फोन में जासूसी सॉफ्टवेयर से भारत कितना सावधान
४ नवम्बर २०१९पिछले दिनों व्हाट्सऐप की ओर से इस्रायली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए जासूसी की शिकायत के बाद से देश में खलबली मची हुई है. नेता, नागरिक समाज से जुड़े लोग, पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता की जासूसी ने निजता के अधिकारों को लेकर भारत में नई बहस छेड़ दी है.
अक्सर पत्रकार जब कोई खोजी रिपोर्ट को लेकर सामने आते हैं तो वे अपने स्रोत का नाम नहीं बताते हैं, क्योंकि उन्हें उनके सूत्र की गोपनीयता बनाए रखनी पड़ती है. ताकि वे आगे भी सूचना देने से पीछे ना हटें और सूत्र को किसी तरह से भयभीत ना किया जा सके. दूसरी ओर राजनीति से जुड़े लोग अपनी रणनीति को लेकर प्रदेश और देश के नेताओं और कार्यकर्ताओं से बात-विचार कर आगे की योजना बनाते हैं, इसमें आने वाले राज्य चुनाव और उपचुनाव से जुड़ी रणनीति होती है. वहीं आम लोग मोबाइल का इस्तेमाल बातचीत के अलावा तस्वीरें लेने, बैंक लेनदेन और डिजिटल भुगतान के लिए करते हैं. व्हाट्सऐप जासूसी विवाद के बाद मोबाइल यूजर के माथे पर बल ला दिया है.
नेता भी निशाने पर, जनता भी निशाने पर
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले दिनों केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्रीय एजेंसियां उनका फोन टैप कर रही हैं और उनके पास इसका सबूत भी है. व्हाट्सऐप के जरिए जासूसी का शुरु हुआ मामला अब फोन टैपिंग के आरोपों तक पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान मामलों के जानकार विराग गुप्ता का कहना है कि फोन टैपिंग के लिए एक पूरी प्रक्रिया है और उसको करने के लिए गृह सचिव की मंजूरी से फोन को देश के किसी भी कोने में टैप किया जा सकता है.
देश की सुरक्षा से जुड़े मसले हो या फिर अपराध के किसी मामले में एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य के फोन भी टैप कर सकती है. विराग गुप्ता के मुताबिक, "अंतर-राज्य अपराध होने पर पुलिस को कई बार दूसरे राज्यों के फोन टैप करने पड़ते हैं. हालांकि यह कोर्ट में तभी साक्ष्य के रूप में मान्य होंगे जब पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया होगा."
निजता का कौन रखे ध्यान
बात अब फोन टैपिंग तक सीमित नहीं है यह बढ़कर मोबाइल एप्लिकेशन तक पहुंच गई है. साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल का मानना है कि दुनिया में कोई ऐसा एप्लिकेशन नहीं है जो पूरी तरह से सुरक्षित हो. पवन दुग्गल का कहना है कि ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जो किसी के भी मोबाइल में घुसकर जासूसी कर सकते हैं. दुग्गल के मुताबिक, "भारत में इस तरह के प्रकरण इसलिए ज्यादा हो रहे हैं क्योंकि भारत में साइबर सुरक्षा नीति कारगर रूप से लागू नहीं हुई है. तकनीक जिस रफ्तार से बदल रही है उस रफ्तार से आईटी कानून में बदलाव नहीं हुआ. कानून को सख्ती से लागू करने की जरुरत है”
फोन टैपिंग को लेकर जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिशा-निर्देश या कानून है वो परंपरागत फोन जैसे लैंडलाइन की टैपिंग के लिए बने है. यह उस दौर का कानून है जब तार वाले टेलीफोन हुआ करते थे. आज के दौर में मोबाइल और अन्य संचार माध्यमों के लिए वह दिशा-निर्देश लागू तो होती हैं लेकिन वह बहुत पुरानी हो गई है. विराग गुप्ता के मुताबिक, "मोबाइल फोन टैपिंग के लिए ऐसे सॉफ्टवेयर बाजार में मौजूद हैं जिसका इस्तेमाल निजी व्यक्ति, कंपनी या फिर सरकार भी कर सकती है. ऐसे मामलों में कानूनी प्रक्रिया का पालन ही नहीं होता है." विराग गुप्ता का कहना है कि पेगासस मामले के खुलासे के बाद खतरा इस बात को लेकर बढ़ गया है कि कोई भी व्यक्ति ऐसे सॉफ्टवेयर के जरिए किसी की जासूसी कर सकता है.
डिजिटल पेमेंट्स कितने सुरक्षित
यही नहीं पवन दुग्गल के मुताबिक भारत जैसे उभरते बाजार के लिए जासूसी सॉफ्टवेयर बेहद खतरनाक है. वे कहते हैं, "इससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन तो ही रहा है साथ ही लोग सरकार से सवाल पूछेंगे कि हमारी निजता के अधिकारों का क्या हुआ. साथ ही देश के विकास पर भी इसका असर देखने को मिलेगा."
भारतीय बाजार में डिजिटल पेमेंट पर जोर दिया जा रहा है, ऐसे में मामला सिर्फ टैपिंग और व्हाट्सऐप के जरिए जासूसी तक सीमित नहीं रह जाता है. जानकारों का कहना है कि भारतीयों पर स्टेट और नॉन स्टेट एक्टर अपने निशाने पर ले सकते हैं जिससे बचने के लिए सरकार को जल्द कोई ठोस कदम उठाने होंगे. साथ ही देश की सुरक्षा को लेकर भी चिंता बढ़ जाती है.
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