'व्यंग्य करना इंसानी हक है'
८ जनवरी २०१५जर्मनी की पत्रिका 'टिटानिक' भी फ्रांसीसी पत्रिका शार्ली एब्दॉ की तरह व्यंग्यात्मक सामग्रियों का प्रकाशन करती है. इस पत्रिका ने भी इस्लाम से संबंधित व्यंग्य और मुसलमानों के बारे में मजाकिया सामग्री का प्रकाशन किया है.
डॉयचे वेले: बुधवार को पेरिस में हुए हमले के बाद क्या आपको भी अपनी और अपने कर्मचारियों की सुरक्षा को लेकर चिंता है?
टिम वोल्फ: इस समय मैं डरा हुआ नहीं हूं. हालांकि यह बहुत साफ दिख रहा है, लेकिन फिर भी मैं यह कहने से बचूंगा कि इस खून खराबे के लिए इस्लामी हमलावर जिम्मेदार हैं. जब तक इस बात की पुष्टि नहीं हो जाती, ये सिर्फ अनुमान ही है, मैं और कुछ भी कहने से हिचकिचाऊंगा.
लेकिन अगर ये इस्लामी हैं, तो भी मैं खतरे जैसी कोई बात नहीं देखता. हमने पहले भी इस्लाम से जुड़े बड़े नाजुक मजाक प्रकाशित किए हैं और हमें लगता है खासकर जर्मनी में मुसलमान इस तरह के मजाक को मजाक की ही तरह लेते हैं.
यानि आपने सुरक्षा संबंधी कोई कदम नहीं उठाए हैं?
नहीं, हमें वह जरूरी नहीं लगता. हमें कोई बड़ा खतरा महसूस नहीं होता, इसलिए सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है.
क्या आप शार्ली एब्दॉ से किसी के साथ संपर्क में हैं?
नहीं, निजी स्तर पर मैं वहां किसी को नहीं जानता. हम उनका काम पढ़ते आए हैं और पत्रिका के साथ हमारे दोस्ताना संबंध हैं.
क्या टिटानिक अक्सर इस्लाम पर व्यंग्य करती हुई सामग्री प्रकाशित करती है, पिछली बार कब किया था?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि दुनिया में क्या चल रहा है. हाल में हमने इस्लामिक स्टेट पर कई चीजें प्रकाशित कीं. और अगर पेरिस पर हुआ हमला इस्लामिक स्टेट का काम होता तो हम उसे भी अपने यहां छापते. अगर आप व्यंग्य करने वालों पर हमला करते हैं, तो आप हमारा काम और भी प्रासंगिक बना देते हैं.
क्या इस्लाम पर किए जाने वाले व्यंग्य प्रकाशित करने पर पाठकों से ज्यादा कड़ी प्रतिक्रिया आती है?
असल में नहीं. हमने पाया कि ईसाइयों को नाराज करना या मिषाएल शूमाखर के चाहने वालों को नाराज करना ज्यादा आसान है.
पेरिस हमले के बाद अब आपके यहां होने वाले प्रकाशन पर कितना असर पड़ेगा?
मैं अपनी बात दोहराना चाहूंगा. अगर ये इस्लामिक स्टेट का काम है तो व्यंग्य का और भी औचित्य बन जाता है. इस तरह के हमलों के बाद और भी व्यंग्य होने चाहिए. और ऐसा ही हमारी पत्रिका भी करेगी.
इस तरह की हिंसा के बीच भी?
हां. हालांकि जब हम इस तरह की हिंसा के बारे में सुनते हैं तो निजी स्तर पर डर तो लगता ही है. हालांकि, व्यंग्यकार होने के नाते हमारा रवैया होना चाहिए कि हर इंसान को अपना मजाक बनाए जाने का हक है. इसे सिर्फ इसलिए नहीं रोका जाना चाहिए क्योंकि कुछ बेवकूफ लोग गोलियां चला रहे हैं.