याद रहे काला इतिहास
२५ जनवरी २०१४सैनिकों के लिए बने बैरक की खिड़की से बाहर दाखाऊ यातना शिवार का मैदान देखा जा सकता है. इसमें फुटबॉल भी खेला जाता था. कैदी नाजी सैनिकों के खिलाफ खेलते थे. और अगर गलती से किसी नाजी सैनिक के मुंह पर गेंद लगी तो?
म्यूनिख के पास दाखाऊ में नाजियों में अपनी यातना शिविर बनाई थी. आजकल आंद्रेया साइलर नाम की एक अध्यापिका फैनप्रोजेक्ट म्यूनिख की प्रमुख हैं. यह प्रोजेक्ट फुटबॉल के जरिए युवाओं को नाजी इतिहास के बारे में बताना चाहता है.
एक छात्र के इस सवाल के बाद बहस छिड़ जाती है. क्योंकि दाखाऊ नाजी जर्मनी के बड़े यातना शिविरों में से था. नाजी शासन के दौरान यहां करीब दो लाख लोगों को कैद में रखा गया. इनमें से 41,000 की मौत हो गई और बाकी लोगों को दूसरे शिविरों में भेज दिया गया. 1965 में इन शिविरों को स्मारकों में बदल दिया गया और इतिहास की व्याख्या के नए दृष्टिकोणों के बारे में बात की गई.
इटली से प्रेरणा
फैनप्रोजेक्ट की अब करीब 50 टीमें हैं. इनमें समाज सेवक अलग अलग टीमों के साथ आउश्वित्स, साखसेनहाउसेन जैसे पूर्व यातना शिविर जाते हैं. कुछ तो इस्राएल भी घूम कर आए हैं. आंद्रेया साइलर ध्यान देती हैं कि इतिहास का यह पहलू भी युवाओं को पता चले, "हम यहां नैतिक रूप से ज्यादा अच्छे होकर बच्चों को यह नहीं दिखाना चाहते. हमें उस वक्त किनारे किए गए लोगों के बारे में बताना होगा ताकि आज फिर ऐसा न हो, जैस स्कूलों में धौंस दिखाकर होता है."
यह प्रोजेक्ट इटली में शुरू हुआ. रोम में यहूदी समुदाय के प्रमुख रिकार्डो पासीफिसी ने इटली के शहरों में नाजी यातना की याद दिलाने पर खासा जोर दिया. दाखाऊ यातना शिविर के परिसर में बने सुलह चर्च ने फिर 2005 में जर्मनी में फुटबॉल टीमों के साथ यह प्रोजेक्ट शुरू किया.
इतिहास की गंभीरता
दाखाऊ में युवा फुटबॉलरों से मिलने पूर्व फुटबॉलर एर्न्स्ट ग्रूबे भी आए हैं जिसे नाजी "आधा यहूदी" कहते थे. ग्रूबे ने कुछ दिन अनाथाश्रम में बिताए और उसके बाद उन्हें थेरेसियेनश्टाड की यहूदी बस्ती में भेज दिया गया. 81 साल के हो चुके एर्न्स्ट बच्चों क अपनी कहानी सुनाते हैं, "युद्ध के बाद 1860 म्यूनिख क्लब को मैं मिल गया और उन्होंने मुझे तुरंत अपने साथ शामिल कर लिया. मुझे आखिरकार महसूस हुआ कि मैं इसका हिस्सा हूं." इतने दिनों की यातना के बाद एक टीम में शामिल होना, फुटबॉल खेलना और शांतिपूर्ण जीवन जीना सबकी किस्मत नहीं. लेकिन ग्रूबे कहते हैं कि कई बच्चे आजकल नाजी इतिहास की गंभीरता नहीं समझ पाते और जोर जबरदस्ती से ऐसे सम्मेलनों में हिस्सा लेते हैं.
2010 में डी साइट पत्रिका ने एक जनमत सर्वेक्षण किया. 14 साल के बच्चों से पूछताछ करने के बाद पता चला कि दो तिहाई से ज्यादा बच्चे नाजी इतिहास में दिलचस्पी दिखाते हैं लेकिन चार प्रतिशत से कम को लगता है कि उन्हें इसके प्रति संवेदनशील होना चाहिए. जर्मनी में संग्रहालय और स्मारक कोशिश कर रहे हैं कि नाजियों की कहानी को सुनाने का एक दिलचस्प तरीका निकालें. नाजी काल में युवा रहे जर्मनों का भी रवैया बदल रहा है. हर किताब और नाजी जर्मनी के बारे में हर खबर दृष्टिकोण बदलने का काम करती है.
फ्राइबर्ग के इतिहासकार डीटहेल्म ब्लेकिंग फिर भी नाजी इतिहास के बारे में सोच को आगे बढ़ाना चाहते हैं. 1944 में वारसॉ में नाजियों के खिलाफ विरोध हुआ था. अब वह एक मैच का आयोजन कर रहे हैं, पोलैंड और जर्मनी की युवा टीमों के साथ. ब्लेकिंग कहते हैं कि पोलैंड में कई युवा दक्षिणपंथ की ओर जा रहे हैं. वह एक ऐसा संकेत देना चाहते हैं जो वह अनदेखा नहीं कर सकते.
रिपोर्टः रॉनी ब्लाश्के/एमजी
संपादनः ए जमाल