बॉन में जैव विविधता सम्मेलन
१६ मई २००८जैव या प्रजाति विविधता को बनाये और बचाये रखने के उद्देश्य से, बॉन में, संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में, सोमवार 19 मई से, एक विश्व सम्मेलन हो रहा है, जिससे इस दिशा में महत्वपूर्ण निर्णयों की आशा की जाती है.
जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की विविधता की रक्षा के लिए पहले से ही एक विश्वव्यापी समझौता लागू है, जिसे बायो डाइवर्सिटी अर्थात प्रजाति विविधता कन्वेंशन कहते हैं. सन् 2000 में इस मझौते के साथ एक और सहमतिपत्र जुड़ गया, जिसे कार्टागेना प्रोटोकल कहा जाता और जो देशों की सीमाओं के आर-पार जीन-अंतरित जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के परिवहन, व्यापार और उपयोग का नियमन करता है. संसार के 147 देशों ने उस पर हस्ताक्षर किये हैं और 103 ने उसकी विधिवत अभिपुष्टि भी कर दी है.
कार्टागेना प्रोटोकोल
जीन तकनीक के विरोधियों की तरह ही कार्टागेना प्रोटोकोल का उद्देश्य भी प्राकृतिक प्रजाति विविधता को मानवीय जीन तकनीक के अवांछित हस्तक्षेप से बचाना है. लेकिन, संयुक्त राष्ट्र प्रजाति विविधता कन्वेंशन के कार्यकारी सचिव अल्जीरिया के अहमद जोग़लाफ़ का मानना है कि इस समय पैदा हो गये खाद्य संकट और प्राकृतिक संसाधनों की सीमित उपलब्धि को देखते हुए जीन या बायो तकनीक को पूरी तरह ठुकराना भी सही नहीं रहेगाः
"सन 2000 में कार्टागेना प्रटोकोल को जब अपनाया गया था, तब उसे 21वीं सदी का एक क़ानूनी उपकरण बताया जा रहा था. यह पहला मौका था कि 1992 में रियो डी जनेरो में अपनाये गये सतर्कतामूलक सिद्धांत को एक बाध्यकारी क़ानूनी दस्तावेज का रूप दिया गया था. नयी तकनीकों, जैव तकनीकों के लिए यह एक हाँ था, हुँकारी थी. लेकिन, ऐसी जैव तकनीक के लिए, जो पर्यावरण सम्मत हो, उसे नुकसान न पहुँचाये. जो मानवीय स्वास्थ्य को भी नुकसान न पहुँचाये."
कार्टगेना प्रोटोकोल में शामिल देशों को यह स्वतंत्रता भी है कि वे जीन तकनीक द्वारा परिवर्तित मक्के या सोया बीन जैसी चीज़ों के आयत की अनुमति दें या ठुकरा दें. उद्देश्य यह है कि जीन- अंतरित वस्तुओं की, सरकारी अनुमति और जानकारी के बिना, लेन-देन न हो. जीन-अंतरित पदार्थों की मिलावट वाली चीजों को विशेष रूप से चिन्हित किया जाये और उनके आयात-निर्यात का भी नियमन हो.
जीन-अंतरण से नुकसान की ज़िम्मेदारी किस की
प्रश्न यह भी है कि सारे कायदे-क़नूनों के बावजूद जीन-अंतरित जीवों या बीजों के कारण यदि कोई दुर्घटना, कोई नुकसान हो ही गया, तो उसके लिए ज़िम्मेदार कौन होगा? यह उन प्रमुख प्रश्नों में से एक है, जिन पर बॉन में वार्ताएँ होंगी. दूसरे शब्दों में, बॉन में कार्टगेना प्रटोकोल की धारा 27 चर्चा के केंद्र में होगी, क्योंकि किसी प्रकार की दुर्घटना या क्षति कि स्थिति में अंतरराष्ट्रीय ज़िम्मेदारी का नियमन इसी धारा में किया गया है. संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता कन्वेंशन के कार्यकारी सचिव अहमद जोग़लाफ़ को विश्वास है कि इस मामले में कोई-न-कोई सहमति हो जायेगीः
"हमें आशा है कि हम जवाबदेही और क्षतिपूर्ति के मामले में ऐसी किसी नियमावली पर पहुँच जायेंगे, जो इस प्रोटोकोल को-- पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की रक्षा को ध्यान में रखते हुए-- जैव तकनीक को बढ़ावा देने वाला एक बहुत ही उपयोगी साधन बना देगी."
समस्या यह भी है कि जैव तकनीकी नुकसानों को पहचानना और मापना टेढ़ी खीर साबित होगा. ऐसे नुकसान बहुत धीरे-धीरे होंगे. उदाहरण के लिए, जीन-अंतरित बीजों के उपयोग से किसी दूसरे उपयोगी पौधे की नस्ल का मरने लगना. कुछ देश और जीन-अंतरित बीज बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियाँ नहीं चाहतीं कि ऐसा कुछ होने पर उन्हें ज़िम्मेदार ठहराया जाये और उनसे क्षतिपूर्ति माँगी जाये.
धन की कमी चिंता का विषय
जैविक विविधता कन्वेंशन के कार्यकारी सचिव अहमद जोग़लाफ़ के और भी कई सिरदर्द हैं. जितने अधिक देश, मुख्यतः ग़रीब देश, कार्टगेना प्रोटोकोल पर अमल करना शुरू करेंगे, इस अमल को संभव बनाने और उनके यहाँ तथाकथित क्षमता निर्माण के लिए उतने ही अधिक धन की आवश्यकता भी पड़ेगी. इस समय जैविक विविधता कंन्वेंशन के कार्यालय का बजट केवल 40 लाख डॉलर वार्षिक है. कन्वेंशन को मूर्तरूप देने के लिए एक करोड़ डॉलर वार्षिक की ज़रूरत पड़ेगी. जहाँ तक ग़रीब देशों का प्रश्न है, उनके लिए पैसा मुख्यतः तथाकथित Global Environment Facility, अर्थात वैश्विक पर्यावरण सुविधा वाले कोष GEF से लिया जायेगा. लेकिन, जग़लाफ़ यह भी चाहते हैं कि समझौते में शामिल देश अपना अंशदान और बढ़ायें:
"कोई देश छोटा है या बड़ा, यदि वह सचिलालय के काम के लिए 16 सौ डॉलर वार्षिक भी नहीं दे सकता, तो हमारे सामने बहुत सारे सवाल उठ खड़े होंगे."