'लोकतंत्र के लिए खतरा है ट्रंप-जैसा पॉपुलिज्म'
१३ जनवरी २०१७अमेरिका और यूरोप में मजबूत होती दिख रही पॉपुलिस्ट राजनीति और उसके नेता आधुनिक मानवाधिकार आंदोलनों और यहां तक कि पश्चिमी लोकतंत्र के लिए भी खतरा हैं. अपनी 704 पेजों वाली "वर्ल्ड राइट्स 2017" रिपोर्ट में मानवाधिकार संगठन 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने मानव अधिकारों से जुड़े प्रमुख वैश्विक रुझान और कुल 90 देशों में स्थानीय हालात की समीक्षा शामिल की है. इसमें भी अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अलंकारपूर्ण भाषण की ओर अलग से ध्यान दिलाते हुए उसे "असहिष्णुता की राजनीति का एक ज्वलंत उदाहरण" बताया गया है.
रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई कि अगर ऐसी आवाजें आगे बढ़ती रहें तो "दुनिया अंधे युग में चली जाएगी." यह भी लिखा है कि ट्रंप की सफलता से एक खतरनाक और "सबसे ताकतवर आदमी के शासन के प्रति मोह" की प्रवृत्ति उभर कर आती है. रिपोर्ट में अमेरिका की ही तरह ऐसी प्रवृत्ति के रूस, चीन, वेनेजुएला और फिलिपींस में भी हावी होने की बात कही गई है.
ह्यूमन राइट्स वॉच के निदेशक केनेथ रॉथ ने रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि कंबोडिया में हुन सेन जैसे नेता भी ट्रंप की चुनावी जीत और उनके जैसे नेताओं के उदय को "अपनी दमनकारी गतिविधियां जारी रखने के लिए हरी बत्ती" समझते हैं. रॉथ ने ट्रंप कैबिनेट में विदेश मंत्री के तौर पर एक्सॉनमोबिल कंपनी के पूर्व प्रमुख रेक्स टिलरसन के चुनाव की आलोचना करते हुए कहा कि "यह वही आदमी है जिसने अपना पूरा करियर ही तानाशाहों के साथ साठगांठ के बूते बनाया" और जो दुर्व्यवहारों की शिकायतों पर कार्रवाई ना करने के आरोपों का सामना करने जब सीनेट के सामने पेश हुआ तो भी केवल "बहाने पर बहाने" बनाता रहा.
दुनिया के 90 देशों में सर्वे के आधार पर रिपोर्ट पेश करने वाले संगठन ने बताया कि सीरिया "अधिकारों पर सबसे गंभीर संकट का प्रतिनिधि उदाहरण" है क्योंकि यहां आम लोगों पर सरकारी सेनाओं, उसकी सहयोगी सेनाओं और विद्रोही सेनाओं ने बिना अंतर किए जुल्म ढाए हैं. राइट्स समूह का कहना है कि भले ही आईएस जैसे आतंकी गुट को मिटाने में कामयाबी मिल जाए, लेकिन ऐसे बर्ताव का बदला लेने के लिए वहां से ही हिंसक चरमपंथियों की एक नई पौध तैयार हो जाएगी.
रिपोर्ट में लिखा है कि ब्रिटेन, फ्रांस, हंगरी, नीदरलैंड्स और पोलैंड जैसे कई देशों में नेता जनता में व्याप्त असंतोष को हवा देकर अपनी राजनीति चमका रहे हैं. वहीं रॉथ ने मानवाधिकारों के मामले में "कई पश्चिमी नेताओं के बेहद हल्का समर्थन" दिखाने की बात कही. उन्होंने जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को सही समय पर मानवाधिकारों के मुद्दे पर जोर शोर से बोलने का श्रेय दिया, लेकिन कई अन्य प्रमुख नेताओं के उदासीन रहने और कई बार पॉपुलिस्ट सोच का फायदा उठाने का आरोप लगाया.
मानवाधिकार संगठन ने अपील की है कि ऐसे सभी देशों में केवल सरकारें और नेता ही नहीं बल्कि आम जनता कदम उठाए. अपने संबोधन में रॉथ ने याद दिलाने की कोशिश की है कि समाज में प्रबल होते लोकलुभावनवाद का सबसे बढ़िया इलाज जनता की सक्रियता ही होती है.
आरपी/वीके (एएफपी)