क्या अब एसपीडी को मना पाएंगी मैर्केल?
३ जुलाई २०१८पिछले कुछ समय से जर्मनी के राजनीतिक माहौल में असमंजस के बादल साफ नजर आ रहे थे. लेकिन सोमवार को जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स (सीडीयू) ने अपनी सहोदर पार्टी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के साथ मिलकर जारी विवादों पर समाधान निकाल लिया. दरअसल देश के गृहमंत्री और सीएसयू के नेता हॉर्स्ट जेहोफर ने रविवार को अस्थायी इस्तीफे दे दिया था जिसके बाद जर्मनी में सरकार गिरने का खतरा मंडरा रहा था. माना जा रहा था कि देश का राजनीतिक भविष्य सोमवार को मैर्केल और जेहोफर के बीच होने वाली संकटकालीन बैठक ही तय करेगी. दोनों दलों के नेताओं ने इस बैठक में शरणार्थी मुद्दे से जुड़े मामलों में एक समझौता कर लिया.
मैर्केल ने कहा, "जर्मनी, यूरोपीय संघ की सीमाओं में शरणार्थियों की आवाजाही को व्यवस्थित करेगा और ट्रांजिट सेंटर तैयार करेगा." उन्होंने कहा कि यह समझौता "आप्रवासन को नियंत्रित" करने के मुद्दे पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण में संतुलन स्थापित करेगा. मैर्केल ने मीडिया से कहा, "मुश्किल दिनों और कई दौर की वार्ताओं के बाद हमनें एक अच्छा रास्ता निकाल लिया है. जब यूरोपीय संघ में साझेदारी की भावना संरक्षित है, तो ऐसे में जरूरी है कि यूरोपीय संघ की सीमाओं के भीतर शरणार्थी मुद्दे को लेकर अहम कदम उठाया जाएं."
अब क्या होगा
गृहमंत्री जेहोफर ने भी साफ कर दिया है कि वह अब भी गृह मंत्री बनें रहेंगे. उन्होंने कहा कि वह सीडीयू और सीडीयू के बीच हुए समझौते पर संतुष्ट हैं. उन्होंने कहा, "ट्रांजिट सेंटर के चलते शरणार्थी मामलों में फैसले जल्दी लिए जाएंगे. साथ ही डिपोर्टेशन जैसे मामलों में भी तेजी आएगी." दोनों दलों के जनरल सेक्रेटरियों ने इस समझौते पर कहा कि यह जर्मनी में आप्रवासन को घटाएगा. साथ ही ऐसे लोगों से भी दूरी बढ़ेगी जिन्हें फिलहाल शरणार्थी दर्जा नहीं मिला है और जिनकी संभावनाएं भी कम हैं.
इस समझौते ने फिलहाल एक अहम सवाल को जरूर पीछे छोड़ दिया है. सवाल यही कि क्या जर्मनी के पास अपनी राष्ट्रीय सीमाओं पर शरणार्थियों को दूर करने का अधिकार होगा. दरअसल यह सवाल दोनों दलों के बीच एक बड़ा मुद्दा था.
जानिए जर्मन राजनीतिक पार्टियों की एबीसी
सीएसयू का पक्ष
इस समझौते ने फिलहाल के लिए विवाद जरूर टाल दिया है. लेकिन जेहोफर, चांसलर मैर्केल की शरणार्थी नीति के 2015 से ही आलोचक रहे हैं. मैर्केल की शरणार्थी नीति के तहत जर्मनी ने शरणार्थियों के लिए अपनी सीमाएं खोल दी थी. जेहोफर का मैर्केल की नीति को लेकर विरोध इस साल मार्च में खुलकर नजर आया, जब जेहोफर ने सीएसयू के अध्यक्ष पद पर बने रहते हुए देश का गृह मंत्रालय संभाला. इन मतभेदों को इसलिए भी हवा मिली क्योंकि इसी साल अक्टूबर में सीएसयू के गढ़ माने जाने वाले बवेरिया में क्षेत्रीय चुनाव होने हैं. अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए सीएसयू के लिए आप्रवासन के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाना उसकी जरूरत भी है. बवेरिया में सीएसयू का मुकाबला आप्रवासी मुद्दे पर कड़ा रुख रखने वाली दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) से है.
कैसे शुरू हुआ विवाद
जेहोफर के कार्यकाल में सबसे अहम था उनका माइग्रेशन पर "मास्टर प्लान." लेकिन मैर्केल ने इसमें सुझाए एक प्रावधान पर अपवाद जताया. यह प्रावधान था कि जर्मनी सीमाओं पर ऐसे शरणार्थियों को अस्वीकार करने की बात करता है जो यूरोपीय संघ के किसी और देश में पंजीकृत हैं. वहीं मैर्केल आप्रवासन के मुद्दे पर यूरोपीय समाधानों को तरजीह देने की बात कहती आईं हैं. जेहोफर अपने मास्टर प्लान में किसी भी संशोधन को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं थे, नतीजतन वह अपना डॉक्यूमेंट पेश करने में देरी कर रहे थे.
यहां तक कि उन्होंने मैर्केल के विरोध के बावजूद अपने गृह मंत्री के पद का इस्तेमाल करते हुए नेशनल बॉर्डर चेक जैसी शक्ति की धमकी भी दे डाली. इस पूरे घटनाक्रम ने जर्मनी में सरकार गिरने के कयासों को हवा दी.
एसपीडी का पक्ष
सीडीयू, सीएसयू के बाद इस पूरे मामले में एक एंगल सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) का भी है. एसपीडी की चैयरमेन आंद्रेया नालेस ने कहा कि एसपीडी सिर्फ सीडीयू-सीएसयू के साथ हुए गठबंधन समझौते को मानेगी, न कि जेहोफर के मास्टर प्लान को. सोमवार को मैर्केल और जेहोफर ने गठबंधन समिति की बैठक में एसपीडी के साथ इस व्यवस्था पर चर्चा की जिसके बाद नालेस ने साफ किया है कि एसपीडी इस समझौते को मंजूरी दे, इससे पहले कई मुद्दों को स्पष्ट किए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हम विचार कर इस मुद्दे पर कोई निर्णय लेंगे." माना जा रहा है कि गठबंधन समिति की बैठक आगे भी जारी रहेंगी.
एसपीडी का पांच सूत्रीय प्लान
वहीं एसपीडी ने पांच सूत्रीय योजना जारी कर बताया है कि वह शरणार्थी मुद्दे पर क्या होते देखना चाहता है. इस डॉक्यूमेंट में कहा गया हैः
1. उन कारणों की तरफ काम किया जाए जिनके चलते लोग अपने देश छोड़ कर भागते हैं.
2. यूरोपीय संघ की सीमाओं पर लोगों को दूर करने के लिए कोई भी एकतरफा कार्रवाई न हो.
3. ग्रीस और इटली को अधिक मदद, जहां भूमध्य सागर पार कर आप्रवासी अधिक आ रहे हैं.
4. यूरोपीय संघ की बाहरी सीमाओं पर कड़ा नियंत्रण.
5. एक ऐसा कानून, जो जर्मनी में आने वाले आप्रवासियों और जॉब मार्केट में इनकी हिस्सेदारी को नियंत्रित करता हो.
इन सारी बातों के बाद यह देखना जरूर दिलचस्प होगा कि क्या एसपीडी, सीडीयू-सीएसयू के बीच हुए समझौते पर हामी भरती है. वहीं जब तक एसपीडी इसके लिए हामी नहीं भरती तब तक मैर्केल सरकार सुरक्षित है, यह कहना जल्दबाजी होगा.
जेफरसन चेस/एए