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की पीठ ने पूर्व पुलिस अफसर प्रदीप शर्मा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और साथ ही 13 अन्य लोगों को एक सेशंस अदालत द्वारा दी गई उम्र कैद की सजा को भी बरकरार रखा.
इसे फर्जी मुठभेड़ का ऐसा पहला मामला माना जाता है जिसमें पुलिसवालों को सजा सुनाई गई. शर्मा को 2013 में एक सेशंस अदालत ने बरी कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल जज ने "सारे सबूतों और हालात को नजरअंदाज" कर दिया था और शर्मा को बरी किया जाना एक "गलत" फैसला था.
क्या है मामला
मामला 2006 में रामनारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया के फर्जी एनकाउंटर का है. गुप्ता को कथित रूप से छोटा राजन गैंग का सदस्य बताया गया था. उन्हें और उनके एक दोस्त को पुलिस ने 11 नवंबर 2006 को मुंबई के एक इलाके से उठाया और बाद में उसी दिन एक फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया.
बाद में इस मामले में फर्जी मुठभेड़ की जांच करने के लिए हाई कोर्ट ने एक एसआईटी बनाई. एसआईटी ने अपनी जांच में पाया कि शर्मा ने गुप्ता के बिजनेस पार्टनर से पैसे लेकर, उनके साथ मिल कर गुप्ता को मारने की साजिश की थी. कुल 22 लोगों पर इस साजिश में शामिल होने के आरोप लगे थे, जिनमें से 21 पुलिसकर्मी थे.
2009 में इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई. पांच साल की सुनवाई के बाद जुलाई 2013 में सेशंस अदालत ने शर्मा को सभी आरोपों से बरी कर दिया, तीन अन्य पुलिसकर्मियों को गुप्ता की हत्या का दोषी ठहराया और 18 लोगों को फर्जी मुठभेड़ में मदद करने का दोषी पाया. इन 18 में से 17 पुलिसकर्मी थे.
उसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने शर्मा को बरी किए जाने के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी. साथ ही दोषी पाए गए अफसरों ने भी फैसले को चुनौती दी. हाई कोर्ट ने 2022 में जुलाई से मामले में सुनवाई शुरू की और नवंबर में फैसला सुरक्षित रख लिया.
हाई कोर्ट के फैसले में शर्मा को दोषी ठहराया गया. 12 अन्य पुलिसकर्मियों और एक व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने के फैसले को भी अदालत ने सही पाया. एक और पुलिसकर्मी और एक व्यक्ति के खिलाफ मामले को रद्द कर दिया गया क्योंकि उनकी मौत हो चुकी है.
फर्जी मुठभेड़ का चलन
शर्मा को मुंबई पुलिस के 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' के रूप में जाना जाता है. "लाइव लॉ" वेबसाइट के मुताबिक उन पर 25 साल की पुलिस की नौकरी में 112 गैंगस्टरों को मारने के आरोप हैं. उन्हें अंडरवर्ल्ड से संबंध रखने के आरोप में 2008 में नौकरी से निकाल गया था.
2009 में उन्हें इन आरोपों से बरी कर दिया गया और बतौर इंस्पेक्टर उनकी नौकरी बहाल कर दी गई, लेकिन इस मामले में 2010 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. 2013 में उन्हें रिलायंस समूह के अध्यक्ष मुकेश अंबानी के निवास एंटीलिया के बाहर बम पाए जाने के मामले में भी गिरफ्तार किया था. इस मामले में उन्हें 2023 में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई थी.
भारत में फर्जी मुठभेड़ के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2020 से मार्च 2022 के बीच देश में मुठभेड़ में हुई मौतों के कुल 233 मामले दर्ज किए गए थे.