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फ्रांस में विवाद का नया स्तर

क्रिस्टॉफ हाजेलबाख७ जनवरी २०१५

फ्रांस में एक व्यंग पत्रिका पर हुए आतंकी हमले में संपादक और प्रमुख कार्टूनिस्टों की हत्या कर दी गई. डीडब्ल्यू के क्रिस्टॉफ हाजेलबाख का कहना है कि यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है जिसे छीनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

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तस्वीर: Reuters/J. Naegelen

यह हमला पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं था. व्यंग पत्रिका शार्ली एब्दॉ ने 2006 में ही पैगंबर मोहम्मद का डेनमार्क के अखबार में छपा कार्टून प्रकाशित किया था, जिस पर पूरी दुनिया के मुसलमानों ने गुस्सा जताया था. उस समय इस्लामी देशों में डेनमार्क और पश्चिमी देशों के संस्थानों पर बहुत सारे हमले हुए. 2011 में शार्ली एब्दॉ के संपादकीय दफ्तर पर भी हमला हुआ था. लेकिन पत्रिका पैगंबर और इस्लाम पर व्यंग करने से नहीं रुकी और उसने एक प्रधान संपादक मोहम्मद के नाम से शरिया पर विशेष अंक भी निकाला. यह भी कोई संयोग नहीं कि पत्रिका के ताजा अंक पर लेखक मिशेल ऊलेबेक की तस्वीर छपी है. उनका विवादित उपन्यास अभी अभी आया है जिसमें फ्रांस में मुस्लिम राष्ट्रपति के शासन का वर्णन है.

क्या एक पत्रिका को धर्म और उसके पैगंबरों पर मजाक करना चाहिए? स्वाभाविक रूप से देश के कानून के अनुरूप उसे यह हक है. शार्ली एब्दॉ ने कैथोलिक पोप को भी बार बार व्यंग का निशाना बनाया और इस मुद्दे पर एक कैथोलिक संगठन के खिलाफ मुकदमा भी जीता. कैथोलिक अनुयायी पोप पर किए जाने वाले व्यंगों पर जितना भी परेशान हों, लेकिन वे उसे स्वीकार करते हैं. यहां सरकार को भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. 2006 में कार्टून संबंधी विवाद में डेनमार्क के प्रधानमंत्री आंदर्स फो रासमुसेन ने ठीक ही कानूनी कदम उठाने से मना कर दिया था. एक आजाद, लोकतांत्रिक समाज को इसे सहना होगा. और सरकार इस सहनशीलता की अपने सभी नागरिकों से अपेक्षा कर सकती है. मुसलमानों के साथ विशेष बर्ताव नहीं हो सकता.

Deutsche Welle Christoph Hasselbach
तस्वीर: DW/P. Henriksen

ऐसे भयानक हमले के बाद इंसान की कोशिश होती है कि संयम बरतने की मांग करे, "इस्लाम पर कार्टून बनाने वालों हद मत करो, अब तो शांत हो, हम धर्मयुद्ध नहीं चाहते." लेकिन यह वह होगा जो हमलावर चाहते हैं, आजादी को खुद सीमित करना. ऐसी ब्लैकमेलिंग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. फिर भी हमले के नतीजों के बारे में सोचकर गले में फांस नजर आती है. फ्रांस में पहले से ही जारी तनाव और बढ़ेगा. वहां मुसलमानों की बड़ी आबादी है. उनमें से बहुत से बेरोजगार हैं, समाज के हाशिए पर रहते हैं. कुछ घेटो में तो पुलिस भी जाने की हिम्मत नहीं करती. दूसरी ओर उग्र दक्षिणपंथी नेशनल फ्रंट विदेशियों और खासकर मुसलमानों के खिलाफ प्रचार कर रहा है. पिछले साल के यूरोपीय चुनावों में वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. उसके समर्थक अब अपनी पुष्टि होते देखेंगे. इस्लाम विरोधी भावनाएं बढ़ेंगी और मुसलमानों का गुस्सा भी. एक शैतानी चक्र.

और इसके नतीजे फ्रांस में ही नहीं रुकेंगे. यूरोपीय संघ के लगभग हर देश में पिछले सालों में विदेशी विरोधी पार्टियों की लोकप्रियता बढ़ी है. वे अब कहेंगे, "देखो, मुसलमान हमारा हिस्सा नहीं हैं. उन्हें समाज में घुलाना मिलाना संभव नहीं है." अल्पसंख्यकों के एक छोटे से अल्पमत की कारस्तानी जल्द ही पूरे धर्म और उसके मानने वालों की कार्रवाई बन जाएगी. जर्मनी में भी पेगीडा जैसे संगठन इसमें अब और पश्चिम के कथित इस्लामीकरण का खतरा देखेंगे. किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए, सामाजिक सहजीवन आसान नहीं होगा. इसलिए और भी जरूरी है कि हम शांत रहें. हां, यह हमारी आजादी पर भयानक और किसी भी तरह उचित न ठहराया जा सकने वाला हमला है. हम उसे लेने की किसी को इजाजत नहीं दे सकते. लेकिन हमें अपनी सहिष्णुता को छीनने का भी किसी को हक नहीं देना चाहिए. सभी मुसलमानों को शक की निगाह से देखने या शांतिपूर्ण सहजीवन के मॉडल पर शक करने की कोई वजह नहीं है.