सिक्किम में तेज हो रहा है पनबिजली परियोजना का विरोध
१३ नवम्बर २०२०स्थानीय लेप्चा समुदाय का आरोप है कि नेशनल हाइड्रो पावर कार्पोरेशन (एनएचपीसी) की प्रस्तावित परियोजना के तहत बांध बनाने से उन लोगों की आजीविका, जमीन, संस्कृति और हिमालय क्षेत्र का संवेदनशील पर्यावरण खतरे में पड़ जाएगा. राज्य में पहले भी ऐसी परियोजनाओं का बड़े पैमाने पर विरोध होता रहा है. दो साल पहले भी एक परियोजना का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था. इस छोटे से पर्वतीय राज्य में पहले से ही तीस्ता व रंगीत नदियों पर दो दर्जन से ज्यादा ऐसी परियोजनाएं चल रही हैं.
ताजा विवाद
ताजा विवाद राज्य के जोंगू इलाके में प्रस्तावित 520 मेगावाट क्षमता वाली पनबिजली परियोजना से जुड़ा है. जोंगू राज्य के मूल लेप्चा समुदाय का इलाका है. समुदाय के लोग इस इलाके को काफी पवित्र मानते हैं. एफेक्टेड सिटीजंस आफ तीस्ता (एसीटी) के बैनर तले परियोजना का विरोध कर रहे लोगों की दलील है कि इससे इलाके का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र तो खतरे में पड़ेगा ही, जोंगू का वजूद भी खत्म हो जाएगा. तीस्ता नदी की घाटी के अलावा यूनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कंचनजंघा नेशनल पार्क भी इसी इलाके में हैं.
लेप्चा सिक्किम का मूल समुदाय है. वर्ष 1956 में सिक्किम के संप्रभु देश रहने के दौरान ही एक अधिसूचना के जरिए जोंगा इलाके को लेप्चा समुदाय के लिए संरक्षित कर दिया गया था.यहां लगभग चार हजार लेप्चा रहते हैं. यह समुदाय फिलहाल अपने वजूद की लड़ाई रह रहा है. इस समुदाय की कुल आबादी महज 50 हजार रह गई है. समुदाय के बाकी लोग पश्चिम बंगाल के अलावा तिब्बत, नेपाल और दार्जिलिंग में रहते हैं. जोंगू इलाके में कोई बाहरी व्यक्ति न तो जमीन खरीद सकता है और न ही रह सकता है. इलाके में जाने के लिए बाहरी लोगों को प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है.
एसीटी के महासचिव ग्यात्सो लेप्चा कहते हैं, "सिक्किम और दार्जिलिंग की पहाड़ियों का 99 फीसदी हिस्सा तीस्ता घाटी के सहारे ही टिका है. तीस्ता का मुक्त प्रवाह इस इलाके के लिए बेहद अहम है. पहले ही तमाम परियोजनाओं की वजह से यह बाधित हो चुका है. अब प्रस्तावित परियोजना से लेप्चा समुदाय का मूल घर भी नष्ट हो जाएगा.”
और कई परियोजनाएं
सिक्किम में तीस्ता नदी पर पहले से ही चार बड़ी परियोजनाएं बन चुकी हैं. इनमें 12 सौ मेगावाट क्षमता वाली सबसे बड़ी तीस्ता ऊर्जा परियोजना भी शामिल है. इसके अलावा पड़ोसी पश्चिम बंगाल में भी इस नदी पर दो बड़ी पनबिजली परियोजनाएं बनाई जा चुकी हैं. एनएचपीसी ने वर्ष 2006 में राज्य सरकार के साथ सिक्किम की दूसरी बड़ी पनबिजली परियोजना के लिए एक करार पर हस्ताक्षर किया था. लेकिन एसीटी की ओर से बड़े पैमाने पर हुए आंदोलन और विरोध के बाद उसे रोक दिया गया था. एसीटी ने उक्त परियोजना के विरोध में वर्ष 2007 से 2009 के बीच राजधानी गंगटोक में 915 दिन लंबी भूख हड़ताल की थी. उसकी वजह से सरकार ने कम से कम चार परियजोनाएं रद्द कर दी थीं. उनमें से तीन जोंगू इलाके में प्रस्तावित थीं. इसी तरह स्थानीय लोगों के विरोध के बाद तीस्ता स्टेज 4 परियोजना भी रोकनी पड़ी थी.
राज्य में पवन चामलिंग के नेतृत्व वाली पूर्व सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) सरकार और सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) पार्टी, जो उस समय विपक्ष में थी, ने भरोसा दिया था कि स्थानीय लोगों की सहमति के बिना किसी परियोजना को हरी झंडी नहीं दिखाई जाएगी. एसकेएम फिलहाल सत्ता में है. इस साल 18 जुलाई को राज्य सरकार ने परियोजना के लिए एनएचपीसी की ओर से जमीन अधिग्रहण के सामाजिक असर के अध्ययन के लिए एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया था. इससे लेप्चा समुदाय में नाराजगी बढ़ गई है. एसीटी महासचिव ग्यात्सो लेप्चा कहते हैं, "हम इन परियोजनाओं के खिलाफ बीते 16 वर्षों से अभियान चला रहे हैं. हमने अब सेव तीस्ता अभियान भी शुरू किया है.”
भविष्य का पावरहाउस
पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम को देश का भावी पावरहाउस कहा जाता है. यही वजह है कि हाल के वर्षों में इन दोनों राज्यों में पनबिजली परियोजनाओं की तादाद बढ़ी है. इसके साथ ही ऐसी परियोजनाओं के खिलाफ विरोध के स्वर भी तेज हुए हैं. अरुणाचल प्रदेश ने तो हाल के वर्षो में कम से कम 150 परियोजनाओं के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. सिक्किम सरकार ने भी तीस्ता व उसकी सहायक नदियों पर छोटी-बड़ी 27 परियोजनाओं के लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. उनमें चार परियोजनाएं तो स्थानीय लोगों के विरोध के चलते रद्द की जा चुकी हैं. 315 किमी लंबी तीस्ता नदी पूर्वी हिमालय से निकल कर सिक्किम व पश्चिम बंगाल होते हुए बांग्लादेश जाकर बंगाल की खाड़ी में मिलती है.
लेप्चा कहते हैं, "सिक्किम के उत्तरी इलाके के लोगों को पहले से ही पनबिजली परियोजनाओं का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. लेकिन प्रस्तावित परियोजना हमारे ताबूत में आखिरी कील साबित होगी. बाघ की तरह लेप्चा समुदाय भी लुप्तप्राय जीव है.” उनका कहना है कि जोंगू ही लेप्चा समुदाय का जन्मस्थल है. हम अपने इस पवित्र स्थान पर कोई परियोजना नहीं लगने देंगे. नदियां हमारी जीवन रेखा हैं. अगर बांध बनेंगे तो नदी के पानी को रोका जाएगा. यहां नदी पर ही जीवन निर्भऱ है. इससे हमारी धान की खेती, बागवानी और मछली पकड़ने जैसे आजीविका के साधनों पर बेहद प्रतिकूल असर होगा."
ग्यात्सो लेप्चा बताते हैं, "भूगर्भ विज्ञानियों की राय में इस इलाके में हिमालय अभी युवा है. मानसून के दौरान यहां अक्सर भूस्खलन होते रहते हैं. इससे साबित होता है कि यह पहाड़ कितने नाजुक हैं. बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियां होने की स्थिति में पूरा इलाका तबाह हो जाएगा.
सिक्किम सरकार की दलील
परियोजना के खिलाफ तेज होती आवाजों के बीच सिक्किम सरकार ने कहा है कि नई परियोजनाओं से इलाके में विकास की गति तेज होगी और लोगों में समृद्धि आएगी. ऊर्जा व बिजली सचिव नामग्याल शेरिंग भूटिया कहते हैं, "सरकार को कुछ ग्राम सभाओं का समर्थन हासिल है. लोगों का एक गुट बिजली परियोजना के समर्थन में है. उम्मीद है बातचीत से यह विवाद सुलझ जाएगा.”
लेकिन एसीटी ने सरकार की दलीलों व दावों को निराधार बताया है. लेप्चा कहते हैं, "हम बड़े पैमाने पर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं. स्थानीय लोगों के रुख से साफ है कि प्रस्तावित परियोजना का हश्र भी पहले की चार परियोजनाओं की तरह ही होने का अंदेशा है. पर्यावरणविदों ने भी राज्य में बढ़ती पनबिजली परियोजनाओं पर गहरी चिंता जताई है. पर्यावरणविद केसी लामा कहते हैं, "प्राकृतिक संसाधनों के बड़े पैमाने पर दोहन के जरिए सरकार विकास के नाम पर विनाश को न्योता दे रही है.”
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