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बेल्जियम में अरब राजकुमारियों पर मुकदमा

१२ मई २०१७

मुकदमे में फंसी सभी महिलाएं संयुक्त अरब अमीरात की हैं. इन पर बिना किसी वर्क वीजा के यूरोप में अपने साथ महिलाओं को नौकर बना कर लाने और उन्हें अमानवीय स्थितियों में रखने का आरोप है. इस केस का दूरगामी असर होगा.

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Scheich-Zayed-Moschee Abu Dhabi
तस्वीर: picture alliance/dpa/M.Gambarini

राजकुमारी शेखा अलनेहायन और उनकी सात बेटियों का बेल्जियम आना जाना लगा रहता है. 2008 में भी हमेशा की तरह उन्होंने कई महीनों के लिए बेल्जियम के कोनराड होटल का लक्जरी सूट बुक किया. और अपने साथ कम से कम 20 नौकर ले कर आयीं जो 24 घंटे उनकी सेवा में रहते. कभी बिना ठीक से खाये, कभी बिना सोये, बिना वीजा या ब्रसेल्स का वर्क परमिट लिये हुए. अब इन्हीं आठ राजकुमारियों पर श्रम कानूनों का उल्लंघन करने और मानव तस्करी के आरोपों की सुनवाई हो रही है.

बिना पैसे दिए लिया हद से ज्यादा काम

बेल्जियम के मानव अधिकार संगठन माइरिया की प्रवक्ता पेट्रिशिया लेकॉक बताती हैं, "नौकरों को पैसे नहीं मिले. उनसे दिन-रात काम लिया गया और जमीन पर सोना पड़ा. राजकुमारियां हमेशा उन पर चिल्लातीं और दुर्व्यवहार करतीं." यह मामला तब प्रकाश में आया जब एक नौकरानी वहां से भाग निकली और पुलिस में जाकर शिकायत दर्ज करवायी. इसी शिकायत से जांच की शुरुआत हुई और जब पुलिस ने आरोपों को सच पाया तब इस पर बड़े स्तर की जांच शुरु हुई और मामला बेल्जियम की अदालत में पहुंचा.

लेकिन अदालत में मामले की सुनवाई शुरु होने में 9 साल लग गये.

अलनेहायन खानदान संयुक्त अरब अमीरात के सबसे प्रभावशाली परिवारों में आता है. इनकी अमीरी का अंदाजा इससे लगता है कि यह परिवार प्रीमियर लीग फुटबॉल क्लब मैनचेस्टर सिटी का मालिक है. इस शाही परिवार के वकीलों ने पलट कर बेल्जियन पुलिस के खिलाफ दावा किया कि राजकुमारियों के कमरे की तलाशी लेकर पुलिस ने उनके अधिकारों का हनन किया है. कानूनी प्रक्रिया इसी लिए सालों तक खिंचती चली गयी.

ऐसा अकेला मामला नहीं

सालों से खाड़ी देशों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों पर रिसर्च करने वाले ह्यूमन राइट्स वॉच के निकोलास मैकगेहन बताते हैं कि खाड़ी देशों से नौकरों को इस तरह यूरोप लाये जाने और उनके साथ बुरा बर्ताव करने का ये कोई अकेला मामला नहीं. यूरोपीय मानवाधिकार कोर्ट में ऐसे एक और मामले की सुनवाई हो चुकी है जिसमें दुबई के एक परिवार पर तीन फिलिपीनो नौकरों को वियना लाने  और उनसे 24 घंटे काम लेने की शिकायत थी. उनके साथ भी दुर्व्यवहार हुआ और जब उनकी जान पर बन आयी तब वे पुलिस के पास पहुंचीं.

ऑस्ट्रिया के एक मानवाधिकार संगठन ने मामला स्ट्रासबुर्ग के कोर्ट में पहुंचाया तो भी नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. आरोपी बहुत पहले देश छोड़ चुके थे और ऑस्ट्रिया-यूएई में ऐसा कोई समझौता नहीं था जिससे उन पर सुनवाई के लिए कोई कानूनी मॉडल इस्तेमाल हो सके. कोर्ट को कहना पड़ा कि इस मामले में "सफलता मिलने की कोई संभावना ही नहीं है."

गरीबों की मजबूरी का फायदा

कई खाड़ी देशों पर आधुनिक गुलामी को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं. वे बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों से गरीब लोगों को अरब देशों में अच्छी नौकरी का वादा कर बुलाते हैं और फिर ऐसी गुलामी में झोंक देते हैं. अब यह यूरोप के लिए भी एक समस्या बन गयी है. कारण ये है कि कई अमीर अरब शेख जर्मनी, ऑस्ट्रिया या बेल्जियम जैसे देशों में छुट्टियां मनाने या इलाज कराने पहुंचते हैं और यूरोप में आकर भी अपने नौकरों के साथ ऐसा बर्ताव करते हैं, जो उनके देश में चलता है लेकिन यूरोप के श्रम कानूनों के दायरे में नहीं आता.

Belgien Prozess gegen saudi-arabische Prinzessinnen in Brüssel
तस्वीर: DW/D. Pundy

इस बार बेल्जियम की कोर्ट के सामने मिसाल पेश करने का मौका है. पेट्रिशिया लेकॉक कहती हैं, "अगर कोर्ट मानव तस्करी के आरोप के समर्थन में पर्याप्त सबूत पाता है तो आरोपियों को भारी जुर्माना देना पड़ सकता है और जेल की सजा भी मिल सकती है." लेकिन कई बातें इस बार भी कोर्ट के अधिकार में नहीं. जैसे कि मामला कई साल पुराना हो चुका है. सजा सुनायी भी गयी तो शायद बहुत हल्की होगी. अगर कोर्ट जेल की सजा तय करता है तो भी यूएई राजकुमारियों को बेल्जियम भेजने से मना कर सकता है. कम से कम यह हुआ है कि इस मामले पर सुनवाई शुरु होने से खाड़ी देशों के अमीरों के मानव अधिकार उल्लंघनों पर प्रकाश पड़ा है और मानव तस्करी, आधुनिक गुलामी जैसे मुद्दे फिर से चर्चा में आये हैं.

(नीना नीबेरगल/आरपी)