मालदीव में फंसे हुए हैं हजारों विदेशी गरीब मजदूर
२६ मई २०२०फिरोजी पानी और खूबसूरत बीचों वाले मालदीव में दुनिया भर के जोड़े हनीमून मनाने आते हैं. बीते कई हफ्तों से सरकार के आदेश पर यहां मौजूद रिसॉर्ट बंद हो गए हैं. इस वजह से यहां रहने वाले प्रवासी मजदूरों की रोजी रोटी छिन गई है. सिंगापुर की डॉरमेटरियों में रहने वाले मजदूरों में बड़ी तादाद में कोरोना का संक्रमण हुआ था. इसी तरह मालदीव में भी बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर रहते हैं. राजधानी माले के 2 वर्ग किलोमीटर के इलाके में भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका के करीब 1,50,000 लोग रहते हैं. यह जगह कोरोना वायरस के फैलने के लिए आदर्श है.
39 साल के जाकिर हुसैन मार्च में तालाबंदी शुरू होने से पहले माले के एक रेस्तरां में काम करते थे. उन्हें दो महीने से तनख्वाह नहीं मिली. जाकिर बताते हैं, "यहां भारी अनिश्चितता और अफरातफरी है. हमें बीमारी की बहुत चिंता है. सारे बांग्लादेशी मजदूर बहुत छोटी जगह में रहते हैं." ज्यादातर प्रवासी मजदूरों की तरह जाकिर भी एक कमरे में चार दूसरे बांग्लादेशी मजदूरों के साथ रहते हैं. ये लोग काम की शिफ्ट के हिसाब से कमरा और बिस्तर शेयर करते हैं.
सड़क पर मौजूद सुरक्षाकर्मी उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे हैं. यहां के अधिकारी भी मानते हैं कि माले में रहने वाले विदेशी मजदूर बेहद गरीब हैं. उनका कहना है कि वे हजारों लोगों को रहने की बेहतर जगह पर भेज रहे हैं. हालांकि विपक्षी नेता मजदूरों को यहां से हटाने की आलोचना कर रहे हैं और इसे "अमानवीय" बता रहे हैं.
3,40,000 की आबादी वाले मालदीव में कोरोना वायरस से अब तक 1,400 लोग संक्रमित हुए हैं. पड़ोस में मौजूद श्रीलंका से इसकी तुलना करें तो यह दर बहुत ज्यादा है. कुछ विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो हजारों मामले और सामने आएंगे. अधिकारियों का कहना है कि स्थानीय आबादी की तुलना में प्रवासी मजदूरों में कोरोना तीन गुनी तेजी से फैल रहा है. ये लोग आमतौर पर साफ सफाई करने, बर्तन धोने और ऐसे जरूरी काम करने के लिए देश में लाए जाते हैं जिन्हें स्थानीय लोग खुद नहीं करना चाहते. अब तक यहां चार लोगों की मौत हुई है. इनमें एक बांग्लादेशी है. ऐसी अफवाहें चल रही हैं कि सैकड़ों विदेशी लोगों में कोरोना का संक्रमण है और इस वजह से प्रवासी मजदूर डरे हुए हैं. इन मजदूरों को बांग्लादेश और भारत में रहने वाले परिवारों की भी चिंता सता रही है. इन देशों में संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है और तालाबंदी चल रही है.
जाकिर हर महीने 180 डॉलर की कमाई करते हैं. इसका 80 फीसदी हिस्सा वे अपने घर भेज देते हैं. यह सिलसिला तालाबंदी के ठीक पहले तक चल रहा था. हालांकि सब लोग इतने भी खुशनसीब नहीं. बढ़ई का काम करने वाले अनवर हुसैन पांच बच्चों के पिता हैं. उनका कहना है कि उन पर उनके मालिक का 1,800 डॉलर का कर्ज है. अनवर ने कहा, "मेरी बीवी मुझे फोन कर रोती है लेकिन मैं क्या करूं."
सरकार ने 3,000 विदेशी मजदूरों को एक अस्थायी शिविर में रखा है. हजारों और लोगों को भी इसी तरह रखा जाना था लेकिन विपक्षी दल के नेताओं ने इसकी तुलना जेल से की. मजदूरों को बाहर नहीं जाने दिया जाता और 30 डिग्री से ज्यादा गर्मी होने के बावजूद यहां पंखा तक नहीं है. उधर सरकार का कहना है कि इन शिविरों को इसलिए शुरू किया गया है ताकि एक जगह ज्यादा लोगों की भीड़ ना जमा हो. उनका यह भी कहना है कि वे मजदूरों को हमेशा के लिए इस हाल में नहीं रखना चाहते.
यहां बांग्लादेश के करीब 1,000 लोग ऐसे भी हैं जो अवैध तरीके से यहां पहुंचे हैं. इस बीच भारत ने 4,000 ऐसे लोगों को वापस बुला लिया है जिनकी नौकरी तालाबंदी में छूट गई थी. जो यहां बच गए हैं उनकी चिंता बढ़ती जा रही है. हुसैन कहते हैं, "मैंने सुना है कि अगर कोई बांग्लादेशी मजदूर मर जाए, तो सरकार उसका शव वापस नहीं भेजती, बल्कि यहीं दफन कर देती है. मुझे चिंता हो रही है कि अगर मैं मर गया तो क्या होगा?"
एनआर/आईबी (एएफपी)
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