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माहवारी में छुट्टी के विरोध में स्मृति ईरानी, होने लगी बहस

१५ दिसम्बर २०२३

केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में कहा कि पीरियड्स कोई बीमारी नहीं और ये सामान्य जीवन का हिस्सा है. उन्होंने कहा माहवारी के दौरान महिलाओं को छुट्टी की जरूरत नहीं है क्योंकि ये कोई विकलांगता नहीं.

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Symbolbild Spanien Menstruationsurlaub
तस्वीर: Annette Riedl/dpa/picture alliance

बीते दिनों केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में कहा कि माहवारी एक "बाधा" नहीं है. पीरियड्स में कामकाजी महिलाओं को छुट्टी दिए जाने की मांग को संबोधित करते हुए स्मृति ईरानी ने कहा, "पीरियड्स लीव की जरूरत के लिए किसी विशेष नीति की आवश्यकता नहीं है."

स्मृति ईरानी के इस बयान के बाद भारत में माहवारी अवकाश पर फिर से बहस छिड़ गई है. कुछ लोग ईरानी के इस बयान का समर्थन कर रहे हैं. इनमें फिल्म कलाकार कंगना रनौत भी हैं. उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा कि महिलाएं हमेशा से कामकाजी रही हैं और कोई भी चीज उनकी राह में रुकावट नहीं बन सकती है. कंगना ने ईरानी के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि महिलाओं को माहवारी के दौरान पेड लीव नहीं मिलनी चाहिए.

माहवारी, एक महिला की जीवन यात्रा का स्वाभाविक और जरूरी पहलू है, लेकिन इसपर बात करना अभी भी झिझक और वर्जना का विषय बना हुआ है. इस दौरान कई महिलाओं को होने वाली समस्याओं पर भी जागरुकता और संवेदनशीलता की कमी है.

सोशल मीडिया पर छिड़ी तीखी बहस

इस मुद्दे पर कई महिलाएं भी सोशल मीडिया पर अपना पक्ष रख रही हैं. कुछ महिलाएं कह रही हैं कि माहवारी के दौरान महिलाएं बिना किसी दिक्कत के हाफ मैराथन तक दौड़ सकती हैं, लेकिन कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं जो इस दौरान दर्द के कारण बिस्तर से पूरे दिन उठ नहीं पाती हैं.

शिल्पा गोडबोले नाम की एक महिला ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि इस मुद्दे पर कोई एक तय नीति नहीं हो सकती. उन्होंने लिखा, "हम सभी इस बात पर सहमत हो सकते हैं कि महिलाओं के लिए साफ-सुथरा शौचालय उपलब्ध होना समय की मांग है. चाहे कॉरपोरेट ऑफिस हो या सार्वजनिक स्थान, चाहे स्कूल हो या कॉलेज, खासकर पीरियड्स के दिनों में जिन कारणों से हम महिलाओं के लिए अपने घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, उसमें साफ शौचालयों की कमी भी शामिल है."

ब्यूटी ब्रांड ममा अर्थ की सह-संस्थापक गजल अलघ ने इस भी मुद्दे पर अपनी राय दी है. 35 वर्षीय अलघ ने कहा कि सदियों से महिलाएं अपने अधिकारों और समान अवसरों के लिए लड़ती रही हैं और अब पीरियड लीव के लिए लड़ना कड़ी मेहनत से अर्जित समानता को पीछे धकेल सकता है.

अपनी राय देते हुए उन्होंने एक्स पर इसका "बेहतर समाधान" सुझाया है. उन्होंने कहा कि जिन महिलाओं को इस दौरान दर्द होता है, उन्हें वर्क फ्रॉम होम का विकल्प मिलना चाहिए.

एक्स पर ही एक और महिला यूजर ने लिखा कि अगर कोई महिला अपने पीरियड्स के दौरान बीमार महसूस कर रही है, तो उसे बीमारी की छुट्टी लेने की अनुमति दी जानी चाहिए. हालांकि उन्होंने यह भी लिखा, "हालांकि हर महीने छुट्टी देने की कोई व्यापक नीति नहीं होनी चाहिए, जो अनुचित होगी."

संसद में कैसे उठा मुद्दा

राज्यसभा में राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने सवाल किया था कि क्या सरकार ने नियोक्ताओं के लिए महिला कर्मचारियों को माहवारी के दौरान निश्चित संख्या में छुट्टियां देने के लिए अनिवार्य प्रावधान करने के लिए कोई उपाय किया है. इसके जवाब में स्मृति ईरानी ने कहा कि माहवारी महिला के जीवन का हिस्सा है, यह कोई बाधा नहीं है, यह महिला की जीवन यात्रा का एक हिस्सा है.

ईरानी ने कहा माहवारी कोई "विकलांगता" नहीं है, इसपर सरकार पेड पॉलिसी की कोई नीति नहीं ला रही है. उन्होंने कहा, "सिर्फ कुछ महिलाओं को उन दिनों में जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. इस तरह की लीव से महिला कर्मचारियों के साथ भेदभाव बढ़ेगा."

खेलों में पीरियड्स पर बात करना जरूरी

दूसरे देशों में क्या व्यवस्था

इसी साल फरवरी में स्पेन यूरोप का पहला देश बना, जिसने पीरियड्स के दौरान महिलाओं को पेड लीव देने का कानून बनाया. स्पेन में महिलाएं पीरियड्स के दौरान तीन दिन की छुट्टी ले पाएंगी.

माहवारी में पेड लीव्स को लेकर जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और जाम्बिया समेत अन्य देशों ने अलग-अलग नीतियां बनाईं हैं.

इसके अलावा कई देशों में कुछ कंपनियों ने बिना कानूनी अनिवार्यता के पीरियड अवकाश देना शुरू कर दिया है. जैसे, ऑस्ट्रेलिया का पेंशन फंड 'फ्यूचर सुपर' साल में छह दिनों का, भारतीय फूड डिलीवरी स्टार्टअप जोमाटो 10 दिनों का और फ्रांसीसी फर्नीचर कंपनी लुई 12 दिनों का पीरियड अवकाश देती हैं.

सैनिटरी पैड तक सीमित पहुंच

नेशनैल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-2016 से पता चलता है कि भारत में करीब 35.5 करोड़ महिलाएं हैं, जिन्हें माहवारी होती है. इनमें से केवल 36 फीसदी ही सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं. बाकी महिलाएं पुराने कपड़े, राख, पत्तियां और मिट्टी का इस्तेमाल करती हैं. ये तरीके स्वास्थ्य के लिए बड़ा जोखिम पैदा करते हैं.

भारतीय समाज के एक बड़े हिस्से में पारंपरिक तौर पर ही पीरियड्स को लेकर एक टैबू बना हुआ है. महिलाएं ही नहीं, बल्कि लड़कियों को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ती है.

पिछले साल बाल सुरक्षा के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ ने एक अध्ययन में बताया था कि भारत में 71 फीसदी किशोरियों को माहवारी के बारे में जानकारी नहीं है. उन्हें पहली बार माहवारी होने पर इसका पता चलता है और माहवारी चक्र की शुरुआत होते ही उन्हें स्कूल भेजना बंद कर दिया जाता है.

एक सामाजिक संस्था दसरा ने 2019 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि 2.3 करोड़ लड़कियां हर साल स्कूल छोड़ देती हैं क्योंकि माहवारी के दौरान सफाई बरतने के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. इनमें सैनिटरी पैड्स की उपलब्धता और पीरियड्स के बारे में समुचित जानकारी शामिल है.

पीरियड्स में भेदभाव भी एक समस्या

माहवारी महिलाओं की प्रजनन क्षमता से जुड़ा एक निहायती कुदरती पक्ष है. तब भी कई जगहों पर आज भी माहवारी के दौरान लड़कियों-महिलाओं के साथ छुआछूत की कुरीति जारी है. मसलन, माहवारी के दौरान रसोई में जाने की वर्जना अब भी कई भारतीय घरों में अब भी जारी है.

बीते दिनों सोशल मीडिया पर इससे जुड़ा एक प्रसंग काफी चर्चित रहा. रुपल शाह नाम की एक सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर ने एक वीडियो डाला, जिसमें उनका परिवार डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहा था. पास ही में उनकी बेटी अलग-थलग जमीन पर बैठी खा रही थी. रुपल ने लिखा कि उनकी बेटी जमीन पर इसलिए खा रही है कि वह पीरियड्स में है. रुपल के मुताबिक, "हम महीने के उन दिनों में सीधे संपर्क को सख्ती से टालते हैं." रुपल ने बताया कि वह और उनकी बेटी इस परंपरा का पालन करते हैं क्योंकि यह फैसला "उनके परिवार ने बहुत पहले" लिया था. इस मामले में लोगों ने रुपल की बहुत आलोचना की.