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समाजयूरोप

बांस के जंगल में बनी यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया

१५ जनवरी २०२१

उत्तरी इटली में पार्मा शहर के पास एक भूलभुलैया है. कहते हैं कि यह यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया है. एक प्रसिद्ध भूलभुलैया लखनऊ में भी है, लेकिन पार्मा वाले से अलग वह इमारत में बनी है और उससे अलग तो है ही.

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DW Euromaxx 18.+19.09.2020 // KW 38 - Labirinto della Masone
तस्वीर: DW

यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया बांसों की भूलभुलैया है. यूं तो हर कहीं जगह जगह पर मक्के के खेतों में भूलभुलैया बने मिल जाते हैं लेकिन यूरोप की सबसे बड़ी भुलभुलैया के रास्ते तीन किलोमीटर में फैले हैं और इसका क्षेत्रफल है 70 हजार वर्ग मीटर. इस लिहाज से "लाबिरिंतो डेला मासोने" यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया है. पेशे से प्रकाशक रहे फ्रांको मारियो रिची ने इस भूलभुलैया का सपना तब देखा था जब वे नौजवान थे, तीस साल पहले. दरअसल पार्मा शहर के बाहर उनका एक वीकएंड हाउस हुआ करता था. वहां उनके दोस्त और उनके प्रकाशन गृह से जुड़े लेखक अर्जेंटीना के खॉर्गे लुइस बोर्गेस भी आकर रहा करते थे.

बोर्गेस की रचनाओं का एक विषय लेवरिंथ भी था. 1899 में जन्मे बोर्गेस की 55 साल के होते होते आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई थी. फोंटानेलाटो में अपने वीकएंड हाउस में उनका हाथ पकड़ इधर उधर ले जाते रिची को इस बात का अहसास हुआ कि जीवन में अनिश्चितताएं कितनी महत्वपूर्ण होती हैं, जब आप चीजों को देख न सकें या उनका आभास न कर सकें. और इसी अहसास से फ्रांको मारियो रिची के उस सपने का जन्म हुआ जिसे उन्होंने बाद में अपनी निजी जमीन पर साकार किया.

Jorge Luis Borges, argentinischer Autor
अर्जेंटीनी लेखक खॉर्गे लुइस बोर्गेसतस्वीर: UPI/dpa/picture-alliance

एक सपना बनी हकीकत

फ्रांको मारियो रिची अपने अनुभवों को दुनिया के बहुत से दूसरे लोगों के साथ साझा करना चाहते थे, उन्हें जिंदगी की भूलभुलैया की याद दिलाने के लिए एक कृत्रिम भूलभुलैया में ले जाना चाहते थे. तो अपनी जमीन पर उन्होंने बांस के लगभग दो लाख पेड़ लगाए. जो लोग गांवों में रहते हैं और जिनके पास बांस के बगीचे हैं उन्हें पता है कि बांस के पेड़ बहुत तेजी से बढ़ते हैं, हमेशा हरे भरे रहते हैं और 15 मीटर तक बढ़ सकते हैं. और बांस के पेड़ अगर बड़े इलाके में फैले हों तो उनके झुरमुट में कोई भी रास्ता भूल सकता है.

फ्रांको मारियो रिची की भूलभुलैया में घुसने का एक रास्ता है और निकलने का भी. लेकिन उनके बीच इतने सारे रास्ते हैं कि आदमी उनमें खो ही जाता है. सारे रास्ते एक जैसे लगते हैं और लोगों को लगता है कि उन्हें तो यह रास्ता पता है और फिर लगता है कि यह तो बिल्कुल ही अलग जगह है. बिल्कुल अलग. पता ही नहीं चलता कि वे  कहां हैं और वहां से बाहर कैसे निकलें. "लाबिरिंतो डेला मासोने" एक ज्यामिति डिजाइन पर आधारित है और रोमन दौर की याद दिलाता है. सीधे सीधे रास्ते हैं जो 90 डिग्री के कोण पर मुड़ते हैं. इसीलिए उन्हें याद रखना और मुश्किल हो जाता है.

लेकिन ये भूलभुलैया इतनी भी बड़ी नहीं कि उससे बाहर न निकला जा सके और लोग घबड़ाने लगें. लोग यहां जितने कन्फ्यूज होते हैं, उतने ही मंत्रमुग्ध भी. इमरजेंसी की स्थिति में वे मदद मांग सकते हैं. भूलभुलैया में जगह जगह पर पहचान के लिए पोजिशन मार्क लगे हैं. फोन करके खोए हुए लोग अपनी पोजिशन बताते हैं और उसके बाद भूलभुलैया के डायरेक्टर एदुआर्दो पेपीनो उन्हें खुद लेने पहुंचते हैं और बाहर लेकर आते हैं. वे बताते हैं, "इस भूलभुलैया का मूल अर्थ बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण है. यह हमारे जीवन का प्रतीक है, ऐसी ही मुश्किल चीजों से हमारा वास्ता अपने जीवन में पड़ता है और ऐसे ही मुश्किल रास्तों से हम गुजरते हैं और आखिर में हमें अपनी मुक्ति का रास्ता मिल ही जाता है."

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मक्के के खेत बीथोफेन के चेहरे वाली भूलभुलैयातस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Kneffel

पर्यटकों के लिए म्यूजियम

भूलभुलैया के केंद्र में एक इमारत है या यूं कहें नियो क्लासिकल इमारतें. इनमें एक म्यूजियम है जिसमें वो सारी कलाकृतियां प्रदर्शित हैं जो फ्रांको मारिया रिची ने अपने जीवन में इकट्ठा कीं. इसके अलावा उनका किताबों का कलेक्शन और वे सारी किताबें जो उनके प्रकाशन ने 50 सालों में छापी, वहां देखी जा सकती है. भूलभुलैया हमेशा से इंसानों को मंत्रमुग्ध करती रही हैं. उनका जिक्र प्राचीन काल से लेकर ग्रीक गाथाओं और साहित्य में भी मिलता है. यह जगह दिवगंत इतालवी प्रकाशक और संपादक फ्रांको मारिया रिची की विरासत का हिस्सा है. वे नायाब कला कृतियों पर विशेष पुस्तकें प्रकाशित करते थे, साथ ही वो आर्ट मैगजीन एमएमआर भी निकालते थे. उनके कला संग्रह में पांचवीं सदी की कलाकृतियां भी शामिल हैं.

फ्रांको मारिया रिची ने 82 साल की उम्र में सितंबर 2020 में आखिरी सांस ली. भूलभुलैया उनके आखिरी प्रोजेक्ट्स में एक है. उनकी पत्नी लॉरा कासालिस बताती हैं, "ये फ्रांको का सपना है. चीजों को करने का उनका अलग ही अंदाज था. उन्होंने अपनी जिंदगी में वो सब किया जो कोई सोच भी नहीं सकता." और अब लोग उनके भूलभुलैये में जाकर वहां टहलने, खोने और जिंदगी के बारे में सोचने का मजा ले सकते हैं. समय है तो म्यूजियम की सैर और भूख लगे या कॉफी पीने का मन हो तो बिस्त्रो, कॉफीहाउस और स्थानीय भोजन परोसने वाला रेस्तरां भी वहां मौजूद है. यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया में खो जाने का अनुभव भी निश्चित तौर पर बहुत ही मजेदार और रोमांचक है.

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DW Mitarbeiterportrait | Mahesh Jha
महेश झा सीनियर एडिटर