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ब्राजील: कैंसर से मरते बच्चों का सोयाबीन की खेती से ताल्लुक?

क्लेयर रोठ
२ नवम्बर २०२३

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि ब्राजील में बच्चों की कैंसर से होने वाली मौतों का संबंध सोया की खेती में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों से हो सकता है. ब्राजील दुनिया में सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है.

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Brasilien Goias | Landwirtschaft, Düngemittel
एक अध्ययन से पता चलता है कि ब्राजील में सोयाबीन के लिए उर्वरक बच्चों की कैंसर से होने वाली मौतों से जुड़ा हो सकता हैतस्वीर: Mateus Bonomi/Anadolu Agency/picture alliance

शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें सोया की खेती और छोटे बच्चों में ल्यूकीमिया से होने वाली मौतों के बीच संबंध का पता चला है. ये शोध परिणाम PNAS नामक शोध पत्रिका में 30 अक्टूबर को प्रकाशित किए गए थे.

पिछले कुछ सालों में ब्राज़ील के किसानों ने मवेशी-आधारित खेती से दूरी बनाई और सोया की खेती शुरू की. शोधकर्ताओं के मुताबिक रसायनों, खासकर ग्लाइफोसेट का इस्तेमाल सोया की फसल उगाने में किया जाता है. फिर यही ग्लाइफोसेट देश की नदियों के माध्यम से घूमता रहता है और आखिरकार इस पानी का इस्तेमाल बच्चों में कैंसर का कारण बनता है. इस कैंसर से कई बच्चों की मौत भी हो रही है.

अपने अध्ययन की शुरुआत में टीम ने अनुमान लगाया कि जिन क्षेत्रों में उन्होंने सर्वेक्षण किया, वहां रहने वाले करीब आधे परिवार पानी की आपूर्ति के लिए सिर्फ कुओं पर निर्भर थे. बाकी लोग सतही जल पर निर्भर थे, जिसके दूषित होने की संभावना काफी ज्यादा रहती है.

Österreich Wien | Glyphosat Protest von Greenpeace
प्रदर्शनकारियों को उम्मीद है कि यूरोप में ग्लाइफोसेट के कृषि उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाएगातस्वीर: Roland Schlager/APA/picture alliance

हालांकि, यह दूषित जल आस-पास के किसी भी व्यक्ति पर प्रभाव डाल सकता है, लेकिन शोधकर्ताओं का ध्यान मुख्य रूप से ग्रामीण कृषि क्षेत्रों में 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कैंसर से संबंधित मौतों की जांच पर था.

उन्होंने 2008 से 2019 तक स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों का अध्ययन किया, जब ब्राजील में सेराडो और अमेजन पारिस्थितिकी तंत्र में सोया की खेती का विस्तार हुआ. आंकड़ों की जांच करते समय वैज्ञानिकों ने मुख्य रूप से दो कारकों को ध्यान में रखा. बीमार बच्चे की नदी से नजदीकी और बच्चों के कैंसर का इलाज करने वाले अस्पताल से उसकी दूरी.

उनकी जांच से पता चलता है कि एक दशक में सोया उत्पादन के कारण होने वाले खतरनाक लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकीमिया (ALL) से 123 बच्चों की मृत्यु हो गई.

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि ‘दस साल तक के बच्चों में ल्यूकीमिया से होने वाली लगभग आधी मौतें' कीटनाशकों के बढ़ते प्रभाव से जुड़ी हो सकती हैं.

एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकीमिया (ALL) गंभीर बीमारी है, जिसका उपचार संभव है. शोधकर्ताओं के परिणाम इस बात की पुष्टि करते प्रतीत होते हैं. उन्होंने पाया कि सोया खेती के विस्तार के बाद ल्यूकीमिया से मरने वाले सिर्फ वही बच्चे थे, जो इस बीमारी का इलाज करने वाले अस्पताल से 100 किलोमीटर से ज्यादा दूर रहते थे.

Brasilien Goias | Landwirtschaft, Düngemittel
पिछले साल ब्राजील की कांग्रेस ने कीटनाशकों के व्यावसायीकरण और कृषि उत्पादन में कीटनाशकों के उपयोग की अनुमति देने वाले विधेयक को मंजूरी दी थी.तस्वीर: Mateus Bonomi/Anadolu Agency/picture alliance

सोया उत्पादन में अतिशय बढ़ोतरी

बीते दशकों में सोयाबीन की उच्च वैश्विक मांग के कारण ब्राजील के अमेजन क्षेत्र के लोग मवेशी उत्पादन के बजाय सोया की खेती करने लगे. ब्राजील इस समय दुनिया का सबसे बड़ा सोया उत्पादक देश है.

अमेरिका में इलिनॉइ विश्वविद्यालय में कृषि और उपभोक्ता अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर और प्रमुख शोधकर्ता मारिन स्किडमोर कहते हैं, "विस्तार वास्तव में बहुत तेजी से हुआ है.”

शोधकर्ताओं के मुताबिक साल 2000 से 2019 तक सेराडो क्षेत्र में सोया उत्पादन तीन गुना हो गया, जबकि अमेजन क्षेत्र में यह वृद्धि 20 गुना तक देखी गई.

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर के मुताबिक वैश्विक सोया उत्पादन का करीब 20 फीसदी ही मनुष्यों के लिए खाद्य उत्पादों के रूप में प्रयोग किया जाता है, जबकि करीब 80 फीसदी हिस्सा पशुओं को खिलाया जाता है. खासतौर से उन इलाकों में, जहां पशुओं को मांस, चिकन, अंडा और डेयरी उत्पादों के लिए पाला जाता है.

Brasilien Salto do Jacui | Soyaproduktion
ब्राजील दुनिया का सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक हैतस्वीर: SILVIO AVILA/AFP/Getty Images

अध्ययन से क्या पता नहीं चल पाता?

इस अध्ययन में कई तरह की खामियां भी हैं. पहली तो यह कि इसमें कैंसर से होने वाली मौतों और कीटनाशकों के बढ़ते जोखिम के बीच कोई सीधा संबंध नहीं स्थापित होता. यह केवल दोनों के बीच संबंध को दर्शाता है. शोधकर्ताओं ने नोट किया कि उन्होंने अन्य संभावित कारकों को खारिज करने के लिए काम किया. मसलन उन्हें सोया की खपत और कैंसर के बीच कोई संबंध नहीं मिला.

टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ डॉर्टमुंड में डिपार्टमेंट ऑफ स्टेटिस्टिकल मेथड्स इन जेनेटिक्स ऐंड केमोमेट्रिक्स के प्रमुख योर्ग रानेनफुहर इस शोध में शामिल नहीं थे, लेकिन उनका कहना है कि शोधकर्ता बाहरी कारकों पर विचार करने में बहुत आगे नहीं गए हैं.

वह कहते हैं, "हालांकि, यहां सुझाया गया कनेक्शन प्रशंसनीय लगता है और सही भी हो सकता है, लेकिन डेटा में देखे गए संबंधों के लिए कई अन्य संभावित कारण भी हो सकते हैं. लेखक कुछ अतिरिक्त विचारशील विश्लेषण करते हैं, लेकिन सामाजिक-आर्थिक बदलाव जैसे कई अन्य कारकों पर विचार नहीं किया जाता है.”

रानेनफुहर कहते हैं कि लेखकों के निष्कर्ष इस धारणा पर आधारित हैं कि कैंसर से होने वाली मौतों के पीछे कीटनाशकों से होने वाला जल प्रदूषण जिम्मेदार है और इससे पता चलता है कि जल प्रदूषण और कैंसर के संबंध के मामलों को सीधे मापकर कहीं विश्वसनीय परिणाम इकट्ठे किए जा सकते हैं.

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के विश्लेषण की सुविधा ‘बहुत अधिक जटिल' होगी.

लीपजिग में हेल्महोल्त्ज सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल रिसर्च (UFZ) में सिस्टम इकोटॉक्सिकोलॉजी विभाग के प्रमुख माथियास लीज भी इस शोध में तो शामिल नहीं थे, लेकिन वह कहते हैं कि डेटा अच्छा था और चेतावनियों को देखते हुए शोधकर्ताओं का निष्कर्ष सही था.

उनके मुताबिक, "यह प्रशंसनीय है कि सोया की खेती या कीटनाशकों के उपयोग और बच्चों में बीमारी के बोझ के बीच संबंध सिर्फ सहसंबंधी नहीं है, बल्कि इनके बीच एक कारणात्मक संबंध भी है.”

लीज इसका श्रेय इस बात को देते हैं कि शोधकर्ताओं ने ऊपरी क्षेत्रों की तुलना में सोयाबीन किसानों के निचले इलाकों में कैंसर से होने वाली मौतों की ज्यादा घटनाएं पाई हैं.

उनके मुताबिक इसका यह अर्थ है कि यह मुमकिन है कि बीमारियां पीने वाले पानी से जुड़ी हों. वह कहते हैं, "इस स्थिति में कीटनाशकों के अलावा अन्य कारणों की कल्पना करना मुश्किल है.”

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