नाव डुबाने से नहीं सुलझेगी समस्या
१५ मई २०१५यूरोपीय संघ लीबिया के शरणार्थियों की तस्कारी करने वाले गिरोह के खिलाफ सैनिक कार्रवाई की रोमांचकारी योजना के प्रति गंभीर दिखता है. पिछले दिनों नाटो की बैठक के दौरान यूरोपीय संघ की विदेशनैतिक दूत फेडेरिका मोघेरिनी ने कुछ हद तक चकित विदेशमंत्रियों से कहा कि किस तरह वे मानव तस्करों पर तोपों से हमला करवाना चाहती हैं. यदि संयुक्त राष्ट्र और लीबिया की प्रतिद्वंद्वी सरकारें हामी भरती हैं तो यूरोपीय संघ जून में ही युद्धक नौसैनिक टुकड़ी का गठन शुरू कर देगा, जो मानव तस्करों की नौकाओं को लीबिया के सागर में ही डुबो देंगे या बंदरगाहों में ही उनका पता कर उन्हें नष्ट कर देंगे.
इटली की पूर्व विदेशमंत्री मोघेरिनी पर रोम से काफी दबाव है. इटली समुद्र के रास्ते आने वाले शरणार्थियों की समस्या से निबटना चाहता है. वे इस परियोजना पर तेजी से काम कर रही हैं. अप्रैल में 800 शरणार्थियों की मौत के बाद यूरोपीय राज्य व सरकार प्रमुखों ने भूमध्यसागर में प्रभावी सैनिक कार्रवाई की संभावना का पता करने को कहा है. उनका इरादा यह नहीं था कि सब कुछ इतनी जल्दी और कठोरता के साथ हो, कम से कम जर्मन सरकार का तो कतई नहीं. वह पर्दे के पीछे अब इसमें थोड़ा ब्रेक लगाने की कोशिश कर रही है.
खुले सवाल
बहुत सारे सवालों के अभी जवाब नहीं मिले हैं. कौन फैसला करेगा कि कौनसी नाव तस्करी की नाव है और कौनसी नहीं है? तस्करों के सरगने को पकड़ा जाएगा या सिर्फ प्यादों को? और पकड़े गए लोगों पर कानून सम्मत मुकदमा किस तरह चलाया जाएगा? क्या इस बात का खतरा नहीं है कि लीबिया के अंदर हमले में निर्दोष लोग मारे जाएंगे? ईयू जवाबी हमलों से सुरक्षा कैसे करेगा? आखिरकार अरबों कमाने वाले तस्कर संभवतः हथियारों से लैस गिरोहों से मिले हुए हैं. यह सोमालिया के समुद्री डकैतों जैसा अभियान नहीं है जहां अटलांटा मिशन के जहाज दुश्मनों पर भारी थे.
और सबसे अहम सवाल यह है कि क्या हथियारबंद कार्रवाई शरणार्थी समस्या का हल कर पाएगी? इसका जवाब स्पष्ट रूप से ना है. जो लोग समुद्र के रास्ते नहीं भाग पाएंगे वे लीबिया में बुरी परिस्थितियों में फंस कर रह जाएंगे. कुछ समय बाद वे भागने का नया रास्ता ढूंढेंगे, तुर्की या ट्यूनीशिया से होकर. यूरोपीय संघ को शरणार्थियों को शरण देने के अपने घरेलू विवाद का समाधान कोटा तयकर करना चाहिए. कुछ देश कोटे की बहस को सैनिक कार्रवाई के साथ जोड़ रहे हैं. अजीब बात है कि शरणार्थी राजनैतिक बहस के बंधक बन गए हैं.
कैसे हो तस्करों का मुकाबला
मानवों की तस्करी करने वाले अपराधी गिरोहों को रोकना उचित ही है. लेकिन शरणार्थियों की तस्करी करने का कारोबार सिर्फ नावों को डुबोने से खत्म नहीं होगा, बल्कि तब जब वैध रूप से यूरोप आना संभव होगा. तब लुकछुप कर यूरोप आने की जरूरत नहीं रहेगी और तस्करों की मांग भी खत्म हो जाएगी. इसके अलावा शरणार्थियों के देशों के साथ सहयोग पर भी अमल नहीं हो रहा है. देश छोड़ने के कारण बने हुए हैं. ब्रिटेन, हंगरी, स्लोवाकिया और कुछ दूसरे देश और शरणार्थियों को लेने से मना कर रहे हैं. शरणार्थी नीति में जल्द ही जरूरी बदलाव आसान नहीं है.
यूरोपीय संघ यदि गनबोट की नीति पर जोर देना चाहता है, तो वह हार्डलाइनरों के हाथों खेलेगा. फिर ऑस्ट्रेलिया की तरह यूरोप की पूरी नाकेबंदी ही सही रास्ता होगा. यदि रूस और चीन सहित संयुक्त राष्ट्र यूरोपीय संघ के मिशन को अनुमति दे भी देता है, तो भी लीबिया के अधिकारियों की अनुमति की जरूरत होगी. वहां फिलहाल कोई सरकार नहीं है और नही पश्चिमी पैमाने वाली कोई प्रसासनिक संरचना. आंशिक रूप से लीबिया नाटो की अच्छे इरादों वाली सैनिक कार्रवाई के कारण ही अपनी मौजूदा हालत में पहुंचा है. एक नया सैनिक अभियान उसे स्थिर बनाने में मददगार नहीं होगा. शरणार्थियों और लीबिया पर उसके अकलनीय नतीजों के चलते यूरोपीय संघ को उससे परहेज ही करना चाहिए.