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हजार गुना ताकतवर जहर भी नहीं मार पा रहा इन मच्छरों को

११ जनवरी २०२३

मच्छरों को मारने वाली ज्यादातर दवाएं कमजोर या बेअसर साबित हो रही हैं. जल्द ही म्यूटेशन वाले ताकतवर मच्छर पूरी दुनिया में फैल सकते हैं. ऐसा होने से पहले मच्छरों पर काबू पाने के नए तरीके खोजने होंगे.

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आमतौर पर स्वास्थ्य अधिकारी मच्छरों के प्रजनन वाले इलाकों में कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं. ऐसे में लंबे समय से चिंता जताई जा रही थी मच्छरों के भीतर इन दवाओं के प्रति इम्यूनिटी विकसित हो सकती है.
आमतौर पर स्वास्थ्य अधिकारी मच्छरों के प्रजनन वाले इलाकों में कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं. ऐसे में लंबे समय से चिंता जताई जा रही थी मच्छरों के भीतर इन दवाओं के प्रति इम्यूनिटी विकसित हो सकती है. तस्वीर: Satyajit Shaw/DW

मच्छरों को मारने के लिए आप क्या करते हैं? दवा छिड़कते हैं? कल्पना कीजिए कि बाजार में मौजूद सारी दवाएं मच्छरों पर बेअसर हों. कोई भी कीटनाशक मच्छरों को ना मार पाए. यह आशंका आने वाले दिनों में सही साबित हो सकती है. साइंस जर्नल अडवांसेज में छपी एक हालिया रिसर्च के मुताबिक, एशिया के कई देशों में कीटनाशकों का छिड़काव मच्छरों को मारने की जगह उन्हें ताकतवर बना रहा है. मच्छरों में इन कीटनाशकों के खिलाफ मजबूत प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है. ऐसे में डेंगू और कई अन्य वायरसों को फैलाने वाले मच्छरों के आगे मौजूदा कीटनाशक बेहद कमजोर साबित हो रहे हैं.

आमतौर पर स्वास्थ्य अधिकारी मच्छरों के प्रजनन वाले इलाकों में कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं. ऐसे में लंबे समय से चिंता जताई जा रही थी मच्छरों के भीतर इन दवाओं के प्रति इम्यूनिटी विकसित हो सकती है. लेकिन यह समस्या कितनी गंभीर और विस्तृत हो सकती है, इसपर लोगों में जागरूकता नहीं विकसित नहीं हो पाई.

मच्छरों में मिले म्यूटेशन

इस रिसर्च के लिए जापान के वैज्ञानिक शिंजी कासाई और उनकी टीम ने एशिया के कई देशों में मच्छरों का मुआयना किया. शिंजी, जापान के "नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फेक्शियस डिजीज" के मेडिकल ऐंटोमॉलॉजी विभाग में निदेशक हैं. शोध के दौरान उनकी टीम को मच्छरों में कई ऐसे म्यूटेशन मिले, जिनके कारण परमैथ्रिन जैसे प्रचलित पाइरिथ्रॉइड आधारित रसायनों का उनपर असर नहीं होता.

इसके बारे में बात करते हुए शिंजी कासाई ने न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया, "कंबोडिया में 90 फीसदी से ज्यादा एईडिस इजिप्टाई मच्छरों में ऐसे म्यूटेशन हैं, जिनके कारण उनकी प्रतिरोध क्षमता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है."

रिसर्च टीम को मच्छरों के कुछ ऐसे स्ट्रेन भी मिले, जिनमें प्रतिरोधक क्षमता करीब एक हजार गुना ज्यादा थी, जबकि पहले ये करीब सौ फीसदी ही ज्यादा पाई गई थी. आसान भाषा में इसका मतलब यह है कि आमतौर पर कीटनाशकों की जितनी मात्रा एक सैंपल में मौजूद सारे मच्छरों को खत्म कर देती थी, उससे अब केवल सात फीसदी ही मच्छर मरे. यहां तक कि सामान्य से 10 गुना ज्यादा मजबूत डोज भी बेहद तेज प्रतिरोधक क्षमता वाले केवल 30 फीसदी मच्छरों को ही मार पाई.

मच्छर कई बीमारियों के वाहक हैं. अकेले डेंगू से ही दुनिया में सालाना करीब 10 से 40 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं. वैक्सीन बनने के बावजूद डेंगू को खत्म नहीं किया जा सका है. भारत भी उन देशों में है, जो हर साल डेंगू से जूझते हैं.
मच्छर कई बीमारियों के वाहक हैं. अकेले डेंगू से ही दुनिया में सालाना करीब 10 से 40 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं. वैक्सीन बनने के बावजूद डेंगू को खत्म नहीं किया जा सका है. भारत भी उन देशों में है, जो हर साल डेंगू से जूझते हैं. तस्वीर: picture alliance/prisma

मच्छरों की किस्मों में मिले ये बदलाव

मच्छर कई बीमारियां फैलाने का जरिया बनते हैं. मसलन, एईडिस इजिप्टाई मच्छर डेंगू के अलावा जीका और येलो फीवर जैसी बीमारियां भी फैलाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, अकेले डेंगू से ही दुनिया में सालाना करीब 10 से 40 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं. डेंगू के लिए कई टीके विकसित किए जा चुके हैं. इसकी रोकथाम के लिए शोधकर्ताओं ने एक ऐसा बैक्टीरिया भी इस्तेमाल किया है, जो डेंगू फैलाने वाले मच्छरों की प्रजनन क्षमता खत्म कर देता है. लेकिन इन उपायों की खोज के बावजूद हम डेंगू को खत्म करने से कोसों दूर हैं.

एईडिस इजिप्टाई के अलावा और भी मच्छरों की और भी कुछ किस्मों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित पाई गई. जैसे कि एईडिस आबोपिक्टस. हालांकि डेंगू मच्छरों की तुलना में इनकी प्रतिरोधक क्षमता कम थी. इसकी वजह शायद यह हो सकती है कि ये मच्छर अक्सर घर के बाहर पाए जाते हैं. आमतौर पर ये जानवरों को काटते हैं. मुमकिन है कि इन्हीं कारणों से वो इंसानों के ज्यादा करीब रहने वाले डेंगू मच्छरों की तुलना में कीटनाशकों के कम संपर्क में आते हों.

मच्छरों से निपटने के नए तरीके खोजने होंगे

शोध का एक अहम पहलू यह भी है कि सभी देशों के मच्छरों में प्रतिरोध क्षमता का विकास एक जैसा नहीं पाया गया. घाना, इंडोनेशिया और ताइवान जैसे देशों में मौजूदा केमिकल अब भी मच्छरों पर असर डाल रहे हैं, हालांकि इसके लिए उनकी ज्यादा मात्रा इस्तेमाल करनी पड़ रही है. यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी और एनएसडब्ल्यू हेल्थ पैथोलॉजी में असोसिएट प्रोफेसर और मच्छर शोधकर्ता कैमरून वेब ने बताया, "मच्छरों को मारने की आम रणनीति अब कारगर नहीं है."

प्रोफेसर वेब का मानना है कि मच्छरों पर काबू पाने के लिए नए रसायनों की जरूरत है. साथ ही, प्रशासन और रिसर्चरों को वैक्सीन जैसे और भी उपायों के बारे में सोचना चाहिए. मच्छरों के भीतर कीटनाशकों के खिलाफ रेजिस्टेंस और म्यूटेशन कैसे विकसित हुआ, ये अब भी एक रहस्य है. मगर शिंजी अब एशिया में अपनी रिसर्च का दायरा बढ़ा रहे हैं. वो कंबोडिया और वियतनाम से लिए गए और हालिया सैंपलों की भी जांच कर रहे हैं, ताकि यह पता लगाया जा सके कि 2016 से 2019 के बीच चली उनकी रिसर्च के बाद भी मच्छरों में कोई बड़ा बदलाव आया है या नहीं. उन्होंने बताया, "हमें चिंता है कि शोध के दौरान हमें म्यूटेशन वाले जो मच्छर मिले, वो आने वाले दिनों में बाकी दुनिया में फैल सकते हैं. ऐसा होने के पहले हमें इसका समाधान खोजना होगा."

तैयार हो रहे हैं ना काटने वाले मच्छर

एसएम/एमजे (एएफपी)