प्रवासी मजदूरों के साथ गांव गांव तक पहुंचा कोरोना का खतरा भी
३० मार्च २०२०मजदूर अधिकार समूह आजीविका के अनुसार भारत में करीब 12 करोड़ प्रवासी मजदूर हैं. 21 दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की रात से ही हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली-एनसीआर से इन लोगों का पलायन शुरू हो गया. इतने बड़े एलान के पहले इन लोगों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी जो रोज काम कर अपना और अपने परिजनों का पेट पालते हैं. लेकिन पहले तो पैसों की कमी और दूसरे लॉकडाउन के कारण यातायात के बंद होने से इनकी परेशानी और बढ़ गई.
दोधारी तलवार की काट झेल रहे ये गरीब मजदूर हैरान परेशान होकर सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पर पैदल ही निकल पड़े और रास्ते में भूख, प्यास, अकाल के अलावा पुलिस और प्रशासन के डंडे भी खाते रहे. असंभव से लग रहे इनके सफर की तस्वीरें आपने जरूर टीवी पर देखी होंगी. लेकिन बात कठिन सफर पर खत्म नहीं हुई. इसी सप्ताहांत जब दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े ठिकानों से प्रवासी मजदूरों को यूपी और बिहार जैसे राज्यों तक ले जाने के लिए थोड़े बहुत सरकारी इंतजाम किए गए तो भी उस दौरान इन मजदूरों के साथ काफी बेरुखा व्यवहार किया गया. यूपी के बरेली में पहुंचे प्रवासी मजदूरों के ऊपर संक्रमणरोधी एक घोल का ऐसे छिड़काव किया गया जैसे खेतों में कीटनाशक का किया जाता है. ऐसे अमानवीय बर्ताव को लेकर जिला प्रशासन की ओर से प्रतिक्रिया भी आ गई है.
हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बड़े स्तर पर हो रहे पलायन के साथ ही ग्रामीण इलाकों में कोरोना वायरस पहुंच जाएगा और चूंकि इन इलाकों में पहले से ही स्वास्थ्य सुविधाएं न्यूनतम स्तर पर हैं इसलिए वहां जानें बहुत जाएंगी. दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सामुदायिक स्वास्थ्य के प्रोफेसर डॉ राजीब दासगुप्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "अगर मान लें कि अब तक ऐसा नहीं हुआ है तो भी यहां से निश्चित तौर पर इसके कम्युनिटी में फैलने की शुरुआत हो जाएगी."
अब केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को अपनी सीमाएं सील करने के आदेश भी दिए जा चुके हैं. ऐसे में जो मजदूर किसी तरह अपने गृह राज्य की सीमा तक भी पहुंच गए उन्हें एक दूसरे से सट सट कर लंबी लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ रहा है. सीमा पर बाहर से आने वाले लोगों का नाम पता वगैरह दर्ज किया जा रहा है और फिर कभी बसों में तो कभी दूसरे उपलब्ध साधन से उन्हें उनके जिले और प्रखंड में बने क्वारंटाइन सेंटरों में ले जाकर छोड़े जाने की योजना है. लेकिन कई मामलों में ऐसा हो रहा है कि लोग सेंटरों को किसी जेल जैसा मान कर वहां पहुंचने से पहले ही भाग जा रहे हैं.
बिहार के गोपालगंज जिले के ढेबुआं गांव के निवासी और पेशे से पत्रकार मनोज राय बताते हैं कि कैसे गांव में कई लोग अपने घरों में परिवार के उन सदस्यों को छुपा कर रखने की कोशिश कर रहे हैं या उनके आने की तारीख को लेकर झूठ बोल रहे हैं, जो कि हाल ही में बाहर के किसी शहर से आए हैं. उन्होंने बताया, "ऐसे कई परिवारों के पास तो पुलिस खुद गई है और बाहर से आए उनके परिजनों को ले जाकर सेंटर में पहुंचाया है." बिहार में पंचायत स्तर पर किसी स्कूल या ऐसी जगह पर साधारण क्वारंटाइन सेंटर बनाए गए हैं जहां 14 दिनों तक लोग रह सकते हैं और परिवार के लोग उनके लिए वहां खाना पहुंचा सकते हैं.
भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा और सीधे तौर पर आर्थिक मदद मुहैया कराने के लिए 1,700 अरब रुपये की आर्थिक प्रोत्साहन योजना की घोषणा की है.
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