युंकर ने अपने यूरोपीय जोश और भावनाओं का इस्तेमाल कर यूरोपीय संघ के सभी 28 सदस्यों से अपील की है कि वे रिफ्यूजी और शरणार्थी नीतियों पर अपनी दिशा बदलें. आज के यूरोप का बड़ा ही दुखद चित्रण करते हुए युंकर ने कहा कि सब कुछ यथा स्थिति में नहीं रहने दिया जा सकता.
इसमें कोई शक नहीं कि उन्होंने जो कहा वह सही है. लेकिन मौजूदा नियमों को पूरी तरह बदल देने के उनके प्रस्ताव को क्या वाकई अमल में लाया जा सकता है, इस पर सवालिया निशान लगा है. युंकर ने सभी राज्यों के बीच रिफ्यूजी और शरणार्थियों के एक स्थायी, अनिवार्य बंटवारा किए जाने का आह्वान किया है. यह बात अपने आप में किसी क्रांति से कम नहीं है क्योंकि आज की तारीख में केवल पांच ही देश यूरोप आने वाले 90 फीसदी लोगों को जगह दे रहे हैं.
जुर्माने पर विवाद
ऐसा कितनी ही बार हुआ है कि युंकर ने किसी मुद्दे पर गतिरोध हटाने के लिए पैसों की बात रखी हो. इस बार प्रस्ताव दिया कि जो सदस्य देश अपने कोटे के रिफ्यूजी और शरण चाहने वालों को नहीं रखेंगे, उन्हें प्रति व्यक्ति 6,000 यूरो का जुर्माना भरना पड़ेगा. जो राष्ट्र अपने तय हिस्से से अधिक लोगों को जगह देंगे, उन्हें हर अतिरिक्त व्यक्ति के लिए 6,000 यूरो प्रदान किए जाएंगे. देखना होगा कि खासतौर पर पूर्व यूरोपीय देशों में दिखने वाली अनिच्छा इस नए सिस्टम से दूर होती है या नहीं.
युंकर चाहते हैं कि इटली, ग्रीस और हंगरी जैसे "फ्रंट लाइन स्टेट" का बोझ सभी 28 सदस्यों के बीच बांटा जाए. अब तक दूसरे सदस्य देशों ने इस तरह की एकता दिखाने पर ऐतराज जताया है. इस बदलाव का अर्थ होगा – बेकार साबित हुए डबलिन सिस्टम का खात्मा. ग्रीस और इटली जैसे देश इस सिस्टम की कई सालों से अवहेलना करते आए हैं. हंगरी या ऑस्ट्रिया से आने वाले रिफ्यूजियों को जर्मनी में स्वीकार करने का निर्णय लेकर जर्मनी खुद भी इससे दूर हो चुका है.
बेहतर योजनाओं की जरूरत
इस प्रस्ताव की कुछ अन्य बातें हैं शरणार्थियों के लिए स्वागत केंद्र स्थापित करना, आर्थिक प्रवासियों और शरण के लिए स्वीकार ना किए जाने वालों का फास्ट ट्रैक निर्वासन, साथ ही ईयू की बाहरी सीमा पर सुरक्षा कड़ी करना. इसके अतिरिक्त ऐसे देशों की भी सूची बनाई जानी है जो अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं. इस विस्तृत सूची की मदद से भी यूरोप आने वालों की संख्या को सीमित किया जा सकेगा.
युंकर जानते हैं कि उनके प्रस्तावों से ऐसा नहीं होगा कि यूरोपीय संघ और बड़ी संख्या में शरणार्थियों को स्वीकारने लगेगा. लेकिन इसके जरिए वे शरणार्थियों के लिए बेहतर प्रबंधन और उनके साथ मानवीय बर्ताव को सुनिश्चित करना चाहते हैं. युंकर मानते हैं कि यूरोप के लोगों में रिफ्यूजियों को ले कर डर है. इसलिए जरूरी है कि नागरिकों को बेरोजगारी और आर्थिक परेशानियों से बचा कर रखा जाए.
कुल मिला कर ऐसा नहीं है कि यूरोप पर जरूरत से ज्यादा बोझ है. वह अभी जितने लोगों को ले रहा है, वह सीरिया के पड़ोसी देशों के मुकाबले "मामूली" है. युंकर ने इस ओर भी ध्यान दिलाया. अब 14 सितंबर को होने वाली बैठक में यूरोप के 28 देशों के गृह मंत्रियों फैसला लेना होगा कि भविष्य के लिए युंकर के इन प्रस्तावों को मान्यता दी जाए या नहीं.