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वाइन चखते भारतीय

३० मार्च २०१३

जर्मनी अपने व्यापार मेलों के लिए प्रसिद्ध है और अपनी वाइन के लिए भी. इस हफ्ते डुसेलडॉर्फ में हुए अंतरराष्ट्रीय मेले में 4,800 वाइन प्रदर्शकों ने हिस्सा लिया. भारत की सुला वाइन भी बाजार में अपनी पैठ बनाने में लगी है.

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तस्वीर: Fotolia/Nick Freund

भारत में वाइन का बाजार भले ही तेजी से फैल रहा हो, लेकिन वह अपनी संभावनाओं से अभी भी बहुत दूर है. 2010 के आकंड़ों के अनुसार चीन 16 लाख टन उत्पादन के साथ फ्रांस और इटली जैसे चोटी के पांच देशों की कतार में शामिल हो गया है. अंगूर की खेती के इलाकों के मामले में भी वह पांचवें स्थान पर है, लेकिन भारत अभी चोटी के 40 देशों में भी अपनी जगह नहीं बना पाया है. सुला वाइन कंपनी की सिसिलिया ओल्डने इसकी वजह भारत में वाइन पीने की संस्कृति का न होना बताती हैं. लेकिन देश के वाइन उत्पादक स्थिति को बदल रहे हैं.

देश भर में वाइन के लिए बाजार बनाने की कोशिश हो रही है. बड़े शहरों में वाइन का क्रेज पैदा हो ही गया है अब वाइन उत्पादक टायर दो शहरों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. सिसिलिया ओल्डने कहती हैं, "वाइन खासकर महिलाओं के बीच, कम अल्कोहल होने के कारण स्वीकार की जा रही है." लोगों में वाइन की समझ पैदा करने के लिए इन हाउस टेस्टिंग का आयोजन किया जाता है जहां वाइन की जानकारी रखने वाले लोग वाइन को पीने के तरीके और उसे समझने के तरीके के बारे में बताते हैं.

Prowein Messe 2013 in Düsseldorf
मेले में सिसिलिया ओल्डने के सामने सुला चखते मेहमानतस्वीर: DW/M. Jha

इसके अलावा सूला विनयार्ड्स ने वाइन को लोकप्रिय बनाने के लिए पर्यटन का सहारा भी लिया है. 2005 से वाइन टूरिज्म शुरू किया गया है और इस बीच हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा लोग नासिक में सूला का विनयार्ड और वाइन फैक्ट्री देखने जाते हैं. इसके अलावा वहां हर साल संगीत महोत्सव का भी आयोजन किया जा रहा है. फ्रांस और इटली तो वाइन के इलाकों में छुट्टियों के लिए मशहूर हैं ही, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में इसकी पंरपरा है. जर्मनी में वाइन के इलाके बहुत बड़े नहीं हैं, यहां गांवों में किसान छोटे स्तर पर वाइन का उत्पादन करते हैं. अंगूर के मौसम में यहां भी गांवों में सैलानियों की भीड़ होती है.

अंगूर की खेती वाले इलाकों में यह पर्यटन रोजगार का अच्छा खासा जरिया है. नासिक में भी सुला की वजह से स्थानीय किसानों की हालत बेहतर हुई है. वाइनरी के पास स्थित गांव में इसकी वजह से करीब 2,500 रोजगार पैदा हुए हैं. मुंबई से करीब 200 किलोमीटर दूर स्थिति नासिक में अंगूर पैदा करने के लायक मौसम है. इस बीच नासिक अंगूर की पैदावार का अहम केंद्र बन गया है. सिलिसिया ओल्डने कहती हैं, "नासिक का इलाका फ्रांस के वाइन के इलाकों से भी महंगा हो गया है."

Bildergalerie Wein Hambacher Schloss mit Weinbergen
यूरोप में अंगूर के बागानतस्वीर: picture alliance / Hinrich Bäsemann

लेकिन इलाके में अंगूर की खेती करने और वाइन बनाने की परंपरा विकसित हो रही है. सुला वाइनरी हर साल 80 लाख बोतल वाइन बना रही है. लेकिन भारत में वाइन का बाजार 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. भारतीय बाजार में सुला वाइन का हिस्सा बढ़कर 70 प्रतिशत हो गया है. इस विकास के ताल बनाए रखने के लिए सुला को अपनी क्षमता बढ़ानी होगी और वाइन बनाने लायक अंगूर की खेती को बढ़ावा देना होगा.

लेकिन बाजार के बढ़ने के साथ नई चुनौतियां भी पैदा हुई हैं. खासकर अलग अलग तापमान वाले देश में वाइन को सही क्वालिटी में ग्राहकों तक पहुंचाने की. सिसिलिया ओल्डने कहती हैं, "यह बड़ी चुनौती है." लेकिन कंपनी वाइन रिटेलर्स को भी शिक्षित कर रही है. उनमें से बहुतों के पास टेम्परेचर रेगुलेटर भी नहीं हुई करते थे. ट्रांसपोर्टर और डिस्ट्रीब्यूटरों को वाइन को सही तापमान में रखने की ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि कुछ साल पहले की तरह वाइन के स्टॉक को नष्ट न करना पड़े.

रिपोर्ट: महेश झा

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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