एशिया की सबसे साफ नदी पर बांध बनाने का विरोध
२१ अप्रैल २०२१पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की सरकार ने एशिया की सबसे साफ नदी उमंगोट पर एक मेगा बांध बनाने का फैसला किया है. लेकिन आसपास के गांव वाले इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं. गांव वालों की दलील है कि बांध बन जाने के बाद गर्मी के मौसम में इस नदी के सूखने का खतरा है और बरसात में बाढ़ का. इलाके के लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन होने के साथ यह नदी पर्यटकों के आकर्षण का भी केंद्र है. दूसरी ओर, सरकार भी अपने फैसले पर अड़ी है. उसने स्थानीय लोगों की दलीलों की निराधार ठहराया है.
पनबिजली परियोजना और बांध
मेघालय सरकार ने देश ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे साफ नदी उमंगोट पर 210 मेगावाट क्षमता वाली पनबिजली परियोजना के लिए बांध बनाने का फैसला किया है. यह बांध वेस्ट जयंतिया हिल्स जिले में नदी के ऊपरी हिस्से में बनाया जाना है. लेकिन इसका विरोध कर रहे हैं ईस्ट जयंतिया हिल्स के आसपास बसे कम से कम एक दर्जन गांवों के लोग. यह इलाका बांग्लादेश की सीमा से सटा है. यह परियोजना मेघालय एनर्जी कॉरपोरेशन लिमिटेड की ओर से लगाई जानी है. परियोजना के लिए बीते सप्ताह वेस्ट जयंतिया हिल्स के मूसाखिया में एक जन सुनवाई आयोजित की गई थी. लेकिन 12 गांवों के सैकड़ों लोगों ने मौके पर पहुंच कर विरोध प्रदर्शन किया और संबंधित अधिकारियों के काफिले का रास्ता रोक कर उनको मौके पर नहीं पहुंचने दिया. उससे पहले ईस्ट जयंतिया हिल्स में आयोजित जन सुनवाई के दौरान भी यही हुआ था.
मेघालय रूरल टूरिज्म फोरम के अध्यक्ष एलन वेस्ट खारकोंगर कहते हैं, "इलाके के तमाम लोग प्रस्तावित मेगा बांध के विरोध में हैं. लोग अपनी आजीविका के लिए इसी नदी पर निर्भर हैं. दरअसल, स्थानीय लोगों को डर है कि अगर उक्त परियोजना को लागू किया गया तो उमंगोट नदी पर निर्भर गांवों में अकाल जैसी हालात पैदा हो जाएगी और साथ ही यह इलाका राज्य के पर्यटन नक्शे से गायब हो जाएगा."
सरकार की ओर से जारी परियोजना के ब्योरे में कहा गया है कि बांध बनने की स्थिति में उमंगोट नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण उसके किनारे बसे 13 गांवों के लोगों की करीब 296 हेक्टेयर जमीन पानी में डूब जाएगी. हालांकि तीन-चार गावों के लोग बांध के समर्थन में भी हैं. उनकी दलील है कि इससे इलाके का विकास होगा और रोजगार के मौके पैदा होंगे.
बांग्लादेश सीमा से सटे दावकी में इस उमंगोट नदी को देखने के लिए हर साल देश-विदेश से हजारों की तादाद में सैलानी पहुंचते हैं. नदी का पानी इतना साफ है कि लगता है उस पर चलने वाली नावें किसी शीशे पर खड़ी हैं. उन नावों की छाया नदी की तलहटी पर दिखाई पड़ती है.
सरकार ने किया विरोध को नजर अंदाज
दूसरी ओर, गांव वालों के विरोध के बावजूद मेघालय सरकार ने उमंगोट नदी पर प्रस्तावित परियोजना का बचाव किया है. इस परियोजना को लागू करने वाला मेघालय एनर्जी कारपोरेशन छह सौ करोड़ के बकाया बिजली बिलों की वजह से वित्तीय तौर पर जर्जर हो चुका है. राज्य के बिजली मंत्री जेम्स संगमा कहते हैं, "हम जानते हैं कि निचले इलाकों के ज्यादातर लोग उमंगोट नदी पर आधारित पर्यटन पर निर्भर हैं. लेकिन उस पर परियोजना का कोई असर नहीं होगा क्योंकि बांध जहां बनना है वह जगह पर्यटकों के आने की जगह से दूर है." उनकी दलील है कि मेघालय बिजली की भारी कमी से जूझ रहा है. हम तमाम संबंधित पक्षों को साथ लेकर इस परियोजना पर आम राय बनाने का प्रयास कर रहे हैं.
मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा कहते हैं, "हम गांव वालों की शिकायतों पर विचार करेंगे और अगर उनमें सच्चाई हुई तो इस समस्या का बातचीत के जरिए समाधान करने का प्रयास किया जाएगा. हम सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं." उनका कहना है कि राज्य बिजली के अभूतपूर्व संकट से जूझ रहा है. इससे निपटने के लिए बिजली का उत्पादन बढ़ाना जरूरी है. लेकिन साथ ही स्थानीय लोगों की दिक्कतों को भी ध्यान में रखा जाएगा.
लेकिन सरकार की इन दलीलों का गांव वालों पर अब तक कोई असर नहीं हुआ है. उनका कहना है कि उक्त बांध डावकी और आसपास के इलाकों में पर्यटन को चौपट कर देगा. लोगों का कहना है कि इस पनबिजली परियोजना के कारण उनकी खेती लायक जमीन डूब जाएगी. एक बार उमंगोट नदी पर बांध बन जाने के बाद सर्दियों के मौसम में नदी में पानी सूख जाएगा.
बांध से पर्यावरण को नुकसान की चिंता
ईस्ट जयंतिया हिल्स में पर्यटन से आजीविका चलाने वाले लीजेंडर ई. सोखलेट कहते हैं, "यह बात सही है कि इस परियोजना से काफी बिजली पैदा होगी. लेकिन इसके प्रतिकूल असर को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. इससे गांव वालों की आजीविका खत्म हो जाएगी. पर्यटन का कारोबार तो पूरी तरह चौपट हो जाएगा." उनकी दलील है कि बांध बनने के बाद इलाके में बाढ़ का खतरा तो बढ़ेगा ही, इलाके की जैव विविधता और पास के जंगल के पर्यावरण को भी भारी नुकसान होने का अंदेशा है.
मेघालय प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष जेएस शाइला कहती हैं, "इस परियोजना को महज व्यावसायिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए. इसके सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए. इस परियोजना से एक दर्जन से ज्यादा गांवों के लोगों से रोजगार छिन जाएगा." पर्यावरणविदों ने भी इस परियोजना पर चिंता जताई है. पर्यावरणविद् पीजे संगमा कहते हैं, "मेघालय जैव-विविधता और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है. बिजली की जरूरत के लिहाज से यह परियोजना ठीक है. लेकिन इसके तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही आगे बढ़ना चाहिए. पर्यावरण पर इसके प्रतिकूल असर का भी अध्ययन किया जाना चाहिए. सिर्फ बिजली के लिए हजारों लोगों की आजीविका छीनना सही नहीं है."