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भारत के डॉक्टर साहब ये 'पूछना मत भूलना'

१२ जनवरी २०१७

भारत में अंगदान को बढ़ावा देने के लिए एक नई मुहिम छेड़ी जा रही है. अब डॉक्टरों को याद दिलाया जाएगा कि "पूछना मत भूलना". देश में अंगों की उपलब्धता कम होने के कारण अंगों की खूब कालाबाजारी होती है.

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तस्वीर: Mehr

भारत में डॉक्टरों के मोबाइल फोन पर अब टेक्स्ट एलर्ट मैसेज मिला करेंगे. यह उन्हें याद दिलाएंगे कि वे मृत लोगों के परिवारजनों से मृतक के अंगदान करने के बारे में जरूर पूछें. यह मैसेजिंग सेवा भारत में चलाए जा रहे देशव्यापी अभियान का हिस्सा है, जिसका मकसद देश में प्रत्यारोपण के लिए अंगों की कमी की भरपाई करना है. इससे अंगों की कालाबाजारी पर भी नियंत्रण लगेगा.

इस अभियान का नाम है, "पूछना मत भूलना" और इसका लक्ष्य हैं भारत में कार्यरत 300,000 डॉक्टर. हाल ही में मुंबई के एक प्रमुख अस्पताल में किडनी चोरी करने वाले गिरोह का भंडाफोड़ हुआ. इसके बाद से देश में अंगों की चोरी और तस्करी के बारे में जागरुकता बढ़ाने के प्रयास तेज हुए हैं. साथ ही देश की लोकप्रिय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को हुए किडनी प्रत्यारोपण के बाद अंगदान का महत्व भी चर्चा में आया है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में इस समय करीब दो लाख लोग किडनी दान का इंतजार कर रहे हैं. ऐसे ही करीब 30,000 लोग ऐसे हैं जिन्हें लीवर की जरूरत है. कानूनी तौर पर किए जाने वाले अंगदान फिलहाल नाकाफी हैं और मौजूदा जरूरत का केवल 3 से 5 फीसदी ही पूरा कर पाते हैं.

इस अभियान को शुरु करने वाले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष कृष्ण कुमार अग्रवाल ने बताया, "जब किसी का करीबी गुजर जाता है, उस समय परिवारों को याद नहीं रहता कि अंगों का दान किया जाए. या फिर जब तक याद आता है अंगदान के लिए बहुत देर हो चुकी होती है. इसलिए हम डॉक्टरों को याद दिला रहे हैं कि वे मृत्यु होने के तुरंत बाद परिजनों से पूछें." उनका मानना है कि अगर शवों से अंगदान बढ़ता है तो मानव अंगों की तस्करी अपने आप रूक जाएगी."

अंगों का व्यावसायिक तौर पर कारोबार करना भारत में गैरकानूनी है. मरीजों के परिजनों या करीबी रिश्तेदारों को अंगदान करने की अनुमति है लेकिन ऐसा होता बहुत कम है. मरीज या तो अंगों का इंतजार करते हुए ही जान गंवा देते हैं या पैसे देकर बिचौलियों से अंग खरीदने की कोशिश करते हैं. जाहिर है कि अंग तो किसी इंसान के ही होंगे जिन्हें ये मानव तस्कर गावों, कस्बों में तलाशते हैं. ऐसे कई लोगों को पैसों का लालच देकर तो किसी को शहर में नौकरी दिलाने के झूठे वायदे कर तस्कर फंसाते हैं और उनके अंग निकाल लेते हैं.

भारत में अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम के प्रमुख अनिल कुमार बताते हैं, "लोगो में अंग खराब होने की समस्या अक्सर लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों के कारण होती है. यह परेशानी ज्यादातर अमीर लोगों में देखी जाती है इससे भी गरीबों का गलत फायदा उठाने की संभावना बढ़ जाती है." कुमार के विभाग को कई तरह के अंगों के कारोबार के बारे में पता चलता रहता है. कई बार लोग वेबसाइटों पर विज्ञापन देते हैं और पैसों के बदले अंगदान करने को कहते हैं. कभी कभी अंगों के लिए लोगों को अगवा कर लिया जाता है और अंग निकाल कर उन्हें छोड़ दिया जाता है. नेपाल में आए भीषण भूकंप के बाद कई नेपालवासियों के अपने अंग बेचकर पैसे लेने और फिर उस पैसे से अपने घरों को दुबारा बनाने की भी खबरें मिली हैं.

इस नए "पूछना मत भूलना" अभियान से जुड़े लोगों का मानना है कि इस कदम से अंगों की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर पट जाएगा और उनकी कालाबाजारी कम होगी. सभी अस्पतालों के इंटेन्सिव केयर यूनिट में अगर डॉक्टर मरीज और उसके परिजनों से अंगदान के बारे में पूछना ना भूलें तो हालात बहुत बेहतर हो सकते हैं.

आरपी/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)