बंगाल में हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास
७ मई २०२१पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा में उपद्रवियों ने दर्जनों मकान और राजनीतिक दलों के दफ्तर भी जला दिए हैं. मरने वालों में से नौ बीजेपी, सात टीएमसी और एक व्यक्ति संयुक्त मोर्चा का है. तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाली ममता बनर्जी ने तमाम पक्षों से हिंसा पर शीघ्र अंकुश लगाने की अपील की है और मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपए का मुआवजा देने का एलान किया है. लेकिन पहले दिन से ही फर्जी वीडियो और तस्वीरों के जरिए इसे सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया जा रहा है. पुलिस ने इस मामले में दो एफआईआर दर्ज किया है और कोई तीन दर्जन लोगों को गिरफ्तार भी किया है. इस हिंसा के मामले पर टीएमसी और बीजेपी के साथ ही केंद्र और राज्य सरकार के बीच भी टकराव की स्थिति पैदा हो गई है.
केंद्र-राज्य टकराव
केंद्र सरकार ने इस हिंसा पर पहले राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी और चौबीस घंटे के भीतर रिपोर्ट नहीं मिलने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक कड़ा पत्र लिखा. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यपाल जगदीप धनखड़ को फोन कर इस मामले की जानकारी ली. इसके अगले दिन ही केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक चार सदस्यीय टीम हिंसा का जायजा लेने कोलकाता पहुंच गई. उससे पहले बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा भी मंगलवार को दो दिन के दौरे पर बंगाल आए थे और उन्होंने हिंसा में मारे गए पार्टी के दो कार्यकर्ताओं के घरवालों से मुलाकात की थी. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस हिंसा का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है तो महिलाओं पर कथित अत्याचार के वीडियो और तस्वीरें देखने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी मौके पर अपनी टीम भेजने का फैसला किया है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार की कार्रवाई पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "केंद्र ने कभी राज्य में कोरोना संक्रमण और ऑक्सीजन या वैक्सीन के मामले पर कोई टीम नहीं भेजी थी. लेकिन सरकार के गठन के चौबीस घंटे के भीतर उसने हिंसा पर पत्र लिखा और केंद्रीय टीम को बंगाल भेज दिया. केंद्रीय मंत्री भी राज्य के दौरे पर पहुंच गए. मैंने अपने राजनीतिक करियर में पहले कभी ऐसा नहीं देखा है." उनका दावा था कि बीजेपी के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री ग्रामीण इलाकों में हिंसा उकसा रहे हैं. लेकिन सरकार दंगा भड़काने का उनका मंसूबा कामयाब नहीं होने देगी.
सोशल मीडिया पर तस्वीरें
फेसबुक और ट्विटर पर तमाम ऐसे वीडियो और तस्वीरें हैं जिनको इस हिंसा से संबंधित बताया जा रहा है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि हिंसा की घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर बीजेपी बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू कराने का प्रयास कर रही है. उनका कहना था, "राज्य में चुनाव बाद हिंसा की कुछ घटनाएं जरूर हुई हैं. लेकिन बीजेपी इस आग में घी डालने का प्रयास कर रही है. हिंसा उन इलाकों में ज्यादा हो रही है जहां बीजेपी जीती है. इस हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशें भी हो रही हैं. इसके लिए फर्जी वीडियो और तस्वीरों का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे." ममता का कहना है कि चुनाव में अपनी शर्मनाक हार नहीं पचा पाने की वजह से ही बीजेपी यह सब कर रही है.
राज्य के विभिन्न हिस्सों में फैली हिंसा में सोशल मीडिया पर किए जाने वाले दावों ने भी आग में घी डालने का काम किया है. रविवार रात से ही ऐसे सैकड़ों तस्वीरें और वीडियो टीएमसी की कथित गुंडागर्दी के दावों के साथ सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. इनमें कहीं दफ्तरों को जलते दिखाया गया है तो कहीं दुकान या मकानों में लूटपाट के दृश्य हैं. एक वीडियो में तो कुछ युवक दो महिलाओं को बाल पकड़ कर बड़ी बेरहमी से खींचते और उनको मारते नजर आते हैं. महिलाओं की पिटाई वाला वीडियो कहां का है, यह साफ नहीं है. बीजेपी के नेता या पुलिस ने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है.
मिसाल के तौर पर बीजेपी की ओर से इंडिया समूह के एक पत्रकार अभ्रो बनर्जी की तस्वीर के साथ सोशल मीडिया पर डाली गई एक पोस्ट में उसे कूचबिहार जिले के शीतलकुची में हिंसा में मृत मानिक मैत्र बताया गया. लेकिन उस पत्रकार ने जब इसे फर्जी बताते हुए अपने जिंदा होने का दावा किया तो उस पोस्ट को डिलीट कर दिया गया. रविवार की हिंसा के बाद सोमवार को बीजेपी की ओर से सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया गया कि टीएमसी के लोगों ने बीरभूम जिले के नानूर में पार्टी की दो महिला चुनाव एजंटों के साथ सामूहिक बलात्कार और मारपीट की है. बीजेपी नेता सौमित्र खान ने राजीव राय नामक यूजर के हैंडल से किए गए ट्वीट को री-ट्वीट किया है. ठीक यही ट्वीट बीजेपी की महिला नेता अग्निमित्र पॉल ने भी किया है. लेकिन खान के रीट्वीट में जहां इसे एक बीजेपी कार्यकर्ता की मां बताया गया है वहीं अग्निमित्र ने इसे नानूर में गैंगरेप वाले ट्वीट से जोड़ा है. लेकिन मंगलवार शाम को उनमें से एक महिला ने टीएमसी के जिला अध्यक्ष अणुब्रत मंडल के दफ्तर में बैठकर पत्रकारों से कहा, मेरे साथ ऐसी कोई घटना ही नहीं हुई है. सोशल मीडिया पर इस बारे में फर्जी खबरें पोस्ट की जा रही हैं. मुझे नहीं पता किसने यह झूठी खबर फैलाई है. बीरभूम के पुलिस अधीक्षक नागेन्द्र नाथ त्रिपाठी कहते हैं, "सोशल मीडिया पर पोस्ट की जाने वाली यह खबर झूठी और निराधार है. एक राजनीतिक पार्टी के कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर बीजेपी की दो महिला एजेंटों के साथ सामूहिक बलात्कार का जो दावा किया है वह पूरी तरह फर्जी है. हम ऐसी पोस्ट डालने वाले लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे."
शिवसेना की टिप्पणी
शिवसेना ने शुक्रवार को कहा कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद हिंसा से राजनीति का ‘रक्तरंजित' रूप उजागर हुआ है और यह दिखाता है कि लोकतंत्र के बजाए ताकत तथा बाहुबल का शासन कायम है.पार्टी ने कहा कि राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्र सरकार दोनों पर समान रूप से है.
पार्टी के मुखपत्र 'सामना' में एक संपादकीय में कहा है, "पश्चिम बंगाल में वास्तव में क्या हो रहा है और इसके पीछे किसके अदृश्य हाथ हैं? ये चीजें स्पष्ट होनी चाहिए. जब से राज्य में बीजेपी हारी है हिंसा की खबरें आ रही हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने बीजेपी के कार्यकर्ताओं से मारपीट की. लेकिन यह सब दुष्प्रचार है." इसमें कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा में मारे गए 17 लोगों में नौ बीजेपी से जुड़े लोग थे, बाकी टीएमसी के कार्यकर्ता थे. इसका मतलब है कि दोनों पक्ष इसमें शामिल हैं. संपादकीय में कहा गया है कि इस हिंसा के विभिन्न पहलुओं से साफ है कि इसके पीछे बीजेपी की साजिश है.
आरएसएस का बयान
अब चुनावी नतीजों और हिंसा के बाद पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी इस मुद्दे पर मुंह खोला है. आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने बंगाल हिंसा की कड़े शब्दों में निंदा की है. उन्होंने कहा, राज्य सरकार से मांग की है कि हिंसा को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं. पश्चिम बंगाल पुलिस ने फर्जी खबरों और वीडियो-तस्वीरों से निपटने के लिए एक अलग साइबर सेल का गठन कर हेल्पलाइन नंबर और मेल आईडी जारी किया है. अब तक दो मामलों में प्राथमिकी दर्ज की गई है और कम से कम आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
राजनीतिक पर्यवेक्षक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का इतिहास तो पुराना है. लेकिन इस बार जिस तरह इस हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है वह खतरनाक है. इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए ठोस पहल जरूरी है."