सफाईकर्मी की मौत और सिस्टम पर सवाल
५ फ़रवरी २०२०दिल्ली के कड़कड़डूमा इलाके में दो फरवरी को सीवर सफाई के दौरान एक सफाईकर्मी की मौत हो गई जबकि एक और सफाईकर्मी गंभीर रूप से बीमार हो गया. सीवर की सफाई एक ऐसा काम है जिसको करने के लिए मशीनों की मदद ली जा सकती है लेकिन 21वीं सदी के भारत में आज भी सीवर को साफ करने के लिए इंसान उतर रहे हैं.
टॉयलेट और अन्य जगहों से आने वाला गंदा मिश्रण जब सीवर में फंस जाता है तो उसे साफ करने के लिए मजदूरों को अंदर भेजा जाता है और कई बार यह जानलेवा भी साबित होता है. कई बार मजदूर बिना किसी पर्याप्त सुरक्षा इंतजामों के सिर्फ एक रस्सी के सहारे गहरे सीवर में उतरते हैं और उसके भीतर खतरनाक गैस मौत की वजह बन जाती है.
सफाई कर्मचारी आंदोलन और रमोन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता वेजवाड़ा विल्सन डीडब्ल्यू से कहते हैं, "समस्या यह है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश का गंभीरता से पालन नहीं कर रही हैं. दोनों सरकारें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान नहीं कर रही हैं."
विल्सन कहते हैं, "दिल्ली में सीवर लाइन कई किलोमीटर तक फैली हुई है, दिल्ली जैसे बड़े शहर के लिए सरकार को व्यापक कार्य योजना बनानी होगी ताकि सीवर लाइन में इस तरह के हादसे ना हो. लेकिन समस्या यह है कि दोनों सरकारों के लिए दलितों की जिंदगी कोई मायने नहीं रखती है. सरकार तो सीवर में होने वाली मौत की भी जिम्मेदारी नहीं लेती है और वह ठेकेदार पर ही इसका ठीकरा फोड़ती है."
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सुरक्षा की चिंता नहीं
सीवर सफाई करने के लिए जो मजदूर भूमिगत नालों में उतरते हैं उन्हें बहुत कम पैसे दिए जाते हैं और कई बार सीवर सफाई के ठेकेदार अपने कर्मचारियों को बिना सुरक्षा उपकरण के ही काम करने को मजबूर करते हैं. हाथ से मैला उठाने की प्रथा को खत्म करने लिए काम करने वाले सफाई कर्मचारी आंदोलन के मुताबिक सीवर और सेप्टिक टैंकों में अब तक 1876 मौतें हो चुकी हैं. सीवर की सफाई का मानवीय तरीके से कराए जाने का लगातार विरोध होता रहा है.
कोर्ट की सख्ती के बाद सरकारी एजेंसियों ने मशीनें भी खरीदी हैं लेकिन इसके बावजूद गैरसरकारी स्तर पर ठेकेदार इंसानों से सीवर की सफाई करा रहे हैं. विल्सन कहते हैं, "बस हादसा भी हो जाए तो सरकार तत्काल मुआवजे देने पहुंच जाती है लेकिन जो हमें खुशहाली के साथ जीने में मदद कर रहे हैं उनकी जिंदगी की सुरक्षा करनी चाहिए. देश में दलितों की सुरक्षित जिंदगी को सरकार पूरी तरह से नजरअंदाज कर रही है. हमने सीवर में होने वाली हर मौत की रिपोर्ट सरकार को दी है."
कानून पर अमल नहीं
मैनुअल स्केवेंजिग को खत्म करने और इसे प्रतिबंधित करने वाला पहला कानून 1993 में बना जबकि उसके बाद दूसरा कानून 2013 में बना था. मैनुअल स्कैवेंजिंग कानून 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी खास परिस्थति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए कई तरह के नियमों का पालन करना होता है. अगर सफाईकर्मी किसी कारण से सीवर में उतरता भी है तो इसकी इजाजत इंजीनियर से होनी चाहिए और पास में ही एंबुलेंस की व्यवस्था भी होनी चाहिए ताकि किसी आपातकाल स्थिति में सफाईकर्मी को अस्पताल ले जाया जा सके.
इसके अलावा दिशा-निर्देश कहते हैं कि सफाईकर्मी की सुरक्षा के लिए ऑक्सीजन मास्क, रबड़ के जूते, सेफ्टी बेल्ट, रबड़ के दस्ताने, टॉर्च आदि होने चाहिए. तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में नए प्रयोग हो रहे हैं तो दूसरी ओर देश में बिना सुरक्षा उपकरणों के सफाईकर्मी सीवर में अपनी जान देने को मजबूर हैं. इसी पर विल्सन का कहना है, "केंद्र सरकार और राज्य सरकार के दिमाग में अभी भी कहीं ना कहीं छुआछूत मौजूद है और जिन लोगों की मौत हो रही है क्या सरकार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानती है."
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चुनावी मुद्दा और प्रतिबद्धता
दिल्ली में इस वक्त विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और यह भी एक मुद्दा है. आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि सीवर साफ करने सीवरके दौरान कर्मचारी की मौत होने पर एक करोड़ का मुआवजा मिलेगा. हालांकि विल्सन कहते हैं कि सिर्फ घोषणा नहीं जमीन पर भी इसे अमल पर लाने की जरूरत है.
दूसरी ओर इस साल के बजट में केंद्र सरकार ने कहा है कि वह स्वच्छता के क्षेत्र में खुले में शौच मुक्त भारत के लिए प्रतिबद्ध है. बजट में स्वच्छ भारत मिशन के लिए 2020-21 में कुल 12,300 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. साथ ही सीवर सिस्टमों और सेप्टिक टैंकों की सफाई को मैनुअल तरीके से न करने को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे कार्यों के लिए आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय की तरफ से उचित तकनीक की पहचान की व्यापक पैमाने पर मंजूरी के लिए वित्तीय सहायता देने की बात कही गई है.
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