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म्यांमार में "जातीय सफाये" को चीन का समर्थन!

१४ सितम्बर २०१७

म्यांमार के रखाइन में सुरक्षा बलों की कार्रवाई का चीन ने समर्थन किया है. इस कार्रवाई के कारण 4 लाख से ज्यादा रोहिंग्या भाग कर बांग्लादेश आये हैं और संयुक्त राष्ट्र ने इसकी निंदा करते हुए इसे "जातीय सफाया" कहा है.

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Rohingya Krise in Bangladesch
तस्वीर: DW/M.M. Rahman

म्यांमार की सेना देश के पश्चिमी प्रांत रखाइन में अपना अभियान जारी रखे हुए हैं जो अगस्त में सुरक्षा चौकियों पर कई आतंकवादी हमलों के जवाब में शुरू किया गया. सुरक्षा चौकियों पर हमले में दर्जन भर लोग मारे गये थे. म्यांमार के सरकारी अखबार ग्लोबल न्यू लाइट ऑफ म्यांमार ने चीन के राजदूत होंग लियांग का एक बयान छापा है जिसमें उन्होंने सरकार के शीर्ष अधिकारियों से कहा है, "रखाइन में आतंकवादी हमलों पर चीन का रुख साफ है, यह एक आंतरिक मुद्दा है." चीनी राजदूत ने यह भी कहा है, "म्यांमार के सुरक्षा बलों का आतंकवाद के खिलाफ जवाबी हमला और लोगों को सहायता देने की सरकार की वचनबद्धता का हम भरपूर स्वागत करते हैं."

Rohingya Krise in Bangladesch
तस्वीर: DW/M.M. Rahman

चीन म्यांमार पर प्रभाव जमाने के मामले में अमेरिका से मुकाबला करना चाहता है. म्यांमार 50 सालों के सैन्य शासन के चलते लंबे समय तक राजनयिक रूप से अलग थलग रहा. लेकिन  2011 के बाद से उसने इससे बाहर निकलना शुरू किया. इस हफ्ते की शुरुआत में ट्रंप प्रशासन ने आम लोगों की सुरक्षा की मांग की. रखाइन प्रांत में हिंसा और वहां से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची के लिए पिछले साल देश की नेता बनने के बाद सबसे बड़ी चुनौती है. आलोचक हिंसा नहीं रोक पाने के कारण उनसे पुरस्कार वापस लेने की मांग कर रहे हैं.

हिंसा के बारे में संयुक्त राष्ट्र की नागरिक अधिकार एजेंसी का कहना है, "यह जातीय सफाये का स्पष्ट उदाहरण है." संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश और सुरक्षा परिषद ने बुधवार को म्यांमार के प्रशासन से हिंसा खत्म करने का अनुरोध किया और कहा कि इस स्थिति को जातीय सफाया कहना बेहतर होगा. न्यूयॉर्क में गुटेरेश ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, "जब एक तिहाई रोहिंग्या आबादी को देश से भागना पड़े तो क्या आप इससे बेहतर शब्द उनकी हालात बयान करने के लिए ढूंढ सकते हैं." म्यांमार की सरकार का कहना है कि वह आतंकवादियों को निशाना बना रही है, जबकि रोहिंग्या लोगों का कहना है कि सुरक्षा बलों का उद्देश्य बौद्ध बहुल इलाके से उन लोगों को बाहर निकालना है.

Rohingya Krise in Bangladesch
तस्वीर: DW/M.M. Rahman

बुधवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बंद दरवाजे के भीतर इस मुद्दे पर बैठक हुई. इसके लिए ब्रिटेन और स्वीडन ने आग्रह किया था. इसी दौरान इस कार्रवाई की सार्वजनिक रूप से निंदा करने पर भी सहमति बनी. सुरक्षा परिषद ने सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान अत्यधिक हिंसा पर चिंता जताई और रखाइन में हिंसा रोकने, तनाव घटाने और कानून व्यवस्था लागू करने के लिए तुरंत कदम उठाने की मांग की है. इसके साथ ही शरणार्थियों की समस्या का समाधान करने की भी मांग की गयी है. संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन के राजदूत ने कहा कि म्यांमार के बारे में सुरक्षा परिषद का यह पिछले 9 सालों में पहला बयान था. ऐसे बयान आमसहमति से जारी होते हैं. चीन और रूस अब तक म्यांमार को किसी भी कार्रवाई से बचाते आये हैं.

Rohingya Krise in Bangladesch
तस्वीर: DW/M.M. Rahman

इस बीच बांग्लादेश का कहना है कि सभी शरणार्थियों को उनके घर वापस जाना होगा. इसके साथ ही उसने म्यांमार में सुरक्षित जोन बनाने की मांग की है. लेकिन म्यांमार ने सुरक्षित जोन बनाने से साफ इनकार किया है. सहायता एजेंसियों ने अपना अभियान तेज कर दिया है, क्योंकि बड़ी संख्या में शरणार्थी म्यांमार से भाग रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने बुधवार को कहा कि सहायता के लिए 7.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर की जरूरत संयुक्त राष्ट्र ने बतायी थी लेकिन अब लगा रहा है कि यह रकम भी छोटी होगी. इधर भारत ने कहा है कि वह शरणार्थियों के लिए राहत का सामान भेजना शुरू कर रहा है. विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि गुरुवार से विमान राहत सामग्री लेकर उड़ान भरना शुरू कर देंगे. सबसे पहले रोहिंग्या मुसलमानों के लिए खाने पीने का सामान और मच्छरदानी भेजी जा रही है. खाने पीने के सामान में चावल, दाल, चीन, नमक, कुकिंग ऑयल, चाय, नूडल्स और बिस्किट हैं.

बांग्लादेश इतने सारे शरणार्थियों के एक साथ चले आने से परेशान है, इनके लिए जरूरी चीजों की आपूर्ति भी काफी कम है. कई देशों ने राहत सामग्री भेजने की बात तो कही है लेकिन इन शरणार्थियों को अपने देश में आने देने के लिए कोई देश तैयार नहीं हो रहा है.

एनआर/एके (एएफपी, रॉयटर्स)