रोहिंग्या मुसलमानों पर मुंह खोलें सू ची: मलाला
४ सितम्बर २०१७म्यांमार में इस साल अगस्त में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ शुरू हुई हिंसा के बाद से अब तक 90 हजार लोग वहां से भाग कर बांग्लादेश पहुंचे हैं. रोहिंग्या मुसलमानों की समस्या आंग सान सू ची के लिये सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती के रूप में सामने आयी है. रोहिंग्या मुसलामान म्यांमार में अल्पसंख्यक समुदाय है और वे लंबे समय से भेदभाव और हिंसा की शिकायत करते आ रहे हैं. आलोचकों ने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार पर आंग सान सू ची को प्रतिक्रिया नहीं देने के लिए उनकी आलोचना की है.
मलाला यूसुफजई ने ट्विटर पर लिखा है, "बीते कुछ सालों से मैं लगातार इस शर्मनाक और दुखद व्यवहार की निंदा करती रही हूं. मैं अब भी अपनी साथी नोबेल विजेता आंग सान सू ची के भी ऐसा करने का इंतजार कर रही हूं. दुनिया इंतजार कर रही है, रोहिंग्या मुसलमान इंतजार कर रहे हैं."
इंडोनेशिया के कार्यकर्ताओं ने नोबेल कमेटी से आंग सान सू ची से शांति पुरस्कार छीन लेने की मांग की है. राजधानी जकार्ता में शनिवार को म्यांमार के दूतावास के सामने कई लोगों ने इस मांग के साथ प्रदर्शन भी किया है. इंडोनेशिया दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है.
म्यांमार में हाल की हिंसा की शुरुआत 25 अगस्त को हुई जब दर्जनों पुलिस चौकियों और सेना के ठिकानों पर रोहिंग्या चरमपंथियों ने हमला किया. इसके बाद भारी हिंसा हुई और सेना की जवाबी कार्रवाई में 400 लोगों की मौत हो गई. म्यांमार के अधिकारी रोहिंग्या मुसलमानों पर हिंसा भड़काने और लोगों के घर जलाने का आरोप लगाते हैं. हालांकि नागरिक अधिकारों की बात करने वाले और भाग कर पड़ोसी देश बांग्लादेश गये रोहिंग्या समुदाय के लोग म्यांमार की सेना पर आगजनी और हत्याओं के आरोप लगा रहे हैं, जिनका मकसद रोहिंग्या को देश से भगाना है.
20 साल की मलाला यूसुफजई 2012 में तब सुर्खियों में आयीं जब पाकिस्तान में तालिबान के एक बंदूकधारी ने उनके सिर में गोली मार दी थी. मलाला यूसुफजई को लड़कियों की पढ़ाई के लिए जागरूक करने से खफा तालिबान ने उन पर हमला किया था. मलाला ने 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार जीता था.
एनआर/आरपी (रॉयटर्स)