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पाकिस्तान के मीडिया मुगल सलाखों के पीछे क्यों?

२३ अप्रैल २०२०

पाकिस्तान के जंग मीडिया ग्रुप के मुख्य संपादक मीर शकील उर रहमान की गिरफ्तारी की गूंज यूरोपीय संघ तक सुनाई दे रही है. आलोचक कहते हैं कि इमरान खान अपनी सरकार के प्रदर्शन पर सवाल उठाने वालों को निशाना बना रहे हैं.

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Shakeel ur Rehman Medienmogul in Pakistan
तस्वीर: DW/T. Shahzad

शकील उर रहमान पाकिस्तान के सबसे बड़े मीडिया ग्रुप के मालिक और मुख्य संपादक हैं. पिछले महीने उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर 1980 के दशक में गैरकानूनी तरीके से एक संपत्ति खरीदने के आरोप हैं. पाकिस्तान के राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) का आरोप है कि रहमान ने 1986 में गैरकानूनी तरीके से सरकारी जमीन को लीज पर लिया और 2016 में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के कार्यकाल में जमीन की मिल्कियत अपने नाम ट्रांसफर करा ली. 1980 के दशक में शरीफ पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री थे.

एनएबी के प्रवक्ता नवाजिश अली ने डीडब्ल्यू को बताया कि रहमान को संपत्ति के गलत सौदे और टैक्स चोरी के आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. उन्होंने इस बारे में जारी जांच का ताजा विवरण देने से इनकार कर दिया. रहमान के जंग मीडिया समूह से जुड़े एक खोजी पत्रकार उमर चीमा का कहना है, "एनएबी ने पहले ही रहमान को गिरफ्तार करने का मन बना लिया है. उन्हें रहमान के खिलाफ जब कुछ नहीं मिला तो उन्होंने 34 साल पुराने संपत्ति की खरीद के एक मामले को खोला है."

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पाकिस्तानी पत्रकारों और अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने रहमान की गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित बताया है और इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले का नाम दिया है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि रहमान की गिरफ्तारी से उनके इस दावे की पुष्टि हुई है कि पाकिस्तान में सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबा रही है और देश में अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को चुप कराना चाहती है.

इस्लामाबाद में रहने वाले एक नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और स्तंभकार अदनान रहमत कहते हैं, "स्पष्ट तौर पर रहमान की गिरफ्तारी का मकसद पाकिस्तान के सबसे बड़े मीडिया समूह को नुकसान पहुंचाना है. सरकार मीडिया को इसलिए निशाना बना रही है ताकि वह अपनी कवरेज में विपक्ष को जगह ना दे. यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी बंदिशें लगाई जा रही हैं."

अंतरराष्ट्रीय निंदा

यूरोपीय संघ में विदेश मामलों और सुरक्षा नीति की प्रवक्ता विर्जिनी बाटू हेनरिकसन ने पाकिस्तानी अधिकारियों से आग्रह किया है कि रहमान के खिलाफ मुकदमे में पूरी निष्पक्षता बरती जाए. उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ पाकिस्तान में मानव अधिकारों, लोकतंत्र और अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू किए जाने के मामले में प्रगति को लेकर पूरी तरह के प्रतिबद्ध है.

न्यूयॉर्क स्थित कमेटी टू प्रोटेक्स जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) और पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय मीडिया निगरानी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने भी रहमान की गिरफ्तारी की कड़ी आलोचना की है. आरएसएफ में एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए निदेशक डेनियल बस्टार्ड ने एक बयान में कहा, "पूरी तरह से हास्यास्पद और फर्जी आधार पर रहमान की गिरफ्तारी को छह हफ्तों से भी ज्यादा समय हो गया है. आप किसे पागल बना रहे हैं. उनकी गिरफ्तारी का पूरी तरह कोई कानूनी आधार नहीं है."

आरएसएफ के हालिया प्रेस स्वतंत्रता इंडेक्स में 180 देशों के बीच पाकिस्तान को 145वां स्थान दिया गया है. पिछले साल के मुकाबले पाकिस्तान तीन पायदान नीचे खिसका है.

विपक्षी समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि 2018 में इमरान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए स्थान सिमट रहा है. पत्रकार चीमा कहते हैं, "रहमान की गिरफ्तारी प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है और उन्हें परेशान करने के लिए एनएबी को इस्तेमाल किया जा रहा है."

दूसरी तरफ सरकार ऐसे सभी आरोपों से इनकार करती है. सूचना और प्रसारण से जुड़े मामलों पर प्रधानमंत्री इमरान खान की विशेष सहायक फिरदौस आशिक आवान कहती हैं, "वित्तीय गड़बड़ियों के लिए हुई गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ना ठीक नहीं है."

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लेकिन दक्षिण एशियाई मामलों के जानकार मिषाएल कूगलमन रहमान की गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित मानते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "वह उस मीडिया संस्थान की एक बड़ी हस्ती हैं जो सरकार के मुताबिक नहीं चल रहा है. तीन दशक से भी ज्यादा पुराने मामले के आधार पर उन्हें गिरफ्तार किया गया है जिसे लेकर बहुत सारे सवाल हैं. कोई फैसला सुनाए बिना, कोई अटकलबाजी लगाए बिना इतना जरूर कहा जा सकता है कि यह खेल काफी खतरनाक है."

बदले की भावना?

प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही इमरान खान के रिश्ते रहमान के मीडिया ग्रुप जंग के साथ अच्छे नहीं रहे हैं. इमरान खान और उनकी पार्टी का आरोप है कि जंग ग्रुप पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का समर्थन करता है. इमरान खुद रहमान और जंग समूह पर देश के खिलाफ काम करने के आरोप लगा चुके हैं.

पाकिस्तान की ताकतवर सेना के साथ जंग के अलावा डॉन मीडिया समूह के रिश्ते भी अच्छे नहीं रहे हैं. बहुत से विश्लेषक मानते हैं कि सेना ही इमरान खान को सत्ता में लेकर आई है.

रहमत कहते हैं, "रहमान की गिरफ्तारी उन मीडिया समूहों के खिलाफ इमरान खान के सख्त रुख का हिस्सा है जो सरकार की आलोचना करने की हिम्मत दिखाते हैं या फिर विपक्ष और खासकर नवाज शरीफ की पार्टी के नेताओं को कवरेज देते हैं." हाल के सालों में रहमान के जियो टीवी का प्रसारण तक कई बार बंद कराया गया है.

हारून जंजुआ (इस्लामाबाद)

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