भारत के 15 प्रतिशत अदालत परिसरों में महिला शौचालय नहीं
२९ जुलाई २०१९भारत की केंद्र सरकार की एक प्रमुख योजना स्वच्छ भारत अभियान के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल नवंबर में अदालती परिसरों, विशेषकर जिला न्यायालयों में शौचालयों के नवीनीकरण और मरम्मत के लिए स्वच्छ न्यायालय परियोजना लॉन्च की थी. इस परियोजना को देश के सभी 16,000 अदालत परिसरों में स्थित शौचालयों को छह महीने के अंदर बेहतर स्थिति में लाने का काम सौंपा गया था. इसके बावजूद एक सर्वेक्षण से पता चला है कि अदालत परिसरों में स्थित शौचालय अब भी दयनीय स्थिति में हैं.
न्यायिक सुधारों के लिए शोध करने वाले एक स्वायत्त थिंक टैंक 'विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी' द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में अदालत परिसरों में स्थित शौचालयों की स्थिति पर नजर डाली गई. 'बिल्डिंग बेटर कोर्ट्स' पर अदालती ढांचों की कमियों को प्रस्तुत करने और उनका विश्लेषण करने वाली एक रिपोर्ट में थिंक टैंक ने कहा कि 15 प्रतिशत अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए शौचालय ही नहीं हैं.
आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, ओडिशा, पंजाब, पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं जहां अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि "आंध्र प्रदेश में 69 प्रतिशत अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए शौचालय नहीं हैं. ओडिशा में 60 प्रतिशत और असम में 59 प्रतिशत अदालत परिसरों में यही स्थिति है." गोवा, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मिजोरम ऐसे राज्य हैं जहां सबसे कम अदालत परिसरों में शौचालय हैं.
जहां झारखंड में आठ प्रतिशत अदालत परिसरों में शौचालय पूरी तरह संचालित हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में 11 प्रतिशत और मिजोरम में यह आंकड़ा 13 प्रतिशत है. सर्वेक्षेण के अनुसार, झारखंड की राजधानी रांची के जिला अदालत परिसर में महिला और पुरुष किसी के लिए भी शौचालय नहीं है.
ऐसा भी नहीं कि देश के दूर दराज के या पिछड़े हुए राज्यों में ही ऐसा हाल है. सन 2000 में ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली न्यायिक सेवा संघ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस पर सुनवाई करते हुए कहा था, "हर कोई यह मानता है कि भरे हुए कोर्ट रूम, भीड़ भाड़ वाले और अंधेरे कॉरिडोर, ऊपर तक भरे टॉयलेट और हर ओर गंदगी के कारण ऐसी अदालतों में आने से ऊबकाई सी आती है.” तब सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली के जिला न्यायालयों के खस्ताहाल बुनियादी ढांचे पर टिप्पणी की थी लेकिन लगभग दो दशक बीत जाने के बाद भी ऐसे हालात देश भर में आम हैं.
अमिया कुमार कुशवाहा/आरपी (आईएएनएस)
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